नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए बुरी खबर आई है। कोर्ट ने प्रदेश में सरकार बनाने का रास्ता साफ करते हुए सरकार गठन को मंज़ूरी दे दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में यथास्थिति का फैसला वापिस ले लिया है। गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अरुणाचल प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की थी। सोमवार को कांग्रेस के असंतुष्ट कोलिखो पुल के नेतृत्व में 31 विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की थी और राज्य में अगली सरकार बनाने का दावा पेश किया था। उनके साथ कांग्रेस के 19 बागी विधायक और भाजपा के 11 विधायक और दो निर्दलीय सदस्य शामिल थे।
राज्य में राजनीतिक संकट
संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। मामला नबम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है और बताया जाता है कि पुल चाहते हैं कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 15 दिसबंर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पुल का दावा है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 47 में से 21 विधायकों के बागी होने के बाद टुकी की कांग्रेस सरकार अब अल्पमत में है। पुल ने यह भी कहा है कि कांग्रेस विद्रोहियों के साथ साथ बीजेपी के 11 सदस्यों की वजह से अब टुकी के खिलाफ 32 विधायक खड़े हैं।
वहीं कांग्रेस ने जवाब में कहा था कि 14 विधायकों की अयोग्यता और 2 के इस्तीफे के बाद विधानसभा की संख्या अब सिर्फ 44 ही रह गई है। इस हिसाब से तुकी फिलहाल अच्छे खासे बहुमत में है। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि राज्यपाल जेपी राजखौवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम किया है और वक्त से पहले विधानसभा सत्र का आयोजन करके कांग्रेस के बागी सांसदों की सरकार गिराने में मदद की है।
राज्य में राजनीतिक संकट
संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। मामला नबम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है और बताया जाता है कि पुल चाहते हैं कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 15 दिसबंर को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नबम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पुल का दावा है कि 60 सदस्यीय विधानसभा में 47 में से 21 विधायकों के बागी होने के बाद टुकी की कांग्रेस सरकार अब अल्पमत में है। पुल ने यह भी कहा है कि कांग्रेस विद्रोहियों के साथ साथ बीजेपी के 11 सदस्यों की वजह से अब टुकी के खिलाफ 32 विधायक खड़े हैं।
वहीं कांग्रेस ने जवाब में कहा था कि 14 विधायकों की अयोग्यता और 2 के इस्तीफे के बाद विधानसभा की संख्या अब सिर्फ 44 ही रह गई है। इस हिसाब से तुकी फिलहाल अच्छे खासे बहुमत में है। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि राज्यपाल जेपी राजखौवा 'बीजेपी के एजेंट' की तरह काम किया है और वक्त से पहले विधानसभा सत्र का आयोजन करके कांग्रेस के बागी सांसदों की सरकार गिराने में मदद की है।
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