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This Article is From Mar 15, 2018

सातवां वेतन आयोग : न्यूनतम वेतनमान को लेकर बन गई बात? ये है अभी तक का अपडेट

कई मुद्दों पर चर्चा के बाद समाधान निकल गया. सबसे अहम और सर्वाधिक कर्मचारियों से जुड़ा मुद्दा न्यूनतम वेतन मान का रहा

सातवां वेतन आयोग : न्यूनतम वेतनमान को लेकर बन गई बात? ये है अभी तक का अपडेट
सातवां वेतन आयोग अब भी कर्मचारियों के लिए उम्मीद बनाए हुए है.
नई दिल्ली: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सातवां वेतन आयोग सैलरी में इजाफा लेकर आया. यह अलग बात है कि सरकार के दावे और कर्मचारियों की गुणा भाग में अंतर हमेशा से रहा है, आगे भी रहेगा. कर्मचारियों की मांग को सरकारें कभी भी पूरा नहीं कर पाईं है. आयोग बैठता है और वर्तमान समय के हिसाब से बदलावों की संस्तुति करता है. यह एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें तमाम कर्मचारी संगठनों से लेकर कानूनी पहलुओं और देश के आर्थिक हालात तथा सरकार के खर्च वहन करने की क्षमता का आकलन करने के बाद रिपोर्ट तैयार होती है. इस रिपोर्ट के कई पहलुओं पर हमेशा विवाद रहा है. कर्मचारी चर्चाओं के बाद भी रिपोर्ट के प्रावधानों और संस्तुतियों से सहमत नहीं होते. वह अपनी मांग उठाने के लिए स्वतंत्र होते हैं और उठाते रहे हैं. रिपोर्ट सरकार के पास जाती है. सरकार वहां पर मंथन करती है और रिपोर्ट को को पूरा का पूरा स्वीकारती है या फिर जरूरी संशोधनों के साथ स्वीकार लेती है. फिर इसे लागू किया जाता है. 

सातवें वेतन आयोग की जो सिफारिशें लागू की गई उसमें से कुछ पर केंद्रीय कर्मचारियों ने आपत्ति जताई. कई मुद्दों पर चर्चा के बाद समाधान निकल गया. सबसे अहम और सर्वाधिक कर्मचारियों से जुड़ा मुद्दा न्यूनतम वेतन मान का रहा जिसे अभी तक कर्मचारियों के हिसाब से सुलझाया नहीं जा सका है. 

नवंबर माह से लेकर अभी तक यह खबरें चली आ रही हैं कि सरकार और कर्मचारियों में न्यूनतम वेतन मान को लेकर कोई समझौता हो गया है. कहा यह भी जा रहा था कि यह दिसंबर माह से लागू हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिर कहा गया कि यह जनवरी से लागू हो जाएगा. तब भी यह नहीं हुआ. अब खबर है कि यह 1 अप्रैल से लागू हो जाएगा. कर्मचारियों में खुशी की लहर है. कुछ दिन ही बचे हैं, नए वित्त वर्ष के साथ कर्मचारियों की सैलरी में इजाफा संभव है, अगर सरकार बढ़ें न्यूनतम वेतनमान को लागू करती है.

बता दें कि सातवें वेतन आयोग से पहले 7000 रुपये न्यूनतम वेतनमान हुआ करता था. जबकि लागू होने के बाद इसे 18000 रुपये कर दिया गया. सरकारी कर्मचारियों की यूनियन इसे 26000 करने की मांग कर रही थी. जबकि एक समय आया था कि सरकार इसे 21000 करने पर तैयार हो गई थी. यह बात केवल चर्चाओं में रही. कर्मचारी इसके लिए तैयार नहीं थे. इसके साथ ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया और अब एक बार फिर कहा जा रहा है कि सरकार की बात को कर्मचारी तैयार हैं.

कर्मचारी नेताओं कहना है कि विवाद अब भी बरकरार है. लेकिन पहले जिन कर्मचारियों का भला हो सकता है हो जाए. हम तैयार नहीं हुए हैं, लेकिन कम से कम सरकार पहले कुछ लागू करे तो कहीं उम्मीद जगेगी, कुछ परिवारों को फायदा होगा.

यह उल्लेखनीय है कि मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि यह एक अप्रैल से लागू हो रहा है. लेकिन कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा कि इस बारे में अभी तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.

