(चित्र सौजन्य : मालिनी सुब्रमण्यम)
सुकमा, छत्तीसगढ़ : दक्षिण बस्तर के सुकमा ज़िले के तोंगपाल थाने में पिछले कुछ दिनों से आदिवासी समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि पिछली 13 तारीख को एक आदिवासी मुचाकी हड़मा को नक्सली समर्थक होने के आरोप में उसके गांव कोलमकोंटा से उठा लिया गया। उसके बाद गांव वालों ने पिछली 16 तारीख से तोंगपाल थाने में विरोध प्रदर्शन किया।
कहा जा रहा है कि पांच हज़ार से अधिक गांव वाले हड़मा की रिहाई के लिये इकट्ठा हो गए। 17 तारीख को पुलिस ने इस भीड़ पर लाठीचार्ज किया और 3 आदिवासियों कवासी हड़मा, बुधरा पोड़िय़ामी, रामजी को गिरफ्तार कर लिया। गांव वालों का आरोप है कि इन आदिवासियों से हिरासत में मारपीट की गई। इन गांव के लोगों ने आदिवासियों के साथ हुई यातनाओं को साबित करने के लिए एनडीटीवी इंडिया को तस्वीरें भी भेजी हैं।
(चित्र सौजन्य : मालिनी सुब्रमण्यम)
आदिवासियों को कानूनी मदद दे रही वकील शालिनी ने बताया, ‘गांव के लोग निर्दोष आदिवासी हैं और उनका नक्सलियों से लेना देना नहीं है। पुलिस ने इन लोगों को हिरासत में यातनाएं दी हैं। हम इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना चाहते हैं लेकिन पुलिस केस दर्ज नहीं कर रही है।’
उधर पुलिस ने किसी को यातना देने या लाठीचार्ज के आरोप से साफ इनकार किया है। थाने के एसएचओ शिशुपाल सिंह का कहना है, ‘गांव वालों ने मुचाकी की गिरफ्तारी के बाद सड़क पर चक्का जाम किया और थाने का घेराव किया। हमने पुलिस फोर्स बुलाई जिसे देखकर लोगों में भगदड़ मची। उसी भगदड़ में कुछ लोगों को चोटें आईं हैं।’
पुलिस मुचाकी को नक्सली समर्थक बता रही है औऱ उसे जेल भेज दिया गया है। बस्तर के इस इलाके में पिछले कई दिनों से आदिवासियों की गिरफ्तारी और समर्पण को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। गांव के लोग आरोप लगाते रहे हैं कि पुलिस फर्जी सरेंडर करवाती है और मना करने पर नक्सली समर्थक बताकर गिरफ्तार करती है। नक्सलियों की मदद के लिए गिरफ्तार होने के बाद कोर्ट से निर्दोष करार दी गई दंतेवाड़ा की रहने वाली सोनी सोरी इन गांव वाले के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई कर रही हैं। सोनी ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था।
(चित्र सौजन्य : मालिनी सुब्रमण्यम)
सोनी का कहना है, ‘पुलिस लगातार निर्दोष गांव वालों को नक्सलियों का समर्थक या मुखबिर बता रही है जिससे यहां के गांवों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। पुलिस चाहती है कि गांव वाले नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में पुलिस के साथ सक्रिय रूप से काम करें। लेकिन गांव के लोग अंदरूनी इलाकों में रहते हैं और ऐसा करने पर उन्हें नक्सलियों से भी जान का खतरा है।’
असल में बस्तर में चल रही जंग में आम आदिवासी पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहा है और आए दिन ये घटनाएं हो रही हैं। उधर पुलिस अपने बचाव में कह रही है कि नक्सलियों के हमदर्द पुलिस के खिलाफ प्रचारतंत्र खड़ा कर रहे हैं और उसके लिए राजनीतिक विरोध की ढाल बनाते हैं।
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