केरन सेक्टर में सेना का अभियान खत्म होने के करीब एक पखवाड़े बाद इस बारे में सवालिया निशान उठने लगे हैं कि पाकिस्तान से घुसपैठियों की लंबी घुसपैठ की घटना के दौरान आखिर हुआ क्या था। इस घुसपैठ के पीछे पाकिस्तान के विशेष बलों का हाथ बताया गया था।
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सेना का अभियान जिसे 8 अक्तूबर को खत्म बताया गया था, वह दरअसल इसके पांच दिन बाद भी तब तक चला जब तक कि सीमा सुरक्षाबल (बीएसएफ) और सेना की संयुक्त टीम शालबाटू स्थित तीन सीमावर्ती चौकियों तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो गई।
शालबाटू वह गांव है जो जम्मू-कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर के बीच बंटा है। यह गांव 1990 के दशक के शुरू में पाकिस्तान से घुसपैठ के बड़े मार्गों में से एक था।
केंद्रीय और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा केरन सेक्टर की मुठभेड़ के बारे में दायर की गई रिपोर्ट से घटना को लेकर सेना के दावे पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
सेना ने हालांकि, केरन अभियान पर सभी संदेहों को नकार दिया और कहा कि जमीन पर मौजूद भारतीय सैनिकों का नियंत्रण रेखा पर प्रभुत्व था और वे हर समय नियमित तौर पर अपनी चौकियों पर आ जा रहे थे।
घुसपैठ स्थल के आसपास आठ आतंकवादियों को मार गिराने के सेना के दावे पर इसकी यूनिटों द्वारा स्थानीय पुलिस में दर्ज कराई प्राथमिकियां सवालिया निशान लगा देती हैं। इन प्राथमिकियों में कहा गया है कि आतंकवादी तीन अलग-अलग जगहों पर मारे गए जो शालबाटू गांव से काफी दूर हैं।
तीन चौकियों खुखरी, कुलारी और मंगेर्टा को पिछले शनिवार को बीएसएफ और सेना ने संयुक्त रूप से अपने नियंत्रण में कर लिया था। ईमेल के जरिेये पूछे गए सवालों के जवाब में सेना मुख्यालय ने इससे इनकार किया और कहा, ‘यह गलत है। जमीन पर मौजूद सैनिक नियंत्रण रेखा पर प्रभुत्व बनाए हुए थे और हर समय नियमित तौर पर अपनी चौकियों पर आ जा रहे थे।’
पहली प्राथमिकी 24 सितंबर को दर्ज हुई थी जिसमें 65-70 साल की उम्र के बीच के एक आतंकवादी के मारे जाने की बात कही गई थी। प्राथमिकी 237-13 कुपवाड़ा में दर्ज हुई थी जिसमें कहा गया था कि लासडनाथ क्षेत्र में मुठभेड़ हुई। यह ऐसा स्थान है जहां से शालबाटू पहुंचने में तीन दिन लगते हैं।
एक जवान के घायल होने के बाद दूसरी प्राथमिकी 241-13 कुपवाड़ा में दर्ज हुई। यह घटना भी लासडनाथ क्षेत्र में हुई थी। तीसरी प्राथमिकी 09-13, 4 अक्तूबर को दर्ज हुई जिसमें सेना ने कहा कि गुज्जर डोर इलाके में दो आतंकवादी मारे गए। यह इलाका शालबाटू गांव के 27 किलोमीटर पश्चिम में है। यह प्राथमिकी केरन पुलिस थाने में दर्ज कराई गई थी।
गुज्जर डोर की घटना को लेकर सेना ने दावा किया कि वह तीसरे आतंकी का शव बरामद नहीं कर पाई। अपने जवाब में सेना ने कहा, ‘यह गलत धारणा है कि आतंकवादी 20-30 किलोमीटर अंदर आ गए थे।’
