सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अपने 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति मांगने वाली एक महिला की याचिका मंगलवार को यह कहते हुए नामंजूर कर दी,''हमारे हाथों में एक जिंदगी है.'' उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 37 वर्षीय महिला के स्वास्थ्य की जांच के लिए गठित चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था जारी रखने में मां को कोई खतरा नहीं है.
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायाधीश एल नागेश्वर राव की पीठ ने टिप्पणी की कि हालांकि ''हर कोई जानता है कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा निसंदेह रूप से कम बुद्धिमान होता है, लेकिन वे ठीक होते हैं.'' पीठ ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण में ''मानसिक और शारीरिक चुनौतियां हो सकती हैं'' लेकिन चिकित्सकों की सलाह गर्भ गिराने का समर्थन नहीं करती.''
पीठ ने कहा,''इस रिपोर्ट के साथ, हमें नहीं लगता कि हम गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने वाले हैं. एक जिंदगी हमारे हाथ में हैं.'' न्यायालय ने कहा,''इन परिस्थितियों में, वर्तमान सलाह के अनुसार गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना संभव नहीं है.'' गौरतलब है कि डाउन सिंड्रोम एक ऐसा अनुवांशिक विकार है जो कि बौद्धिक और शारीरिक क्षमता प्रभावित करता है.
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायाधीश एल नागेश्वर राव की पीठ ने टिप्पणी की कि हालांकि ''हर कोई जानता है कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा निसंदेह रूप से कम बुद्धिमान होता है, लेकिन वे ठीक होते हैं.'' पीठ ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण में ''मानसिक और शारीरिक चुनौतियां हो सकती हैं'' लेकिन चिकित्सकों की सलाह गर्भ गिराने का समर्थन नहीं करती.''
पीठ ने कहा,''इस रिपोर्ट के साथ, हमें नहीं लगता कि हम गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने वाले हैं. एक जिंदगी हमारे हाथ में हैं.'' न्यायालय ने कहा,''इन परिस्थितियों में, वर्तमान सलाह के अनुसार गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना संभव नहीं है.'' गौरतलब है कि डाउन सिंड्रोम एक ऐसा अनुवांशिक विकार है जो कि बौद्धिक और शारीरिक क्षमता प्रभावित करता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं