रामनाथ कोविंद (फाइल फोटो)
देश के 14वें राष्ट्रपति बनने जा रहे रामनाथ कोविंद दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 1991 से बीजेपी से जुड़े कोविंद पार्टी के दलित मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं. कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने वाली संस्था दिव्य प्रेम सेवा मिशन के कोविंद संरक्षक हैं. इस पृष्ठभूमि में भाजपा नेताओं के मुताबिक, एक समय हालांकि ऐसा था, जब पार्टी कोविंद को बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ एक दलित चेहरे के तौर पर पेश करना चाहती थी.
कानपुर देहात में डेरापुर तहसील के झींझक कस्बे के एक छोटे से गांव परौंख के रहने वाले रामनाथ कोविंद की प्रारंभिक शिक्षा संदलपुर ब्लॉक के गांव खानपुर से हुई. कानपुर के बीएनएसडी इंटर कॉलेज से उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की. कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और इसके बाद डीएवी लॉ कॉलेज से वकालत की पढ़ाई की. कोविंद ने दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत की शुरुआत की. फिर दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 16 साल तक प्रैक्टिस की.
कोविंद को 8 अगस्त, 2015 को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया, तब नीतीश कुमार ने विरोध किया था. उनका कहना था यह नियुक्ति उनसे सलाह लिए बगैर की गई. हालांकि बाद में उनके बीच बेहतर आपसी तालमेल रहा. इसी का नतीजा था कि उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद नीतीश कुमार ने बेझिझक उनका समर्थन किया.
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कोविंद उत्तर प्रदेश से पहली बार 1994 में राज्यसभा के लिए सांसद चुने गए. वह 12 साल तक राज्यसभा सांसद रहे. इस दौरान उन्होंने शिक्षा से जुड़े कई मुद्दों को उठाया. वह कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे हैं. कोविंद की पहचान एक दलित चेहरे के रूप में रही है. छात्र जीवन में कोविंद ने अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए काम किया.
कोविंद आदिवासी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय, कानून न्याय व्यवस्था और राज्यसभा हाउस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अक्टूबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया.
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, "उन्हें प्रदेश इकाई में पार्टी का बड़ा चेहरा माना जाता है. कोविंद ने पार्टी के अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रवक्ता का पद भी संभाला. दलित छवि के चलते एक समय भाजपा उन्हें उप्र में मायावती के खिलाफ भी प्रोजेक्ट करने की सोच रही थी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ." उन्होंने बताया कि घाटमपुर से चुनाव लड़ने के बाद कोविंद लगातार क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहे.
VIDEO: रामनाथ कोविंद दो बार राज्यसभा सांसद रहे हैं
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कोविंद को 8 अगस्त, 2015 को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया, तब नीतीश कुमार ने विरोध किया था. उनका कहना था यह नियुक्ति उनसे सलाह लिए बगैर की गई. हालांकि बाद में उनके बीच बेहतर आपसी तालमेल रहा. इसी का नतीजा था कि उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद नीतीश कुमार ने बेझिझक उनका समर्थन किया.
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कोविंद उत्तर प्रदेश से पहली बार 1994 में राज्यसभा के लिए सांसद चुने गए. वह 12 साल तक राज्यसभा सांसद रहे. इस दौरान उन्होंने शिक्षा से जुड़े कई मुद्दों को उठाया. वह कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे हैं. कोविंद की पहचान एक दलित चेहरे के रूप में रही है. छात्र जीवन में कोविंद ने अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के लिए काम किया.
कोविंद आदिवासी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, सामाजिक न्याय, कानून न्याय व्यवस्था और राज्यसभा हाउस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अक्टूबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया.
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, "उन्हें प्रदेश इकाई में पार्टी का बड़ा चेहरा माना जाता है. कोविंद ने पार्टी के अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रवक्ता का पद भी संभाला. दलित छवि के चलते एक समय भाजपा उन्हें उप्र में मायावती के खिलाफ भी प्रोजेक्ट करने की सोच रही थी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ." उन्होंने बताया कि घाटमपुर से चुनाव लड़ने के बाद कोविंद लगातार क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहे.
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