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This Article is From Oct 02, 2018

सेवाग्राम : गांधी जी के कच्चे घरों वाले गांव में पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं पर विवाद

महाराष्ट्र के वर्धा जिले में स्थित सेवाग्राम आश्रम के आसपास विकास के लिए सरकार 122 करोड़ रुपये खर्च कर रही, निर्माण का विरोध शुरू

सेवाग्राम : गांधी जी के कच्चे घरों वाले गांव में पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाओं पर विवाद
सेवाग्राम में पर्यटकों की सुविधाओं के लिए हो रहे निर्माण का विरोध भी हो रहा है.
सेवाग्राम (महाराष्ट्र): महात्मा गांधी के सेवाग्राम का आधुनिकीकरण किया जा रहा है. सरकार की इस योजना को लेकर विवाद शुरू हो गया है. सेवाग्राम को इसके पूरे प्राकृतिक परिवेश के साथ गांधी जी ने अपनी कार्यस्थली बनाया था. इसमें स्वदेशी अस्मिता का विचार सर्वोपरि था. लेकिन अब सरकार सेवाग्राम आश्रम के आसपास करोड़ों रुपये की लागत से निर्माण करा रही है. हालांकि कहा यह जा रहा है कि यह सब आने वाले पर्यटकों की सुविधा के लिए है लेकिन कच्ची झोपड़ी में रहने वाले गांधी के कुछ अनुयायियों के लिए यह गांधी के सिद्धांतों के खिलाफ लगता है.

महाराष्ट्र के वर्धा जिले में स्थित सेवाग्राम आश्रम के आसपास विकास के लिए सरकार 122 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इस राशि से यहां आश्रम के आसपास एक म्युजियम, एम्फीथिएटर, पार्किंग एरिया, सार्वजनिक शौचालय, लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर वगैरह बनाए जा रहे हैं. कच्ची झोपड़ियों वाले सेवाग्राम आश्रम के ठीक सामने यह सब क्रांक्रीट के पक्के निर्माण हो रहे हैं. इन निर्माणों को लेकर विरोध के स्वर भी उभर रहे हैं. विरोध करने वालों का तर्क है कि महात्मा गांधी कभी भी पक्के निर्माण करके भूमि को नुकसान पहुंचाने के पक्षधर नहीं थे. वे ग्राम और जंगल में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके घर बनाने की हिमायत करते थे. वे ऐसे साधनों का उपयोग करने के लिए कहते थे जिनसे स्थानीय लोगों को रोजगार मिले और प्रकृति को भी नुकसान न पहुंचे.
 
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दूसरी तरफ निर्माण के पक्ष में कहा जा रहा है कि महात्मा गांधी एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व हैं. उनके बारे में जानने समझने के लिए दुनिया भर के लोग सेवाग्राम आते हैं. यहां उनके लिए जरूरी सुविधाएं न होने से वे परेशान होते हैं. सेवाग्राम आश्रम के मूल स्वरूप में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है सिर्फ आसपास वे सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं जो कि पर्यटकों के लिए आवश्यक हैं.    

सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की पूर्व ट्रस्टी विभा गुप्ता यहां किए जा रहे निर्माण से नाखुश हैं. उन्होंने बताया कि गांधी जी के समय यहां पोस्ट आफिस बना जो सन 1973 तक चला. गांधी जी पोस्ट कार्ड के जरिए भारत भर में पत्राचार किया करते थे. पोस्ट आफिस एक शानदार धरोहर है जिसे हम बड़े पैमाने पर ले जा सकते थे. यहां रोज दो बोरे चिट्ठियां आती थीं और इतनी ही जाती थीं. गरीब छोटे कार्यकर्ता से लेकर वायसराय तक से गांधी के सम्पर्क का यह महत्वपूर्ण माध्यम था. इस पोस्ट आफिस के पीछे कम्युनिटी टॉयलेट,  पार्किंग व टिकट काउंटर बनाए जा रहे हैं. आसपास बिक्री के केंद्र भी बनाए जा रहे हैं. आश्रम का इसके साथ कैसे जुड़ाव होगा? समझ के बाहर है. यह सब गांधी जी के सिद्धांतों के खिलाफ है.

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विभा गुप्ता की बात से आश्रम को संचालित करने वाले सेवाग्राम प्रतिष्ठान के अध्यक्ष टीआर प्रभु असहमत हैं. उन्होंने एनडीटीवी को बताया कि सेवाग्राम के विकास के लिए 'गांधी फॉर टुमारो' प्लान बना था. इसके लिए जब बैठकें हुईं तो विभा गुप्ता उनमें मौजूद थीं लेकिन तब उन्होंने इस पर कोई आपत्ति नहीं ली. उन्होंने बताया कि विभा गुप्ता को ट्रस्ट से हटा दिया गया तो उन्हें निर्माण बुरे लगने लगे. उन्होंने बताया कि पक्के निर्माण करना जरूरी है ताकि इन भवनों में मजबूती रहे और उनकी आयु भी अधिक हो. उन्होंने कहा कि लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर की बिल्डिंग क्या कच्ची बनाई जा सकती है? दस्तावेज, पुस्तकें कच्चे घर में सुरक्षित कैसे रहेंगी? एम्फीथिएटर एक हजार लोगों की क्षमता का होगा. उसका निर्माण कच्चा कैसे होगा?

