नई दिल्ली:
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच में यह खुलासा हुआ है कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने जानबूझकर और बेइमानी की मंशा से न तो नीलामी का रास्ता अपनाया और न ही प्रवेश शुल्क दोबारा तय करने पर विचार किया। इसी के चलते उन्होंने रेडियो तरंगों के लाइसेंस वर्ष 2001 के दाम पर मिट्टी के मोल दे डाले, जिससे सरकार को राजस्व की भारी हानि उठानी पड़ी। केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने विशेष न्यायालय में दाखिल आरोप पत्र में यह बात कही है। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि राजा ने यूनीटेक लिमिटेड के संजय चंद्रा, स्वान टेलिकॉम के शाहिद उस्मान बलवा और मुंबई स्थित डीबी रीयल्टी के निदेशक विनोद गोयनका के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची, जिसके तहत ही 2001 के मूल्यों पर स्पेक्ट्रम आवंटन किया इस संबंध में सरकार के विभिन्न वर्गों द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं को दरकिनार कर दिया गया। सीबीआई द्वारा विशेष अदालत में दायर आरोप पत्र में कहा है कि स्वान टेलिकॉम और यूनिटेक ही हैं जिनके साथ मिलकर राजा ने साजिश रची। यूनिफाइड एक्सेस सर्विस लाईसेंस की कोई अन्य आवेदक कंपनी इसमें शामिल थी इसके बारे में सीबीआई के हाथ कोई तथ्य नहीं लगा है। एजेंसी ने कहा है कि अब तक की जांच में यूएएसएल आवेदक कंपनियों के राजा तथा उनके सहयोगियों के साथ इस साजिश में शामिल होने के बारे में कोई सबूत नहीं मिला है। सीबीइआई ने आरोप पत्र में स्पष्ट कहा है कि सरकार के विभिन्न विभागों और कार्यक्षेत्रों से बार-बार सुझाव दिए जाने के बावजूद राजा ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए न तो उसकी नीलामी किए जाने और न ही प्रवेश शुल्क फिर से तय करने पर कोई विचार किया। बल्कि उसे वर्ष 2001 के दाम पर ही साजिश के साथ अंजाम दिया।
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