''Too Much Democracy" Remark: नीति आयोग (Niti Aayog) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अमिताभ कांत (Amitabh Kant) ने मंगलवार को कहा था कि भारत में ‘कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है' जिसके कारण यहां कड़े सुधारों को लागू करना कठिन होता है. उन्होंने कहा था कि पहली बार केंद्र ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाने की इच्छाशक्ति दिखाई है. ‘कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है' संबंधी उनकी टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया आई थी. अभिताभ कांत के इस कमेंट को लेकर सरकार को कई सवालों का सामना करना पड़ा. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) ने कहा, हमें अपने लोकतंत्र पर गर्व है. अपनी इस प्रतिक्रिया के साथ ही सरकार ने अमिताभ कांत के कमेंट को लेकर आई प्रतिक्रियाओं को विराम देने की कोशिश की है.
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स्वराज्य पत्रिका (Swarajya magazine) के कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेन्स के जरिये संबोधित करते हुए कांत ने यह बात कही थी. उन्होंने जोर देकर कहा था कि देश को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये और बड़े सुधारों की जरूरत है. नीति आयोग के सीईओ ने कहा था, पहली बार केंद्र ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाया है. अब राज्यों को सुधारों के अगले चरण को आगे बढ़ाना चाहिए. कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, ‘‘भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बहुत मुश्किल है. इसकी वजह यह है कि चीन के विपरीत हम एक लोकतांत्रिक देश हैं ... हमें वैश्विक चैंपियन बनाने पर जोर देना चाहिए. आपको इन सुधारों (खनन, कोयला, श्रम, कृषि) को आगे बढ़ाने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.'' उन्होंने यह भी कहा था कि कड़े सुधारों को आगे बढ़ाये बिना चीन से प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है.
नीति आयोग के सीईओ ने इस बात पर जोर दिया था कि अगले दौर के सुधारों के लिये अब राज्यों को आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा था, ‘‘अगर 10-12 राज्य उच्च दर से वृद्धि करेंगे, तब इसका कोई कारण नहीं कि भारत उच्च दर से विकास नहीं करेगा. हमने केंद्र शासित प्रदेशों से वितरण कंपनियों के निजीकरण के लिये कहा है.वितरण कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए और सस्ती बिजली उपलब्ध करानी चाहिए.''मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा के किसानों के नये कृषि कानूनों को लेकर विरोध-प्रदर्शन से जुड़े सवाल के जवाब में कांत ने कहा कि कृषि क्षेत्र में सुधार की जरूरत है.उन्होंने कहा, ‘‘यह समझना जरूरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था बनी रहेगी, मंडियों में जैसे काम होता है, वैसे ही होता रहेगा.. किसानों के पास अपनी रूचि के हिसाब से अपनी उपज बेचने का विकल्प होना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें लाभ होगा. (भाषा से भी इनपुट)
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