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This Article is From Sep 25, 2020

MP में ऑक्सीजन की कमी: 'पानी नहीं मिल रहा, सांस नहीं ले पा रहा', परिजनों ने बयां किया आखिरी बातचीत का दर्द

मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की जान जा रही है. एनडीटीवी ने पहली बार जब इस खबर को दिखाया तो सरकार ने दबी जुबान में कमी स्वीकारी.

MP में ऑक्सीजन की कमी: 'पानी नहीं मिल रहा, सांस नहीं ले पा रहा', परिजनों ने बयां किया आखिरी बातचीत का दर्द
मध्य प्रदेश में जुलाई में हर दिन 40 टन तो अगस्त में 90 टन ऑक्सीजन की खपत हुई. सितंबर में बढ़कर 110 टन हो गई है.
भोपाल:

मध्यप्रदेश में ऑक्सीजन की किल्लत होने लगी है, एनडीटीवी ने पहली बार जब इस खबर को दिखाया तो सरकार ने दबी जुबान में स्वीकारा, फिर दो दिन बाद बताया केन्द्र 50 टन ऑक्सीजन देगा अब कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन हकीकत में क्या हो रहा है. कई दुकानों से, सप्लायरों से बात करने के बाद ये पता लगा है कि सप्लाई की दिक्कत है, दाम डेढ़ गुना तक बढ़ गये हैं आनेवाले दिनों में तकलीफ और बढ़ सकती है.

कुछ दिनों पहले इंदौर के मालवा मिल में रहने वाले राजकुमार निषाद से उनकी पत्नी की आखिरी दफे फोन पर बात हुई .. परिजन ने पूछा, 'सांस ले पा रहे हो अच्छे से'. मरीज ने कहा, 'नहीं, ऑक्सीजन बार बार बंद हो जा रहा है दम घुट रहा है मेरा' परिजन ने कहा, 'मैडम वो बोल रहे है उन्हें प्यास लग रही है और ऑक्सीजन भी बार बार बंद हो रहा है वो बोल रहे हैं.'
मरीज ने कहा, 'जल्दी आओ ना, हैलो मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं बिना ऑक्सीजन के ...तुम आ जाओ पहले.'

40 साल के राजकुमार निषाद निवासी को दिल की बीमारी थी, परिजनों का आरोप है बगैर जांच रिपोर्ट कोविड संक्रमित बताकर उन्हें शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया गया, जहां ऑक्सीजन नहीं मिलने से उनकी मौत हो गई. उनकी पत्नी कर्मिता ने बताया "मैंने बोला मैडम पानी भी नहीं मिल रहा, ऑक्सीजन बंद हो रहा है पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है, पानी मांग रहा हूं कोई पानी नहीं पिला रहा है".

खबर आने के बाद नोडल अधिकारी अमित मालाकार ने कहा इसपर संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिये जांच बिठाकर उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे. मनोज चौकसे के बहनोई, करौंद सुपर स्पेशलियटी अस्पताल में भर्ती थे. कहते हैं,"ऑक्सीजन की जरूरत थी...पता नहीं कैसे मौत हो गई. ऑक्सीजन की जरूरत थी, फिर क्या हुआ पता नहीं, उन्होंने बोला वेंटिलेटर लगेगा, भांजे को भेजा पल्स नहीं आ रही थी."

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इसी अस्पताल में शोभा फ्रांसिस ने भी दम तोड़ा, उनके परिजनों ने भी ऑक्सीजन की कमी का आरोप लगाया. हमने अस्पताल से बात करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. सवाल ये है कि ऑक्सीजन को लेकर क्या वाकई फिक्र करना चाहिये, मध्यप्रदेश में जुलाई में हर दिन 40 टन तो अगस्त में 90 टन ऑक्सीजन लगी। सितंबर में हर दिन 1500 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं और हर दिन ऑक्सीजन खपत 110 टन हो गई है। सरकार कहती है राज्य को 130 टन ऑक्सीजन मिलता है 50 टन केन्द्र ने सुनिश्चित करा दिया है यानी मध्यप्रदेश के पास 180 टन ऑक्सीजन होगा

आंकड़ों में सब अच्छा है, मंत्रीजी, मुख्यमंत्री जी भी यही कहते हैं, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा "कहीं ऐसी स्थिति नहीं हैं .... आंकड़े हैं हमारे पास हमें 100 टन की जरूरत है 120 टन है". उन्हें टोककर हमने सवाल पूछा  हम नाम बता रहे हैं शोभा फ्रांसिस --- उन्होंने कहा "मैं इसपर टिप्पणी नहीं करूंगा, मौत हुई तो दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर की दिक्कत नहीं है".

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कहा कि "ऑक्सीजन की कहीं कोई दिक्कत नहीं है". इन दावों को परखने हमने भोपाल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले दुकानदारों, सप्लायरों का रुख़ किया. हमीदिया रोड पर खुफिया कैमरे पर एक दुकानदार ने खुद स्वीकारा ..." 12 लीटर का सिलेंडर मिल नहीं रहा है, जो पहले 4800 का सिलेंडर था वो अब 6000 में बेच रहे हैं. दूसरी दुकान पहुंचे तो रेट 500 रुपये और ज्यादा बताई गई."

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तीसरे दुकानदार ने बाकायदा ... जोड़-घटा कर पूरा हिसाब बताया... कहा "दाम बढ़ गये, बहुत ज्यादा ऑक्सीजन मिल भी नहीं रहा पहले जो 4800 का लगा रहा हूं, पहले ये था 3300 का. हमने पूछा -- आपको भी महंगा मिल रहा है, जवाब मिला ...हां सरकार कुछ नहीं कर नहीं रही, तो उन्होंने कहा - नहीं."

