राष्‍ट्रपति चुनाव : शिवसेना की नजर में संघ प्रमुख मोहन भागवत हैं सबसे सक्षम व्‍यक्ति

शिवसेना ने यह भी कहा कि वह राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उम्मीदवारी पर जोर देती रहेगी.

राष्‍ट्रपति चुनाव : शिवसेना की नजर में संघ प्रमुख मोहन भागवत हैं सबसे सक्षम व्‍यक्ति

संघ प्रमुख मोहन भागवत का फाइल फोटो...

खास बातें

  • पार्टी आखिर तक भागवत का नाम सुझाती रहेगी- संजय राउत
  • पार्टी ने कहा, वह राष्ट्रपति चुनाव में अपना अलग रुख अपना सकती है.
  • शिवसेना प्रमुख ने अप्रैल में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी.
मुंबई:

केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा की सत्तारूढ़ साझेदार शिवसेना ने गुरुवार को कहा कि वह राष्ट्रपति चुनाव में अपना अलग रुख अपना सकती है.

शिवसेना ने यह भी कहा कि वह राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उम्मीदवारी पर जोर देती रहेगी.

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, 'हम आगामी राष्ट्रपति चुनाव में अपने वोट को लेकर अलग रुख अपना सकते हैं. हमने बार-बार कहा है कि हम हिंदू राष्ट्र के सपने को पूरा करने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत से अधिक सक्षम किसी और को नहीं देखते'. राज्यसभा सदस्य राउत ने यहां मीडिया से कहा कि पार्टी आखिर तक भागवत का नाम सुझाती रहेगी.

सबसे पुराने सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में संप्रग के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करके भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी. भाजपा ने इस पद के लिए पी ए संगमा का समर्थन किया था.

शिवसेना ने 2007 में भी राजग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भैंरो सिंह शेखावत के बजाय संप्रग की उम्मीदवार और कांग्रेस नेता प्रतिभा पाटिल के लिए वोट दिया था.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और उन्हें 'बड़ा भाई' कहा था. इस तरह से उन्होंने दोनों भगवा दलों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों में नरमी का संकेत दिया था. 

दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव नजदीक हैं और भाजपा को उम्मीद है कि उसे शिवसेना के 18 सांसदों और 63 विधायकों का समर्थन मिलेगा.

महाराष्ट्र में किसान आंदोलन पर अपने रुख को कड़ा करते हुए राउत ने भाजपा से कहा कि अगर किसानों की शिकायतों का निराकरण नहीं कर सकती तो उसे सत्ता छोड़ देनी चाहिए. उन्होंने कहा, 'किसानों के मुद्दे पर शिवसेना और सरकार के बीच बहुत मतभेद हैं. अगर भाजपा किसानों की समस्याओं का निराकरण नहीं कर सकती और यदि उन्हें हमारा कदम परेशानी वाला लगता है तो उन्हें सत्ता को छोड़ देना चाहिए'.

(इनपुट भाषा से)


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