
Rajasthan Political Crisis: राजस्थान के सियासी संकट के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिस तेजी से सचिन पायलट के मामले में तत्परता से निर्णय लिए हैं, वह 73 वर्षीय कांग्रेस प्रमुख की नई नेतृत्व शैली को दर्शाता है. आमतौर पर ज्यादातर लोगों का मानना है कि सोनिया गांधी त्वरित गति से निर्णय नहीं लेती है. राजस्थान के युवा नेता सचिन पायलट के साथ वार्ताकार का रोल निभाने वाले एक शीर्ष नेता ने कहा, "एक सरकार को गिराने का प्रयास किया गया था. ऐसे में आप (सोनिया) निर्णय में देरी कैसे कर सकती हैं? "
वास्तव में वह त्वरित निर्णय लेने वालों में नहीं थीं. इस रिपोर्ट के लिए कांग्रेस से जुड़े जिन सूत्रों का इंटरव्यू किया गया, उनका कहना है कि सोनिया को धीमी गति से विचार करने के लिए जाना जाता है लेकिन सचिन पायलट को राजस्थान सरकार के नंबर 2 की पोजीशन और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने के मामले में उन्होंने रिकॉर्ड तेजी से विचार किया.जयपुर से दिल्ली पहुंचने के दो दिन बाद पायलट ने कहा कि वह इस गारंटी के बिना नहीं लौटेंगे कि वे सीएम पद पर अशोक गहलोत की जगह लेंगे, ऐसे में कांग्रेस प्रमुख के दूतों ने सुझाया कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए लेकिन पायलट को दिल्ली 'एक बड़ी भूमिका' दी जा सकती है.
दो सप्ताह पहले तक, 42 वर्ष के सचिन पायलट को पार्टी के भावी नेतृत्व के अहम किरदारों सें से एक माना जाता था. इस लिस्ट में सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी (जो किस पिछले साल तक पार्टी प्रमुख थे) और उनकी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा प्रमुख हैं. प्रियंका ने राजस्थान के सियासी संकट का हल तलाशने के लिए बार-बार सचिन पायलट से बात की थी. प्रियंका की टीम ने इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने अपनी मां सोनिया और भाई राहुल के साथ पायलट की दिल्ली में मीटिंग अरेंज करने का प्रस्ताव किया था लेकिन पायलट से विनम्रता के साथ इससे इनकार कर दिया. सचिन पायलट का कहना था कि जब सीएम गहलोत को लेकर सब कुछ तय है तो इस तरह की मीटिंग का कोई मतलब नहीं है.
सोनिया गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मामले से किनारा कर लिया. उन्होंने यह भी महसूस किया कि पायलट का भाजपा के साथ कुछ 'मौन जुड़ाव' भी है. सचिन पायलट की ओर से 18 बागी विधायकों को एकत्र करके बीजेपी शासित राज्य हरियाणा के रिसॉर्ट ले जाने के तथ्य ने उनके 'पॉलिटिकल शिफ्ट' को और पुष्ट किया. राज्य के उप मुख्यमंत्री और राजस्थान कांग्रेस प्रमुख होने के बावजूद बीजेपी के साथ इस जुड़ाव को बगावती तेवर के रूप में देखा गया और पायलट को दोनों अहम पदों से बेदखल करने का निर्णय ले लिया गया.
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