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This Article is From Jul 15, 2021

Ravish Kumar Prime Time: महिलाओं, दलितों और गरीबों पर अत्याचार है योगी की 'टू चाइल्ड पॉलिसी', रवीश कुमार ने बताया कैसे?

Prime Time With Ravish Kumar: उन्होंने कहा कि नेशनल फैमिली सैंपल सर्वे का डेटा बताता है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जातियों में प्रजनन दर अधिक है और इसका सीधा संबंध उनकी गरीबी और अशिक्षा से है. शादियां भी कम उम्र में हो जाती हैं. तो क्या इस आधार पर इस तबके को सरकारी नौकरी से वंचित करना सही होगा?

Prime Time With Ravish Kumar: रवीश कुमार ने पूछा कि टू चाइल्ड पॉलिसी सिर्फ पंचायत चुनाव लड़ने वालों पर ही क्यों लागू हो?

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार (Ravish Kumar) ने अपने शो 'Prime Time With Ravish Kumar' के ताजा एपिसोड (14 जुलाई, 2021) में योगी सरकार की प्रस्तावित 'टू चाइल्ड पॉलिसी' को महिलाओं, दलितों और गरीबों पर अत्याचार बताया है. उन्होंने कहा है कि इसकी सबसे ज्यादा मार इन्हीं वर्ग को झेलना पड़ेगा. रवीश कुमार ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं को बच्चे जनने की भी आजादी न हो और जहां बेटे की चाह में कई बार गर्भपात करया जाता हो, वहां टू चाइल्ड पॉलिसी बेमानी लगती है.

उन्होंने ड्राफ्ट विधेयक के पहलुओं पर तंज कसते हुए कहा कि यह सिर्फ पंचायत चुनाव लड़ने वालों पर ही क्यों लागू हो? सांसदी और विधायकी का चुनाव लड़ने वालों पर क्यों नहीं लागू हो? वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, "यूपी सरकार कानून में इतना लिख दे कि जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे वे नए कानून लागू होने के बाद चुनाव नहीं लड़ सकेंगे तो फिर देखिए क्या होता है. सिर्फ इतना लिख देने भर से चौक-चौराहों की पान की गुमटियों पर जितने लोग आबादी को लेकर बहस कर रहे होंगे, बहस छोड़ भाग खड़े होंगे. यही नहीं उनके विधायक जी भी कानून के इन समर्थकों को अपने बोलेरो से नीचे उतार देंगे."

TOI की रिपोर्ट के हवाले से उन्होंने कहा कि बीजेपी के 50 फीसदी ऐसे विधायक हैं जिनके तीन या तीन से अधिक बच्चे हैं. क्या इसी कारण प्रस्तावित कानून में ऐसे विधायकों के चुनाव लड़ने पर रोक की बात नहीं कही गई है? रवीश ने इसी बहाने मीडिया पर भी निशाना साधा और यूपी पंचायत चुनावों में हुई हिंसा की खबरें नहीं दिखाने का मुद्दा उठाया.

उन्होंने कहा कि मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा हिंसा की खबरें नहीं दिखाने के बावजूद जहां-तहां से आमजनों तक हिंसा के वायरल वीडियो पहुंचते ही रहे. उन्होंने बताया कि लखीमपुर खीरी में जहां पुलिस ने महिला की साड़ी खींची थी, वहीं इटावा में पुलिस के अधिकारी शिकायत कर रहे थे कि बीजेपी के समर्थकों ने उन्हें थप्पड़ मारे और बम लेकर आए थे. 

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उन्होंने कहा, "पंचायत के चुनावों को हिंसा के इस प्रकोप से बचाए जाने की जरूरत है, न कि आबादी के प्रकोप से. ऐसे लोगों के पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक होनी चाहिए थी जो हिंसा फैलाते हैं." रवीश ने कहा कि ऐसे लोग जनसंख्या विस्फोट नहीं बल्कि कानून-व्यवस्था का विस्फोट कर रहे हैं, जिससे संवैधानिक मर्यादा धुआं-धुआं हो चुकी हैं.

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि 'टू चाइल्ड पॉलिसी' वाले प्रस्तावित कानून में संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का हनन होता हुआ दिखाई पड़ता है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पुरुषों को ही ध्यान में रखकर कानून बनाया गया है. उन्होंने कहा कि हमारे समाज में पढ़ी लिखी महिला हो या अनपढ़, बच्चा पैदा करने के मामले में उनके अधिकार बहुत कम होते हैं. उस पर परिवार का दबाव रहता है. ऐसे में उन्हें इसकी सजा नहीं दी जानी चाहिए. 

उन्होंने कहा कि अगर शादी के बहुत साल बाद कोई महिला अपना जीवन बनाने का फैसला करती है और सरकारी नौकरी में जाने की कोशिश करती है तो क्या सरकार उसे इस कानून से संरक्षण देगी. उन्होंने पूछा कि अगर तीन बच्चे के बाद किसी महिला के पति की मौत हो जाती है तो क्या उसे मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर उसे इतनी बड़ी सजा दी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि यह कानून महिलाओं को कितना कमजोर कर देगा क्या किसी ने सोचा है?

रवीश ने पूछा है, "इसकी गारंटी कौन देगा कि किसी विवाहित महिला को बेटे की चाह में पहले से ज्यादा ज़बरन गर्भपात के लिए मज़बूर नहीं किया जाएगा, जो उसकी जिंदगी के लिए भी घातक हो सकता है. क्या यह कानून एक महिला का उसके शरीर पर अधिकार पहले से कमज़ोर नहीं करता है?" 

उन्होंने कहा कि नेशनल फैमिली सैंपल सर्वे का डेटा बताता है कि अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जातियों में प्रजनन दर अधिक है और इसका सीधा संबंध उनकी गरीबी और अशिक्षा से है. शादियां भी कम उम्र में हो जाती हैं. तो क्या इस आधार पर इस तबके को सरकारी नौकरी से वंचित करना सही होगा?

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