नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के उस आदेश की सराहना की है जिसके मुताबिक 10 पुरानी डीजल वाली गाड़ियां और 15 साल पुरानी पेट्रोल वाली गाड़ियों के दौड़ने पर पाबंदी होनी चाहिए।
एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा एनजीटी का आदेश जनहित में है लिहाजा हमें सहयोग करना चाहिए। राहत की आस लगाए प्रदीप को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झटका लगा। प्रदीप ने 14 महीने पहले सेकेंड हैंड ह्यूंदै एसेंट लिया है। सीएनजी किट भी लगाया, लेकिन गाड़ी इस साल फरवरी में 15 साल पूरा कर चुकी है। परिवहन विभाग से एनओसी मिल नहीं रहा, लिहाजा गाड़ी कटवानी होगी। प्रदीप कहते हैं कि एनओसी मिल जाता तो गाड़ी गांव भेज देता, लेकिन दो लाख की गाड़ी को 25000 में कटवाना पड़ेगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी जनहित में कुछ बेहतर करना चाहती है, लिहाजा विरोध के बजाय सहयोग करना चाहिए। याचिका में एनजीटी के आदेश को उसके दायरे से बाहर बताते हुए स्टे की मांग की गई थी जिसका बचाव करते हुए कोर्ट ने कहा कि एनजीटी सिर्फ संवैधानिक अदालत के आदेश दोहरा रही है। ये आदेश सबसे पहले आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने दिया था।
याचिकाकर्ता के वकील देवाशीष मिश्रा ने कहा कि मोटर व्हीकल एक्ट के मुताबिक एनजीटी का अधिकार ही नहीं बनता कि वो इस तरह से आदेश दे। इसलिए हमने चुनौती दी थी। दूसरी तरफ ट्रांसपोटर्स इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि परिवहन मंत्रालय को सुप्रीम कोर्ट से जरूर राहत मिलेगी।
दिल्ली ट्रांसपोटर्स एसोसिएशन के महासचिव संदीप जैन ने कहा कि हमें दिल्ली सरकार और भारत सरकार पर पूरा भरोसा है कि हमें वक्त मिलेगा और अच्छे दिन हमारे भी आएंगे। एक तरफ पूरी राजधानी पीड़ित है तो दूसरी तरफ कुछेक की पीड़ा है। पलड़ा प्रदूषण का भारी है, लिहाजा ना राहत और ना ही कोई रियायत।
एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा एनजीटी का आदेश जनहित में है लिहाजा हमें सहयोग करना चाहिए। राहत की आस लगाए प्रदीप को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झटका लगा। प्रदीप ने 14 महीने पहले सेकेंड हैंड ह्यूंदै एसेंट लिया है। सीएनजी किट भी लगाया, लेकिन गाड़ी इस साल फरवरी में 15 साल पूरा कर चुकी है। परिवहन विभाग से एनओसी मिल नहीं रहा, लिहाजा गाड़ी कटवानी होगी। प्रदीप कहते हैं कि एनओसी मिल जाता तो गाड़ी गांव भेज देता, लेकिन दो लाख की गाड़ी को 25000 में कटवाना पड़ेगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एनजीटी के आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी जनहित में कुछ बेहतर करना चाहती है, लिहाजा विरोध के बजाय सहयोग करना चाहिए। याचिका में एनजीटी के आदेश को उसके दायरे से बाहर बताते हुए स्टे की मांग की गई थी जिसका बचाव करते हुए कोर्ट ने कहा कि एनजीटी सिर्फ संवैधानिक अदालत के आदेश दोहरा रही है। ये आदेश सबसे पहले आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने दिया था।
याचिकाकर्ता के वकील देवाशीष मिश्रा ने कहा कि मोटर व्हीकल एक्ट के मुताबिक एनजीटी का अधिकार ही नहीं बनता कि वो इस तरह से आदेश दे। इसलिए हमने चुनौती दी थी। दूसरी तरफ ट्रांसपोटर्स इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि परिवहन मंत्रालय को सुप्रीम कोर्ट से जरूर राहत मिलेगी।
दिल्ली ट्रांसपोटर्स एसोसिएशन के महासचिव संदीप जैन ने कहा कि हमें दिल्ली सरकार और भारत सरकार पर पूरा भरोसा है कि हमें वक्त मिलेगा और अच्छे दिन हमारे भी आएंगे। एक तरफ पूरी राजधानी पीड़ित है तो दूसरी तरफ कुछेक की पीड़ा है। पलड़ा प्रदूषण का भारी है, लिहाजा ना राहत और ना ही कोई रियायत।
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