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This Article is From Aug 23, 2021

"संदेह का लाभ" : सुप्रीम कोर्ट ने सात साल बाद हत्याकांड के दोषी गरीब को रिहा किया

गरीबों के लिए आगे आया सुप्रीम कोर्ट, कहा- दोषियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए, वे गरीब हैं इसलिए उन्हें कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं हो सकती

"संदेह का लाभ" : सुप्रीम कोर्ट ने सात साल बाद हत्याकांड के दोषी गरीब को रिहा किया
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में हरियाणा के फतेहाबाद गांव में हत्या और लूट के दोषी को बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 76 साल की महिला के घर में लूट और हत्या के दोषी की उम्रकैद की सजा पलट दी. शीर्ष अदालत ने दोषी को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया. सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या उसका सह-अभियुक्त अभी भी जेल में है, ताकि उसे भी जेल से रिहा किया जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वे गरीब लोग हैं और उन्हें हिरासत में क्यों रखा जाए?

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की दो जजों की बेंच ने कहा, ये गरीब लोग हैं, इन्हें इस तरह हिरासत में क्यों रखा जाए. वे कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से आए थे. दूसरा व्यक्ति जीवित है या नहीं, हम नहीं जानते, गरीब लोग सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकते. 

दरअसल राजाराम और छिंदा राम को फरवरी 2015 में हरियाणा के फतेहाबाद में नागपुर गांव में एक 76 वर्षीय महिला की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था. ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और उम्रकैद की सजा सुनाई और हाई कोर्ट ने 2019 में उम्रकैद की सजा बरकरार रखी. 

राजाराम ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील के लिए जेल प्रशासन को चिट्ठी लिखी और यहां से मामला राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास पहुंचा. जबकि सह-आरोपी छिंदा राम ने अपनी सजा के खिलाफ अपील नहीं की.

गरीब वादियों को मुफ्त कानूनी सेवा प्रदान करने वाली कानूनी सेवा समिति की वकील मीनाक्षी विज ने राजाराम की ओर से तर्क दिया कि ऐसा कोई गवाह नहीं था, जिसने दोनों दोषियों को महिला के घर के अंदर जाते देखा हो. निचली अदालत ने पड़ोसियों के बयानों के आधार पर दोषी करार दिया जिन्होंने कहा था कि दोषी घर के पास घूम रहे थे. कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. साथ ही ये भी बताया कि पुलिस ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया और किसी स्वतंत्र गवाह के सामने लूट का सामान बरामद नहीं किया. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था और ये पूरा मामला पारिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है. दोषियों को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए. चूंकि वे गरीब हैं इसलिए उन्हें कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को कहा है कि वो पता लगाएं कि दूसरा दोषी छिंदा राम जेल में है या नहीं. अदालत मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगी.

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