राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से सचिन पायलट खेमे को राहत देने के वाले आदेश के खिलाफ राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. स्पीकर के वकील प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे से आज ही खुद मामले की सुनवाई का आग्रह करेंगे. याचिका में कहा गया है कि दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर द्वारा नोटिस जारी करने पर अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती. स्पीकर के आदेश जारी के करने के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती. आदेश जारी करने के बाद ही अदालत न्यायिक समीक्षा कर सकती है. स्पीकर ने अपनी याचिका में कहा कि स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट के 'किहोतो होलोहन' फैसले का हवाला दिया है.
स्पीकर की याचिका में क्या-क्या कहा गया है?
- स्पीकर की याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत स्पीकर को कार्यवाही से रोकने का आदेश दिया जो कि गलत है. इसमें कहा गया है कि 'उच्च न्यायालय ने जवाब देने से रोकने और उत्तरदाताओं के खिलाफ लंबित अयोग्यता कार्यवाही की सुनवाई करने पर रोक लगा दी, ये किहोतो होलोहन मामले में 1992 में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले का उल्लंघन है.'
- हाईकोर्ट ने 14.07.2020 के नोटिस को प्रभाव में रखते हुए अंतरिम पारित करने की बात कही, जो कि अभेद्य है और सीधे दसवीं अनुसूची की कार्यवाही में योग्यता समय की पाबंदी का उल्लंघन करता है. HC का आदेश स्पीकर के विशेष क्षेत्र में एक प्रत्यक्ष घुसपैठ है और यह आदेश सीधे दसवीं अनुसूची के पैरा 6 (2) के अनुच्छेद 212 के जनादेश के खिलाफ है.
- उच्च न्यायालय इस बात की सराहना करने में विफल रहा कि यह आदेश विधायिका और न्यायपालिका के बीच संविधान द्वारा परिकल्पित संतुलन को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. 1992 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अदालतें स्पीकर को दसवीं अनुसूची में आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती है और इस तरह का आदेश कानून में पूरी तरह से अमान्य है. हाईकोर्ट का आदेश विधायिका की शक्तियों के लिए अवैध, विकृत और विरोधाभासी है और संविधान के तहत इसकी परिकल्पना नहीं की गई है.
- उच्च न्यायालय इस बात की सराहना करने में विफल रहा कि 14.07.2020 को दिया गया नोटिस सदन की एक कार्यवाही है और अनुच्छेद 212 के तहत इस चरण पर न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता. उच्च न्यायालय को यह विचार करना चाहिए कि 14.07.2020 को दिया गया नोटिस केवल उत्तरदाताओं की टिप्पणियों को आमंत्रित करने तक सीमित था और उस स्तर पर उत्तरदाता के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं था.
- अयोग्यता पर किसी भी अंतिम निर्धारण या निर्णय से पहले की कारवाई जिसमें नोटिस भी शामिल है वो दसवीं अनुसूची के पैरा 6 (2) के तहत विधायी कार्यवाही के दायरे में है. उच्च न्यायालय को सराहना करनी चाहिए कि केवल स्पीकर का अंतिम फैसला ही सीमित आधार पर न्यायिक समीक्षा के लिए खुला है है.
- स्पीकर ने राजस्थान HC की डिवीजन बेंच द्वारा पारित अयोग्यता पर आगे की कार्रवाई पर रोक लगाने के आदेश पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है.
Video: स्पीकर सीपी जोशी ने NDTV से कहा- अयोग्य ठहराने से पहले दखल गलत
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