हमने सोचा इस किल्लत पर शहर के बड़े सप्लायरों को भी टटोला जाए.. एक ने बताया कि सप्लाई महंगी होगी जो छोटा सिलेंडर पहले 1200 का था अब 2000 का हो गया. आगे और दिक्कत आ सकती है, थोड़ी नहीं बहुत ज्यादा ... हमलोगों को वास्तविक बात पता है, अभी और कंडीशन खराब होने वाली है ... उसने ये भी जोड़ा, मैं डरा नहीं रहा हूं ... हालात ही ऐसे हैं. दूसरे का कहना है कि सिलेंडर मौजूद नहीं हैं, आप सिलेंडर लेकर आएंगे तो मैं रिफिल करवा दूंगा. हमने सोचा इसकी तस्दीक दूसरों से भी कर लें तो एंबुलेंस ड्राइवरों से बात की उन्होंने बताया ऑक्सीजन सिलेंडर लेट मिल रहे हैं, पहले सस्ती थी अब महंगी है, पहले 250 अब 300-350 की मिल रही है ... वो भी एक दिन, दो दिन बाद.

देवास के अमलतास अस्पताल में 4 मरीजों की मौत का मामला एनडीटीवी ने दिखाया था, राज्यसभा में भी ये मामला उठा था. परिजनों का आरोप था कि मरीजों को नॉन इन्वेसिव वेंटिलेटर से कम मात्रा में ऑक्सीजन मिली, फिर भी सरकार कहती है ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई.

राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने सदन में कहा, “, “ऑक्सीजन की कीमत 10 रुपये प्रति घन मीटर है जो अब बढ़कर 50 रुपये प्रति घन मीटर हो गई है। एनटीए ने इसकी कीमत अधिकतम 17 रु. तय की थी. मध्यप्रदेश के देवास में ऑक्सीजन की कमी से 4 मरीज़ों की मौत हो गई.  जबलपुर, छिंदवाड़ा, दमोह से भी ऑक्सीजन की कमी की खबरें आ रही हैं. सरकार को इस संबंध में कदम उठाना चाहिए.”

वैसे आश्वासन है, कालाबाजारी पर कार्रवाई करेंगे चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा" समाज इस स्थिति में पहुंचा है तो सबको सोचना चाहिये .. महामारी के वक्त किसी को दाम नहीं बढ़ाना चाहिये लेकिन अगर कोई फुटेज है आप बताएं... नियम संगत कार्रवाई होगी."  हालांकि कांग्रेस सफाई से संतुष्ट नहीं, पूर्व मुख्य मंत्री कमलनाथ ने कहा "ऑक्सीजन कोई नई चीज है? पहले से प्रबंध करना था जब कमी हो जाए तब ये सोचेंगे ताकि कोई घोटाला हो जाए". 

दरअसल ऑक्सीजन को लेकर हालात तब सामने आए जब महाराष्ट्र ने खत लिखकर दूसरे राज्यों को ऑक्सीजन सीमित करने की बात कही, वैसे इस फैसले को हाईकोर्ट ने झटक दिया है. लेकिन कोर्ट में सरकार ने कई बातें बताई -- जैसे 31 अगस्त तक जो एक्टिव मरीज़ 9152 थे, वो 31 अक्तूबर तक 33699 हो जाएंगे ... ये सरकार का ही अनुमान है और तब 4800 ऑक्सीजन वाले, और 650 आईसीयू बिस्तरों की कमी होगी.

अब सोचिये, जब मरीज तीन गुना बढ़ जाएंगे तो सरकारी गणित का क्या होगा. वैसे जानकारों के मुताबिक तब लगभग 300 टन ऑक्सीजन की जरूरत होगी, क्योंकि कोरोना के गंभीर मरीजों को कई बार 40 से 60 लीटर प्रति मिनट की रफ्तार से ऑक्सीजन देनी पड़ती है, जबकि सामान्य मरीजों में 10 लीटर प्रति मिनट की जरूरत होती है.

भोपाल एम्स तक के निदेशक कह रहे हैं, बिस्तर बढ़े तो उनके लिये इंतजाम मुश्किल होगा. अस्पताल के निदेशक प्रो. सरमन सिंह ने कहा "ऑक्सीजन सप्लायर ने हमसे वायदा नहीं किया है कि हम बेड बढ़ाएंगे तो क्या हमको सप्लाई दे पाएंगे... इसकी वजह से हमारे सामने एक समस्या तो है कि अगर हम कह दें, मरीज को भर्ती कर दें ऑक्सीजन नहीं मिली तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है."

ऑक्सीजन को लेकर एक दिक्कत इन कारोबारियों की भी है, जिनकी सप्लाई लगभग बंद है, इसलिये काम ठप्प ... और सब सड़क पर. देश में लगभग 6,900 मिट्रिक टन मेडिक ऑक्सीजन का उत्पादन होता है, खपत लगभग 2800 मिट्रिक टन की है, सरकार कहती है उत्पादन का गणित ठीक है, प्रबंधन का गड़बड़. इसलिये उसने 5 सूत्रीय एजेंडा बनाया है, यहां तक तो सब ठीक लगता है, लेकिन एक एक राज्य में जब मांग दस गुना बढ़ जाए तो गणित गड़बड़ होगा ही, खासकर तब जब सरकारें मानने को तैयार ना हों कि गड़बड़ है वो इसलिये भी क्योंकि स्वास्थ्य उनकी प्राथमिकता में नहीं... सिर्फ चुनावी भाषण में रहता है.

वीडियो: MP में ऑक्सीजन की किल्लत, कहीं सिलेंडर नहीं तो कहीं दाम डबल

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