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This Article is From Jan 25, 2019

जब अमेठी-रायबरेली में गली-गली घूमी थीं प्रियंका फिर भी हारी थी कांग्रेस, अब 'ट्रंप कार्ड' कैसे?

रायबरेली और अमेठी में वंशवाद जैसी बातों का जनता ध्यान नहीं देती है. वहां पर लोग आंख मूंदकर गांधी परिवार पर विश्वास करते रहे हैं. लेकिन इन सीटों के बाहर प्रियंका गांधी को इस सवाल पर भी जवाब तैयार रखना होगा.

जब अमेठी-रायबरेली में गली-गली घूमी थीं प्रियंका फिर भी हारी थी कांग्रेस, अब 'ट्रंप कार्ड' कैसे?
प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस में महासचिव बनाया गया है
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रायबरेली-अमेठी से पहली बार जाएंगी प्रियंका गांधी वाड्रा
कांग्रेस को खड़ा करने की बड़ी चुनौती
आजमगढ़ और वाराणसी की सीटों का पूर्वांचल पर असर
नई दिल्ली:

क्या कांग्रेस के अंदर प्रियंका गांधी सत्ता का नया केंद्र बनकर उभरेंगी, यह सवाल अभी उठना लाजिमी है. क्योंकि प्रियंका गांधी की राजनीति में औपचारिक इंट्री उस समय हुई है जब कांग्रेस ने हाल ही में तीन राज्यों में चुनाव जीतकर सरकार बनाई है और लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा और बीसएसपी गठबंधन से अलग सभी सीटों में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. साल 2004 से रायबरेली और अमेठी में प्रचार कर रही प्रियंका गांधी के लिए उत्तर प्रदेश में रास्ता इतना भी आसान नहीं है. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी में गली-गली प्रचार किया था. लेकिन नतीजे कांग्रेस के पक्ष में बिलकुल नहीं आई थी. रायबरेली की 5 विधानसभा सीटें, सरेनी, बंछरावा, हरचंदपुर, सरेनी, ऊंचाहार से कांग्रेस हार गई थी. जबकि इसी चुनाव में सपा ने यहां से चार सीटें जीती थीं. इसी तरह से अमेठी की चार विधानसभा सीटों में तिलोई, सलोन, गौरीगंज, अमेठी, जगदीशपुर में कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटों में ही जीत मिली थी. 

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वहीं बात करें साल 2014 के विधानसभा चुनाव की तो इस चुनाव में प्रियंका गांधी ने रायबरेली और अमेठी में जमकर प्रचार किया था. दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी. हालांकि अगर इन सीटों के लिए प्रियंका गांधी प्रचार में न भी उतरतीं तो भी कांग्रेस की ही जीत होती. क्योंकि अमेठी से राहुल गांधी और रायबरेली से सोनिया गांधी प्रत्याशी थीं. यह बात जरूर गौर करने वाली है कि अमेठी में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने ठीक-ठाक टक्कर दी थी और इस बार भी माना जा रहा है कि बीजेपी स्मृति ईरानी को ही अमेठी से उतारेगी. प्रियंका गांधी के सामने कांग्रेस उत्तर प्रदेश में जिंदा करने की बड़ी चुनौती है. लोकसभा चुनाव 2014 में रायबरेली और अमेठी में उनकी मौजूदगी का असर आसपास की सीटों पर रत्ती भर नहीं पड़ा था. लखनऊ, सुल्तानपुर, कानपुर, इलाहाबाद जैसी सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी लाखों के अंतर से हारे थे. वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें रायबरेली और अमेठी की 10 विधानसभा सीटों में कांग्रेस के खाते में सिर्फ 2 ही सीटें आई थीं. हालांकि इस चुनाव में प्रियंका गांधी चुनाव के लिए नहीं आई थीं. उस समय कांग्रेस के लिए रणनीति बना रहे प्रशांत किशोर, प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में चेहरा बनाने की भी सलाह भी दी थी.

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प्रियंका गांधी के पक्ष में कौन सी बातें

  • रायबरेली और अमेठी में उनके भाषणों को सुनने के बाद कहा जा सकता है कि वह अच्छी कम्युनिकेटर हैं, उनकी संवाद शैली अच्छी है और बड़ी-बड़ी बातों करने के बजाए स्थानीय मुद्दों और आम जनता से जुड़े मुद्दों पर फोकस करती हैं.
  • रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस के कार्यकर्ता उनमें इंदिरा की छवि देखते हैं. वह सख्त प्रशासक की छवि दिखती है और मीडिया से बातचीत के दौरान वह राहुल गांधी से ज्यादा सहज दिखती हैं.
  • उनके चेहरे के हाव-भाव में संजीदगी रहती है. वह गुस्से में नहीं दिखती हैं और तनाव का भी असर नहीं दिखता है. आम कार्यकर्ताओं से भी वह बात करती हैं.
  • इसी क्षेत्र में वह एक भाषण के दौरान वह लोगों से कहती हैं, 'हम लोगों को नहीं सोचना नहीं है कि हमारे बच्चे क्या करेंगे, वो अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं, सोचना आप लोगों को है कि आपके बच्चे क्या करेंगे.' प्रियंका गांधी का यह भाषण सोशल मीडिया पर भी खूब देखा गया.

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कौन सी बातें पक्ष में नहीं

  • रायबेरली में इस बार कांग्रेस के लिए थोड़ी मुश्किल इसलिए क्योंकि कांग्रेस से जुड़े कई क्षत्रप पार्टी से किनारा कर चुके हैं. इनमें से एक कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी बन चुके दिनेश प्रताप सिंह हैं. दिनेश प्रताप सिंह अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और उनका इलाके में अच्छा-खासा प्रभाव है और बीजेपी की ओर से वह टिकट के दावेदार हैं.
  • प्रियंका गांधी को पूरे पूर्वांचल की जिम्मेदारी दी गई है. जहां आजमगढ़ को छोड़कर सभी सीटें बीजेपी-एनडीए के खाते में हैं. पूर्वांचल में वाराणसी से पीएम मोदी भी प्रत्याशी होंगे. ऐसे में प्रियंका गांधी को कांग्रेस का संगठन खड़ा करने के साथ ही कद्दावर प्रत्याशी भी तलाशने होंगे.
  • इंदिरा के समय कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक एससी/एसटी और ब्राह्मण हुआ करते थे. इनमें एससी/एसटी अब बीएसपी के साथ और सवर्ण बीजेपी के साथ हैं. 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण लागू होने के बाद से बीजेपी को और फायदा हो सकता है. प्रियंका गांधी के सामने बड़ी चुनौती जातिगत समीकरणों को भी साधने की होगी.
  • रायबरेली और अमेठी में वंशवाद जैसी बातों का जनता ध्यान नहीं देती है. वहां पर लोग आंख मूंदकर गांधी परिवार पर विश्वास करते रहे हैं. लेकिन इन सीटों के बाहर प्रियंका गांधी को इस सवाल पर भी जवाब तैयार रखना होगा.
  • प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ गुड़गांव जमीन घोटाला मामले में जांच चल रही है. ऐसे में कांग्रेस भ्रष्टाचार का मुद्दा कैसे उठाएगी यह भी देखने वाली बात होगी. 

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