इसने कहा, ‘आतंकवादियों ने शुरू में शालबाटू क्षेत्र में घुसपैठ का दुस्साहसिक प्रयास किया, जिसे हमारे सैनिकों ने विफल कर दिया। जीवित बचे आतंकियों ने इसी सेक्टर में गुज्जर डोर और फतेहगली जैसे आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में कई जगहों से घुसने की कोशिश की, जहां उन्हें घेर लिया गया और मार गिराया गया।’
सेना ने यह भी कहा कि आठवां शव नियंत्रण रेखा पर पड़ा था और सीमा पार से हो रही गोलीबारी के बीच उसे उठाना कठिन था। सूत्रों ने इस बात पर हैरत जताई कि क्या शव को 20 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक खींचकर नियंत्रण रेखा पर ले जाया गया।
पाकिस्तानी मीडिया में कुछ खबरों में दावा किया गया कि भारतीय सेना के जवानों ने केरन सेक्टर के पास स्थित नीलम घाटी से तीन नागरिकों का अपहरण कर लिया, जिनमें से दो को मार दिया गया और एक बच निकला।
चौथी प्राथमिकी दोबारा केरन में दर्ज हुई जिसमें कहा गया कि क्षेत्र से 30 किलोमीटर दूर फतेहगली में चार आतंकवादी मारे गए।
दर्ज प्राथमिकियों के अनुसार सेना ने सात आतंकियों के शव, 11 एके राइफलें, 20 पिस्तौल, आठ रॉकेट लांचर, 12 ग्रेनेड लांचर, 44 ग्रेनेड, एक टॉमी गन, 41 मैगजीन, 24 पिस्तौल मैगजीन, एके राइफल की 985 गोलियां, पिस्तौल की 80 गोलियां और टॉमी गन की 52 गोलियां बरामद की हैं और शालबाटू क्षेत्र से कुछ भी बरामद नहीं हुआ।
हालांकि, सेना ने अपने जवाब में उल्लेख किया कि केरन सेक्टर में अभियान के दौरान 18 एके राइफलों सहित 59 हथियार बरामद किए और सेना ने सभी बरामदगी के बारे में प्राथमिकी दर्ज कराई है।
सूत्रों ने कहा कि मेजर जनरल रैंक के टुकड़ी कमांडर ने दावा किया था कि पिछले कुछ हफ्तों में अग्रिम क्षेत्रों में कई मुठभेड़ हुईं, लेकिन कभी शव नहीं सौंपे जो कानून के अनुरूप जरूरी है।
कश्मीर आधारित 15वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने 26 सितंबर को दावा किया था कि उन्होंने 30 आतंकवादियों के एक समूह को घेर लिया है जिनमें 10 से 12 मारे जा चुके हैं। हालांकि, आज की तारीख तक कोई शव बरामद नहीं हुआ।
इस बारे में पुष्टि नहीं हो पाई है कि ऐसे क्या कारण थे जो सेना को अचानक 8 अक्तूबर को अभियान खत्म होने की घोषणा करनी पड़ी, लेकिन घटनाक्रम से नजदीकी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि हो सकता है कि इस फैसले के बारे में उधमपुर स्थित सेनाधिकारियों को जानकारी ही नहीं दी गई हो। सूत्रों ने कहा कि कुपवाड़ा सेक्टर के प्रभारी एक मेजर जनरल द्वारा पिछले दिनों किए गए कुछ मुठभेड़ों के दावे पर भी संदेह है क्योंकि कोई शव बरामद नहीं हुआ है।
इन घटनाओं के बाद रक्षा मंत्रालय को इस महीने के अंत में होने वाले एक सम्मेलन में कमांडरों को यह कहने की सलाह दी जा सकती है कि किसी घटना का ज्यादा प्रचार करना सही नहीं है।
हालांकि, सेना ने इस तरह की खबरों को नकारते हुए उन्हें ‘गलत और भ्रामक’ बताया। ‘सेना अभियान पूरा होने पर सभी आतंकियों के शव पुलिस को सौंपती है।’
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