नई दिल्ली:
देश भर में निःशक्त (डिसएबल्ड) लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में एक निःशक्त कार्यकर्ता को विमान से नीचे उतारने के मामले में स्पाइस जेट को दो माह में दस लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिया है।
अमेरिकी किताब का उद्धरण दिया सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी किताब 'NO PITY' का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि 'Non disabled Americans dont understand disable ones', (वह अमेरिकन जो निःशक्त नहीं है, किसी निःशक्त व्यक्ति की समस्या को नहीं समझ सकता।) लेकिन यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है। भारत में निःशक्त जन को लेकर कई कानून हैं और कई मानवाधिकार संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन अब भी इसको लेकर काफी सुधार की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा, निःशक्त को भी पूरे अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिसेबल लोगों को भी वही अधिकार हैं जो सामान्य लोगों को हैं, लेकिन ज्यादातर सामान्य लोगों को लगता है कि वे बोझ हैं और कुछ कर नहीं सकते। जबकि हकीकत यह है कि निःशक्त होने के बावजूद वे अपनी जिंदगी जीते हैं और किसी पर बोझ नहीं बनते। उन्हें भी आम लोगों की तरह अपना जीवन गौरवपूर्ण तरीके से जीने का हक है। जीजा घोष इसी का उदाहरण हैं कि डिसेबल होते हुए भी वे एक्टीविस्ट के तौर पर काम कर रही हैं।
क्या था मामला
दरअसल 19 फरवरी 2012 को डिसेबल और एक्टीविस्ट जीजा घोष कोलकाता से गोवा एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थीं। वे स्पाइस जेट के विमान में सवार हुईं लेकिन उड़ान भरने से पहले उन्हें विमान से उतार दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि कैप्टन ने डिसेबल होने की वजह से उन्हें विमान से उतारने के निर्देश दिए थे। इसकी वजह से वे कांफ्रेंस में भाग नहीं ले पाईं और उन्हें मानसिक रूप से आघात पहुंचा।
स्पाइसजेट की दलील
स्पाइसजेट ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि जीजा ने नियमों का पालन नहीं किया था। टिकट बुकिंग के वक्त ही यात्री को बताना चाहिए कि वह डिसेबल है लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए केंद्र को सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वैसे तो डिसेबल के लिए कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी हैं लेकिन कोर्ट को लगता है कि इसमें सुधार की जरूरत है। कोर्ट की राय है कि सरकार को सभी हवाई अड्डों पर निःशक्त लोगों के लिए तमाम आधुनिक और स्टेंडर्ड सामान लगाना चाहिए। इसके अलावा व्हील चेयर को विमान के भीतर भी जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके अलावा क्रू को भी सही ट्रेनिंग देनी चाहिए।
अमेरिकी किताब का उद्धरण दिया सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी किताब 'NO PITY' का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि 'Non disabled Americans dont understand disable ones', (वह अमेरिकन जो निःशक्त नहीं है, किसी निःशक्त व्यक्ति की समस्या को नहीं समझ सकता।) लेकिन यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है। भारत में निःशक्त जन को लेकर कई कानून हैं और कई मानवाधिकार संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन अब भी इसको लेकर काफी सुधार की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा, निःशक्त को भी पूरे अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिसेबल लोगों को भी वही अधिकार हैं जो सामान्य लोगों को हैं, लेकिन ज्यादातर सामान्य लोगों को लगता है कि वे बोझ हैं और कुछ कर नहीं सकते। जबकि हकीकत यह है कि निःशक्त होने के बावजूद वे अपनी जिंदगी जीते हैं और किसी पर बोझ नहीं बनते। उन्हें भी आम लोगों की तरह अपना जीवन गौरवपूर्ण तरीके से जीने का हक है। जीजा घोष इसी का उदाहरण हैं कि डिसेबल होते हुए भी वे एक्टीविस्ट के तौर पर काम कर रही हैं।
क्या था मामला
दरअसल 19 फरवरी 2012 को डिसेबल और एक्टीविस्ट जीजा घोष कोलकाता से गोवा एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थीं। वे स्पाइस जेट के विमान में सवार हुईं लेकिन उड़ान भरने से पहले उन्हें विमान से उतार दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि कैप्टन ने डिसेबल होने की वजह से उन्हें विमान से उतारने के निर्देश दिए थे। इसकी वजह से वे कांफ्रेंस में भाग नहीं ले पाईं और उन्हें मानसिक रूप से आघात पहुंचा।
स्पाइसजेट की दलील
स्पाइसजेट ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि जीजा ने नियमों का पालन नहीं किया था। टिकट बुकिंग के वक्त ही यात्री को बताना चाहिए कि वह डिसेबल है लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए केंद्र को सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वैसे तो डिसेबल के लिए कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी हैं लेकिन कोर्ट को लगता है कि इसमें सुधार की जरूरत है। कोर्ट की राय है कि सरकार को सभी हवाई अड्डों पर निःशक्त लोगों के लिए तमाम आधुनिक और स्टेंडर्ड सामान लगाना चाहिए। इसके अलावा व्हील चेयर को विमान के भीतर भी जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके अलावा क्रू को भी सही ट्रेनिंग देनी चाहिए।
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