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This Article is From Feb 21, 2017

बिहार की जेलों में कैदियों की सबसे ज्यादा मौज? सुप्रीम कोर्ट कराएगा देश की जेलों का CAG ऑडिट

बिहार की जेलों में कैदियों की सबसे ज्यादा मौज? सुप्रीम कोर्ट कराएगा देश की जेलों का CAG ऑडिट
प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली: 2015-16 के आंकड़ों की मानें तो बिहार की जेलों में बंद कैदियों को सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. बिहार सरकार एक कैदी पर साल में औसतन 83,691 रुपये खर्च करती है, जबकि राजस्थान सरकार सिर्फ तीन हजार रुपये सालाना खर्च करती है. पंजाब में ये आंकड़ा 16,669 रुपये है, जबकि नगालैंड में 65,468 रुपये सालाना प्रति कैदी. ये आंकड़े किसी को भी चौंकाने के लिए काफी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इन पर अचरज जताया है. विभिन्न राज्यों में इस मद में अलग-अलग खर्च से हैरान सुप्रीम कोर्ट अब तमाम जेलों का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से ऑडिट कराने की तैयारी कर रहा है. कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से 31 मार्च तक योजना मांगी है कि किस तरीके से जेलों के खर्च का ऑडिट कर पता लगाया जा सकता है कि ये पैसा सूझबूझ से खर्च किया जा रहा है या नहीं और कैदियों को इसका लाभ मिल भी रहा है या नहीं.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में स्टाफ पर कमी पर भी चिंता जताते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 31 मार्च तक जेलकर्मियों की भर्ती के कदम उठाने को कहा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एमिक्स क्यूरी ने 2014 को लोकसभा में रखे गए जवाब का हवाला दिया जिसमें बताया गया था कि 31 दिसंबर 2014 तक देश में 79,988 जेलकर्मियों के पद स्वीकृत थे, जबकि कुल 52,666 जेलकर्मी ही काम कर रहे हैं. यानी जेलों में 27 हजार कर्मियों के पद खाली हैं.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने जेलकर्मियों की ट्रेनिंग पर भी बड़े सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा जेल कर्मियों में से सिर्फ 7800 को ही किसी तरह की ट्रेनिंग दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि वो 31 मार्च तक राज्य सरकारों से बात कर जेलकर्मियों के लिए ट्रेनिंग का कोई मैन्युअल तैयार करे. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले मे केंद्र का सहयोग करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारी जुर्माना लगाया जाएगा. अब सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई 12 अप्रैल को करेगा. दरअसल, 2013 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी ने तमिलनाडु की जेल में बंद कैदियों के हालात पर तत्कालीन सीजीआई को एक चिट्ठी लिखी थी. सुप्रीम कोर्ट इस पर संज्ञान लेकर सुनवाई कर चुका है. इससे पहले भी कोर्ट कई दिशा निर्देश जारी कर चुका है.

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