Prisoners Condition
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क्यों हो रही है कैदियों की इलेक्ट्रानिक निगरानी की बात, क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा
- Tuesday December 3, 2024
- Written by: राजेश कुमार आर्य
सुप्रीम कोर्ट की एक रिपोर्ट में जमानत पर या दूसरे तरीकों से रिहा हुए कैदियों की इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निगरानी की वकालत की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी निगरानी से जेलों में से कैदियों की भीड़ कम होगी. इस निगरानी के कुछ नैतिक पहलू भी हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- लोगों के पास पहनने को कपड़े नहीं और सरकार जनता को वाशिंग मशीन बांट रही है, जानें क्या है पूरा मामला
- Wednesday August 8, 2018
- Reported by: आशीष भार्गव
सुप्रीम कोर्ट के हर मुद्दे पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने से खुद को रोकना चाहिए. इस पर जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि हमने भी बहुत सी ऐसी चीज़ें देखी हैं जिससे देश मे तमाम समस्याओं के समाधान के लिए आवंटित बजट का इस्तेमाल तक नहीं किया गया.
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बिहार की जेलों में कैदियों की सबसे ज्यादा मौज? सुप्रीम कोर्ट कराएगा देश की जेलों का CAG ऑडिट
- Tuesday February 21, 2017
- Reported by: आशीष कुमार भार्गव, Edited by: सुनील कुमार सिरीज
2015-16 के आंकड़ों की मानें तो बिहार की जेलों में बंद कैदियों को सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. बिहार सरकार एक कैदी पर साल में औसतन 83,691 रुपये खर्च करती है, जबकि राजस्थान सरकार सिर्फ तीन हजार रुपये सालाना खर्च करती है. पंजाब में ये आंकड़ा 16,669 रुपये है, जबकि नगालैंड में 65,468 रुपये सालाना प्रति कैदी. ये आंकड़े किसी को भी चौंकाने के लिए काफी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इन पर अचरज जताया है.
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क्यों हो रही है कैदियों की इलेक्ट्रानिक निगरानी की बात, क्या यह निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा
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सुप्रीम कोर्ट की एक रिपोर्ट में जमानत पर या दूसरे तरीकों से रिहा हुए कैदियों की इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निगरानी की वकालत की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी निगरानी से जेलों में से कैदियों की भीड़ कम होगी. इस निगरानी के कुछ नैतिक पहलू भी हैं.
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सुप्रीम कोर्ट के हर मुद्दे पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने से खुद को रोकना चाहिए. इस पर जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि हमने भी बहुत सी ऐसी चीज़ें देखी हैं जिससे देश मे तमाम समस्याओं के समाधान के लिए आवंटित बजट का इस्तेमाल तक नहीं किया गया.
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2015-16 के आंकड़ों की मानें तो बिहार की जेलों में बंद कैदियों को सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है. बिहार सरकार एक कैदी पर साल में औसतन 83,691 रुपये खर्च करती है, जबकि राजस्थान सरकार सिर्फ तीन हजार रुपये सालाना खर्च करती है. पंजाब में ये आंकड़ा 16,669 रुपये है, जबकि नगालैंड में 65,468 रुपये सालाना प्रति कैदी. ये आंकड़े किसी को भी चौंकाने के लिए काफी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी इन पर अचरज जताया है.
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