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This Article is From Sep 26, 2018

आरक्षण और अयोध्‍या जैसे मामलों को छोड़कर अब राष्ट्रीय महत्व के मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग को सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत

राष्ट्रीय महत्व के मामलों में अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग फेज में लागू की जाएगी और इससे न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ेगी.

आरक्षण और अयोध्‍या जैसे मामलों को छोड़कर अब राष्ट्रीय महत्व के मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग को सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: राष्ट्रीय महत्व के मामलों में अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग फेज में लागू की जाएगी और इससे न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ेगी. कोर्ट ने कहा कि इसके लिए नियम कायदे तय होंगे. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण और अयोध्‍य जैसे मामलों की सुनवाई के दौरान लाइव स्ट्रीमिंग की इजाजत नहीं दी जा सकती है. 

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सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने बुधवार को फैसला सुनाया है. पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं. 24 अगस्त को राष्ट्रीय महत्व के मामलों में अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्रवाई की लाइव स्ट्रीमिंग से पारदर्शिता बढ़ेगी और ये ओपन कोर्ट का सही सिद्घांत होगा. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि अयोध्या और आरक्षण जैसे मुद्दों की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी. इस दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि हम खुली अदालत को लागू कर रहे हैं. ये तकनीक के दिन हैं हमें पॉजीटिव सोचना चाहिए और देखना चाहिए कि दुनिया कहां जा रही है. कोर्ट में जो सुनवाई होती है वेबसाइट उसे कुछ देर बाद ही बताती है. इसमें कोर्ट की टिप्पणी भी होती हैं. साफ है कि तकनीक उपलब्ध है. हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए. 

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केंद्र सरकार की ओर से AG के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट नें गाइडलाइन दाखिल की हैं. इसके मुताबिक लाइव स्ट्रीमिंग पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चीफ जस्टिस की कोर्ट से शुरू हो. इसमें संवैधानिक मुद्दे और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे शामिल हो वैवाहिक विवाद, नाबालिगों से जुडे मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द से जुड़े मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग ना हो. लाइव स्ट्रीमिंग के लिए एक मीडिया रूम बनाया जा सकता है जिसे लिटिगेंट, पत्रकार और वकील इस्तेमाल कर सकें. इससे कोर्टरूम की भीड़भाड़ कम होगी.  एक बार कोर्ट गाइडलाइन फ्रेम करे, फिर सरकार फंड रिलीज करेगी. एक वकील ने इसका विरोध भी किया. कहा कि इससे कोर्ट की टिप्पणियों की गलत व्याख्या करने का खतरा बढ़ जाएगा. 

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वहीं एक वकील ने कहा कि इससे याचिकाकर्ता को पता चल जाएगा कि कैसे सेकेंड में उसका केस खारिज कर दिया गया. जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि एक केस को पढने में जज कितना वक्त लेते हैं  ये देखने कोई उनके घर नहीं जाता.
 

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