एनडीटीवी से बातचीत में सरकार के साथ मध्यस्थता कर रहे एनसीजेसीएम के पदाधिकारी का कहना है कि इस बारे में अभी कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है. पहले कहा गया था कि दिया जाएगा. लेकिन अब सरकार की ओर से इशारा साफ है कि नहीं दिया जाएगा. इतना ही नहीं यह भी इशारा किया गया है कि अब यह विचार के लिए भी नहीं है.

क्या हुआ था -
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों ने न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूला पर आपत्ति जताई थी और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की धमकी दी थी. बाद में सरकार ने कर्मचारी नेताओं से बातचीत कर चार महीने का समय मांगा था और फिर दोनों पक्षों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ. तब वित्तमंत्री जेटली, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रेल मंत्री सुरेश प्रभु और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के साथ बैठक में कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा था कि सातवें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूले से कर्मचारी बुरी तरह आहत हैं.

सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू (1 जुलाई 2016) होने के करीब एक साल बाद इस उठे सभी विवादों को खत्म कर दिया और अलाउंसेस समेत कई मुद्दों का समाधान किया. एक मुद्दा न्यूनतम वेतनमान का बना रहा है. 

बता दें कि कर्मचारी नेताओं ने सरकार को याद दिलाया कि सरकार के मंत्रियों ने कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत में कहा था कि वे कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेंगे और तब कर्मचारी संगठनों ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को टाल दिया था.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने भत्तों पर दी गई 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को 34 संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया था, इसे लागू करने पर कुल 30,748.23 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. बता दें कि 48 लाख सरकारी कर्मचारियों को इसका फायदा हुआ. यह 1 जुलाई 2016 से लागू हो गया था. सरकार ने विशिष्ट कार्यरत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 12 भत्तों को समाप्त न करने का निर्णय लिया था. कई भत्तों के विशिष्ट स्वरूप को ध्यान में रखते हुए विलय किये जाने वाले 37 भत्तों में से 3 भत्तों की अलग पहचान अब भी बनी है. आवास किराया भत्ता (एचआरए) का भुगतान क्रमश: एक्स, वाई एवं जेड शहरों के लिए 24, 16 और 8 फीसदी की दर से दिया जा रहा था.

एक्स, वाई एवं जेड शहरों के लिए एचआरए 5400, 3600 एवं 1800 रुपये से कम नहीं है, 18000 रुपये के न्यूनतम वेतन के 30, 20 एवं 10 फीसदी की दर से इसकी गणना की जा रही है. इससे 7.5 लाख से भी ज्यादा कर्मचारी लाभान्वित हो रहे हैं. 7वें वेतन आयोग ने डीए के 50 एवं 100 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की स्थिति में एचआरए में संशोधन की सिफारिश की थी, हालांकि सरकार ने डीए के क्रमश: 25 एवं 50 फीसदी से ज्यादा होने की स्थिति में दरों में संशोधन करने का निर्णय लिया.

न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा क्यों है पेचीदा
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब का सभी को इंतजार है. न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग के चलते अब क्लास वन, क्लास टू, थ्री और फोर श्रेणी के केंद्रीय कर्मचारियों में भी इस वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर हुए वास्तविक बढ़त को लेकर तमाम प्रश्न हैं.

सभी लोगों को अब इस बात का इंतजार है कि सरकार कौन से फॉर्मूले के तहत यह मांग स्वीकार करेगी. सभी अधिकारियों को अब इस बात का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में कई अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने की स्थिति में इसका असर नीचे से लेकर ऊपर के सभी वर्गों के वेतनमान में होगा. कुछ अधिकारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हो सकता है कि इससे वेतन आयोग की सिफारिशों से ज्यादा बढ़ोतरी हो जाए. ऐसा होने की स्थिति में सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन देने के मद में काफी फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी और इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

वहीं, कुछ अन्य अधिकारियों का यह भी मानना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान बढ़ाए जाने की स्थिति में कोई ऐसा रास्ता निकाल लाए जिससे सरकार पर वेतन देने को लेकर कुछ कम बोझ पड़े.

कुछ लोगों का कहना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान में ज्यादा बढ़ोतरी न करते हुए दो-या तीन इंक्रीमेंट सीधे लागू कर देगी जिससे न्यूनतम वेतन अपने आप में बढ़ जाएगा और सरकार को नीचे की श्रेणी के कर्मचारियों को ही ज्यादा वेतन देकर कम खर्चे में एक रास्ता मिल जाएगा. सवाल उठता है कि क्या हड़ताल पर जाने की धमकी देने वाले कर्मचारी संगठन और नेता किस बात को स्वीकार करेंगे.
 

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