भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
ऑनर किलिंग के एक दोषी को ट्रायल कोर्ट ने दो साल में ही उम्रकैद दे दी लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने में 36 साल लग गए। अब दोषी 92 साल का हो चुका है और बिस्तर से उठ नहीं पाता मगर हाईकोर्ट के फैसले के बाद उसकी उम्रकैद बरकरार है और सुप्रीम कोर्ट से याचिका ख़ारिज होने के बाद उसे उसे जेल जाना होगा।
शुक्रवार को दोषी पुत्ती की तरफ से दलील दी गई कि वो अब 92 साल का हो चुका है और लाचार है। उसे कभी भी गिरफ्तार कर जेल भेजा सकता है। एसे में उसके साथ अन्याय होगा। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट सजा पर रोक लगाए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज कर दिया। जिसका मतलब है कि 92 साल का दोषी पुत्ती जेल जायेगा। दरअसल नियम के मुताबिक अगर अदालत किसी को दोषी ठहराती है तो पहले उसे सरेंडर कर जेल जाना होता है तभी वो बड़ी अदालत में फ़ैसले को चुनौती दे सकता है। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला 36 साल बाद आया था लेकिन कोर्ट ने पुत्ती को दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
दरअसल 1980 में यूपी के उन्नाव में रहने वाले फेका ने अपने भाई स्नेही और चचेरे भाई पुत्ती के साथ मिलकर गांव के ही ननकू की हत्या कर दी थी क्योंकि वो उनकी शादीशुदा बहन को भगाकर ले गया था। पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार किया और 1982 में निचली अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
पुत्ती ने फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और खुद को बेकसूर बताया। उसकी दलील थी कि पुलिस ने उसे फंसाया है और ना ही आलाए कत्ल बरामद किया गया। लेकिन हाईकोर्ट का फैसला आने में 36 साल लग गए और फरवरी 2016 को हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। इस दौरान दो दोषियों की मौत हो गई। फैसले के बाद से ही पुत्ती पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
शुक्रवार को दोषी पुत्ती की तरफ से दलील दी गई कि वो अब 92 साल का हो चुका है और लाचार है। उसे कभी भी गिरफ्तार कर जेल भेजा सकता है। एसे में उसके साथ अन्याय होगा। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट सजा पर रोक लगाए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज कर दिया। जिसका मतलब है कि 92 साल का दोषी पुत्ती जेल जायेगा। दरअसल नियम के मुताबिक अगर अदालत किसी को दोषी ठहराती है तो पहले उसे सरेंडर कर जेल जाना होता है तभी वो बड़ी अदालत में फ़ैसले को चुनौती दे सकता है। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला 36 साल बाद आया था लेकिन कोर्ट ने पुत्ती को दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
दरअसल 1980 में यूपी के उन्नाव में रहने वाले फेका ने अपने भाई स्नेही और चचेरे भाई पुत्ती के साथ मिलकर गांव के ही ननकू की हत्या कर दी थी क्योंकि वो उनकी शादीशुदा बहन को भगाकर ले गया था। पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार किया और 1982 में निचली अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
पुत्ती ने फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और खुद को बेकसूर बताया। उसकी दलील थी कि पुलिस ने उसे फंसाया है और ना ही आलाए कत्ल बरामद किया गया। लेकिन हाईकोर्ट का फैसला आने में 36 साल लग गए और फरवरी 2016 को हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा। इस दौरान दो दोषियों की मौत हो गई। फैसले के बाद से ही पुत्ती पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है।
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