
प्रतीकात्मक फोटो.
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याचिका के मुताबिक हरियाणा और दिल्ली के कैंप में कोई सुविधा नहीं
केंद्र सरकार मामले को राजनयिक तरीके से हल करना चाहती है
केंद्र ने कहा, देश में किसी को भी स्वास्थ्य सेवा से वंचित नही रखा गया
केंद्र सरकार ने मेवात और दिल्ली के कालिंदी कुंज के कैंप में रहने वाले रोहिंग्या को लेकर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का वक्त मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते का वक्त दिया है. मामले की अगली सुनवाई 9 मई को होगी.
याचिकाकर्ता का कहना है कि हरियाणा और दिल्ली के कैंप में कोई सुविधा नहीं हैं. वही केंद्र ने दोहराया कि ये मामला राजनयिक स्तर पर सुलझाया जा रहा है. कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए.
रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ खबरों में हेडलाइन बनाने के लिए कोई आदेश जारी नहीं करना चाहिए. केंद्र को इस मामले को राजनयिक तरीके से हल करने के लिए छोड़ देना चाहिए. केंद्र सरकार इस मुद्दे को म्यांमार और बांग्लादेश के साथ उठा रही है लेकिन इसका ब्यौरा सबको नहीं दे सकती. देश में किसी को भी स्वास्थ्य सेवा से वंचित नही रखा गया है चाहे वह देश का नागरिक हो या नहीं. केंद्र सरकार ने कहा कि अगर कोई हॉस्पिटल जाता है तो क्या उससे ये पूछा जाता है कि आप देश के नागरिक हो या नहीं.
दरअसल सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से प्रशांत भूषण ने कहा कि देश में रहने वाले रोहिंग्या समुदाय के लोगों को स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सेवा नहीं दी जा रही है. रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के केन्द्र के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.
VIDEO : रोहिंग्या पर सरकार का अलर्ट
इससे पहले केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दायर किया था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम से कहा कि वह उनको बाध्य नहीं कर सकती कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत आने दिया जाए. जिनके पास वैलिड ट्रेवल सर्टिफिकेट होगा बस उन्हीं को आने की अनुमति होगी. रोहिंग्या मुसलमान अगर बिना वैलिड यात्रा सर्टिफिकेट के भारत में आते हैं तो वह राष्ट्रहित में नहीं होगा. भारत में शरणार्थियों को भारत में पहचान पत्र देने की कोई नीति नहीं है. श्रीलंका के तमिल शरणार्थियों की तुलना रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों से नहीं की जा सकती क्योंकि द्विपक्षीय संधि के तहत तमिल शरणार्थियों को भारत आने की इजाजत दी गई थी.
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