सेवाग्राम में एक स्थायी एक्जीबीशन थी जिसे तोड़ दिया गया है. इसकी जगह नया म्युजियम बनाया जा रहा है. इसके बारे में  टीआर प्रभु ने बताया कि यह सिर्फ प्रदर्शनी की तरह नहीं होगा, यहां हस्तशिल्प देखने के साथ-साथ सीखने भी मिलेगा. इसमें हट होंगी जिनमें प्रशिक्षण दिया जाएगा. सूत कातने और कपड़े की बुनाई करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा.
 
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सेवाग्राम के पुराने पोस्ट आफिस में अब एक परिवार रहता है. इसके बारे में प्रभु ने बताया कि यहां फिलेटेलिक एक्जीबीशन सेंटर बनाया जाएगा. इसके पीछे सार्वजनिक शौचालय, दो मंजिल की डॉरमेट्री और सात-आठ कॉटेज बनाई जाएंगी. टीआर प्रभु ने यह भी बताया कि सारे निर्माण इको फ्रेंडली किए जा रहे हैं. कोई भी पेड़ या झाड़ी नहीं काटी जा रही है.

आश्रम के राजनीतिक उपयोग को लेकर टीआर प्रभु  ने कहा कि 'कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के लिए कांग्रेस ने सेवाग्राम से जगह मांगी थी लेकिन हमने इनकार कर दिया. इस स्थान का उपयोग किसी राजनीतिक कार्य के लिए नहीं होने देंगे.'  
 
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गौरतलब है कि महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल में वर्धा जिले का सेवाग्राम महात्मा गांधी का अंतिम घर था. यहां गांधी जी ने अपने जीवन के सात साल बिताए थे. गांधी जी 1934 में वर्धा पहुंचे थे और वहां मगनवाड़ी में रहे थे. दो साल बाद उन्होंने सेगांव नाम के गांव के एक हिस्से को अपना आश्रय बनाया. यह बहुत पिछड़ा, गरीबी से ग्रस्त और बंजर जमीन वाला इलाका था. यहां उन्होंने एक आदर्श ग्राम के रूप में सेवाग्राम की कल्पना को आकार दिया. देश के केंद्र में स्थित यह स्थान तब आजादी के आंदोलन का केंद्र बना क्योंकि यहां गांधी जी निवास करते थे. यहां तक कि गांधी जी के इनकार करने के बावजूद तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लिगलिनथो ने इस आश्रम में यह तर्क देकर टेलीफोन की हॉटलाइन लगवाई कि मैं आपके सम्पर्क में रहना चाहता हूं.
 
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सेवाग्राम में बापू की कुटिया आज भी वैसी ही है जैसी उस समय थी जब वे यहां रहते थे. कच्ची दीवारों वाली इस कुटिया को बांस और लकड़ी से बनाया गया है. इसमें कुल पांच कमरे हैं जिसमें जरूरत का उतना ही सामान है जो एक इंसान के जीवन-यापन की मूलभूत जरूरतों को पूरा कर सकता है. कोई भी सामग्री ऐसी नहीं है जिसमें कहीं दिखावा या आडंबर हो. शौचालय में एक रेक लगा है जिसमें अखबार रखे जाते थे. एक खिड़की भी है जिससे बाहर देखा जा सकता है. समय के पाबंद गांधी जी शौचालय में अखबारों को पढ़ने के साथ-साथ खिड़की से लोगों से बातचीत भी कर लिया करते थे. लकड़ी का एक तखत है जिसे पर वे अक्सर बाहर खुले आसमान के नीचे ही सोते थे. पत्राचार के लिए टाइपराइटर है.सूत कातने के लिए चरखा है और चप्पल, लाठी जैसी चीजें हैं.

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सरकार गांधी के सेवाग्राम को आधुनिक बनाने में जुटी है. सवाल यह है कि इस आधुनिकीकरण से पर्यटकों को तो सुविधाएं मिल जाएंगी लेकिन क्या गांधी दर्शन की मूल भावना आहत नहीं होगी? ग्राम स्वराज की कल्पना करके देश को आत्मनिर्भर बनाने का स्वप्न देखने वाले गांधी का गांव इससे बाजारवाद की गिरफ्त में तो नहीं आ जाएगा?

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