आरएसएस ने ऐतिहासिक मेकओवर करते हुए रविवार को अपने 90 साल पुराने ड्रेस कोड को बदल दिया। अब स्वयंसेवक खाकी हाफ पैंट की जगह भूरे रंग की फुल पैंट पहनेंगे। इसका फैसला राजस्थान के नागौर में चल रही आरएसएस की तीन दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन लिया गया।
इस बारे में जानकारी देते हुए आरएसएस के सुरेश जोशी ने कहा, 'हमारी पहचान केवल खाकी हाफ पैंट से ही नहीं है, बल्कि अन्य कई चीजें भी हैं, जो हमारी पहचान में शामिल हैं। जब हम नए रंग का उपयोग करना शुरू कर देंगे, तो लोगों को धीरे-धीरे इसकी आदत हो जाएगी।'
जब शनिवार को बैठक में हाफ पैंट को बदलने का निर्णय लिया जा रहा था, तो कुछ सदस्यों ने पैंट का रंग बदलने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि खाकी रंग एक प्रतीक है, जिसे नहीं बदला जाना चाहिए। ठीक उसी प्रकार से जैसे नीले रंग को दलितों से जोड़कर देखा जाता है, वैसे ही यह संघ का राजनीतिक प्रतीक है।
गौरतलब है कि अभी तक खाकी पैंट के साथ काली टोपी, सफेद शर्ट, भूरे मोजे और बांस का डंडा आरएसएस के पारंपरिक परिधान में शामिल रहे हैं, जिन्हें 'गणवेश' कहा जाता है।
इससे पहले शनिवार को जब यह ख़बर आई थी कि ख़ाकी पैंट की जगह आरएसएस के स्वयंसेवक ग्रे रंग की पैंट पहनेंगे, तो आरएसएस ने इन ख़बरों को बेबुनियाद बताया था।
इससे पूर्व शनिवार को आरएसएस ने खबरों का खंडन करते हुए ट्वीट करके कहा था, 'आरएसएस के यूनिफ़ॉर्म में बदलाव को लेकर अभी फ़ैसला नहीं लिया गया है। चर्चा जारी है। बदलाव को लेकर जो ख़बरें चल रही हैं वो सही नहीं हैं।'
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने बताया था कि 2010 में वर्दी में बदलाव का मुद्दा एक बैठक में उठाया गया था, लेकिन आम सहमति न बन पाने के कारण इसे 2015 तक टाल दिया गया था।
इस बारे में जानकारी देते हुए आरएसएस के सुरेश जोशी ने कहा, 'हमारी पहचान केवल खाकी हाफ पैंट से ही नहीं है, बल्कि अन्य कई चीजें भी हैं, जो हमारी पहचान में शामिल हैं। जब हम नए रंग का उपयोग करना शुरू कर देंगे, तो लोगों को धीरे-धीरे इसकी आदत हो जाएगी।'
जब शनिवार को बैठक में हाफ पैंट को बदलने का निर्णय लिया जा रहा था, तो कुछ सदस्यों ने पैंट का रंग बदलने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता का कहना है कि खाकी रंग एक प्रतीक है, जिसे नहीं बदला जाना चाहिए। ठीक उसी प्रकार से जैसे नीले रंग को दलितों से जोड़कर देखा जाता है, वैसे ही यह संघ का राजनीतिक प्रतीक है।
गौरतलब है कि अभी तक खाकी पैंट के साथ काली टोपी, सफेद शर्ट, भूरे मोजे और बांस का डंडा आरएसएस के पारंपरिक परिधान में शामिल रहे हैं, जिन्हें 'गणवेश' कहा जाता है।
इससे पहले शनिवार को जब यह ख़बर आई थी कि ख़ाकी पैंट की जगह आरएसएस के स्वयंसेवक ग्रे रंग की पैंट पहनेंगे, तो आरएसएस ने इन ख़बरों को बेबुनियाद बताया था।
इससे पूर्व शनिवार को आरएसएस ने खबरों का खंडन करते हुए ट्वीट करके कहा था, 'आरएसएस के यूनिफ़ॉर्म में बदलाव को लेकर अभी फ़ैसला नहीं लिया गया है। चर्चा जारी है। बदलाव को लेकर जो ख़बरें चल रही हैं वो सही नहीं हैं।'
The decision about change in uniform of RSS has not been taken yet. Discussion is on. News doing rounds about change is not true -Dr Vaidya
— RSS (@RSSorg) March 12, 2016
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने बताया था कि 2010 में वर्दी में बदलाव का मुद्दा एक बैठक में उठाया गया था, लेकिन आम सहमति न बन पाने के कारण इसे 2015 तक टाल दिया गया था।
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