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This Article is From Dec 01, 2019

PM मोदी ने कहा था कि राजनीति के गुर सीखने के लिए उनसे सलाह लेते हैं, शरद पवार ने यह साबित भी कर दिया

महाराष्ट्र की सियासी बिसात पर हारी बाजी को जीतकर सिकंदर बनकर उभरे कद्दावर नेता शरद पवार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बुद्धि के मुकाबले अनुभव को कम करके नहीं आंका जा सकता.

PM मोदी ने कहा था कि राजनीति के गुर सीखने के लिए उनसे सलाह लेते हैं, शरद पवार ने यह साबित भी कर दिया
नई दिल्ली:

महाराष्ट्र की सियासी बिसात पर हारी बाजी को जीतकर सिकंदर बनकर उभरे कद्दावर नेता शरद पवार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बुद्धि के मुकाबले अनुभव को कम करके नहीं आंका जा सकता. इतिहास में उन्हें न केवल अपने किले को सुरक्षित रखने बल्कि बीजेपी और शिवसेना की 30 साल पुरानी दोस्ती में सेंध लगाने के लिए भी याद किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार पवार की सराहना करते हुए कहा था कि वह राजनीति के गुर सीखने के लिए एनसीपी नेता से सलाह लेते थे. राजनीतिक पंडितों को यह बात अब शीशे की तरह स्पष्ट हो गयी कि मोदी क्यों पवार के राजनीतक कौशल के प्रशंसक हैं. बीजेपी द्वारा शिवसेना को मुख्यमंत्री पद नहीं देने के बाद कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बाला साहब ठाकरे की विरासत संभाल रही पार्टी के साथ जाने को एकबारगी तैयार नहीं था. किंतु पवार ने एक सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व को मनाया और शिवसेना के साथ हाथ मिलाने को तैयार कर लिया.

हालांकि भतीजे अजित पवार के रातों रात पाला बदलकर देवेन्द्र फडणवीस की सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से एक बार लगा था कि महाराष्ट्र की राजनीति का शेर शरद पवार अब चूक चुका है. लेकिन अगले ही दांव में पवार ने न केवल बीजेपी बल्कि सारे राजनीतिक विश्लेषकों को चारों खाने चित्त कर दिया. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने प्रचार बल के जरिये यह साबित करने का प्रयास किया था कि वह राज्य में प्रचंड बहुमत से वापसी कर रही है. यहां तक कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने फडणवीस को चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री घोषित कर दिया. 

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किंतु प्रचार की इस चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना 78 वर्षीय पवार ने गांव गांव और लगभग हर निर्वाचन क्षेत्र में जाकर अपना प्रचार अभियान जारी रखा. विधानसभा चुनाव के दौरान सतारा की एक चुनावी जनसभा में पवार की एक तस्वीर राष्ट्रीय सुर्खी बनी थी जिसमें बरसते पानी में उन्होंने अपना भाषण जारी रखा था. उसी जनसभा में पवार ने कहा था कि यह बारिश ‘‘ईश्वर की कृपा '' है. सतारा विधानसभा सीट से इस बार एनसीपी के श्रीनिवास पाटिल ने बीजेपी प्रत्याशी और शिवाजी महाराज के वंशज उदयन राजे भोंसले को हराया था. 

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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन का चेहरा ही पवार थे. इस बात को बीजेपी अच्छी तरह जानती थी और इसी लिए चुनाव प्रचार के दौरान मोदी, शाह सहित अधिकतर नेताओं के प्रहारों के निशाने पर पवार ही थे.  किंतु पवार ने अपने कुशल प्रचार अभियान और अपने पार्टी के सही उम्मीदवार चुनकर राज्य की 54 सीटों पर एनसीपी को सफलता दिलवाई.  पवार महाराष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शक्कर सहकारी संघों में भी गहरी पैठ रखते हैं. वह महज 27 वर्ष की उम्र में बारामती से विधायक बने और केवल दस साल बाद 38 वर्ष की उम्र में महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बन गये थे. वह कुल तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हैं. 

पवार के पहली बार मुख्यमंत्री बनने का घटनाक्रम किसी रोचक कथा से कम नहीं हैं. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस महाराष्ट्र में कई सीटों पर हार गयी. इसके बाद राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शंकर राव चव्‍हाण ने हार की नैतिक जिम्‍मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया. वसंतदादा पाटिल उनकी जगह महाराष्‍ट्र के मुख्यमंत्री बने. बाद में कांग्रेस में टूट हो गई और पार्टी कांग्रेस (यू) तथा कांग्रेस (आई) में बंट गई. पवार के गुरु यशवंत राव और पवार कांग्रेस (यू) में शामिल हो गए. 1978 में महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस के दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. बाद में जनता पार्टी को सत्‍ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़ों ने एक साथ म‍िलकर सरकार बनाई. 

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वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री बने रहे. इस सरकार में शरद पवार उद्योग और श्रम मंत्री बने. बताया जाता है कि जुलाई 1978 में शरद पवार ने अपने गुरु के इशारे पर कांग्रेस (यू) से खुद को अलग कर लिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई. बाद में यशवंत राव पाटिल भी शरद पवार की पार्टी में शामिल हो गए.  इंदिरा गांधी के दोबारा सत्‍ता में आने के बाद फरवरी 1980 में पवार के नेतृत्‍व वाली प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार गिर गई. 

1999 में उनके राजनीतक जीवन ने एक बड़ी करवट ली. सोनिया गांधी के विदेशी मूल का होने के कारण उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने का विरोध करने पर उन्हें कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन करना पड़ा. किंतु पवार की राजनीति में गहरी पैठ के कारण कांग्रेस को लगातार तीन बार महाराष्ट्र में उनकी पार्टी से गठबंधन कर सरकार बनाना पड़ा. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के हटने के बाद जब 2004 में यूपीए की सरकार बनी तो पवार को कृषि मंत्री बनाया गया. हालांकि इससे पहले भी वह 1990 के दशक में रक्षा मंत्रालय का प्रभार संभाल चुके थे. 

बाद में 2009 में भी वह केन्द्र में कृषि मंत्री बने. पवार ने 2012 में घोषणा की थी कि वह अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. किंतु चुनाव लड़ने का अर्थ सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना नहीं होता है. पवार ने महाराष्ट्र घटनाक्रम में दिखा दिया कि उनकी राज्य की राजनीति पर अब भी वही पकड़ है जो आज से चार दशक पहले हुआ करती थी. 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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