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This Article is From Jul 23, 2014

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या शिवसेना सांसद का तरीका जायज है?

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या शिवसेना सांसद का तरीका जायज है?
नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। बात इसकी नहीं है कि किसी ने माफी मांगी या नहीं। बात इसकी है कि कुछ तो हमारे आस पास हो रहा है जिसे लेकर हम ज़रूरत से ज्यादा सामान्य होते जा रहे हैं। सामान्य इस तरह से कि कहीं लाउडस्पीकर लगाने को लेकर तो कहीं ताजिया का जुलूस निकालने को लेकर हम लोग आपस में लड़ भिड़ जा रहे हैं और सारे मामले को कानून व्यवस्था का सवाल बनाकर राज्य सरकार बनाम किसी राजनीतिक दल तक समेट कर रख दिया जाता है। हम इस हद तक सामान्य हो चुके हैं कि हम स्वीकार करने लगे हैं कि चुनाव का समय है तो इस उस समुदाय के बीच तनाव होगा ही। खतरनाक किसी सांसद का व्यवहार या बयान नहीं है, खतरनाक है हमारा ऐसी बातों को लेकर सामान्य यानी नार्मल होते जाना।

दिनभर टीवी पर आपने इस वीडियो को देखा ही होगा। इसमें एक सांसद एक कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंस रहे हैं। ये जनाब ठाणे से शिवसेना के सांसद हैं, राजन विचारे और जिसके मुंह में रोटी ठूंसी जा रही है, वो हैं अरशद ज़ुबैर, महाराष्ट्र सदन में आईआरसीटीसी के रेसिडेंट मैनेजर। अरशद का कहना है कि ऐसा करने से उसका रोज़ा समय से पहले टूट गया। एक सांसद का यह व्यवहार क्या आपको नार्मल लगा।

एक सांसद को क्या आपने वोट देने के अलावा यह भी अधिकार दिया है कि उसे गुस्सा आ जाए तो किसी के मुंह में ठूंस दे या ट्रैफिक पर उतर कर किसी पुलिस वाले की धुनाई कर दे। पर आप नार्मल न होते तो इस संसद में भी 34 प्रतिशत ऐसे सांसदों को न चुनते जिनपर किसी न किसी प्रकार के आपराधिक आरोप लगे हैं। हत्या जैसे गंभीर आरोप तो नहीं मगर 420 टाइप के राजन विचारे पर भी 11 मामले दर्ज हैं। ठाणे के पूर्व मेयर रह चुके विचारे की वेबसाइट से पता चला कि राष्ट्रपति कलाम ने उन्हें नेशनल एनर्जी अवार्ड भी दिया है।

शिव सेना सांसद राजन विचारे ने बयान दिया कि महाराष्ट्र सदन में खराब भोजन पानी की पहले भी शिकायत कर चुके हैं, लेकिन दो महीने से सुधार नहीं हुआ। हमने जानबूझकर ऐसा नहीं किया न ही खाने के लिए बाध्य किया। टीवी में संवेदनशील तस्वीरों को लूप में यानी बार-बार चलाना ठीक नहीं होता। इससे आपके अंदर का आक्रोश भड़क सकता है, इसलिए हम इस हिस्से में वीडियो की जगह तस्वीर से दिखा रहे हैं कि क्या वाकई खाने के लिए मजबूर नहीं किया राजन ने।

पर तस्वीर ठूंसने तक की तो गवाही देती है। राजन ने कहा कि उन्होंने रोटी तोड़ी नहीं। मगर इस तस्वीर में एक दूसरे सांसद रोटी खींच कर बता रहे हैं कि कितनी सख्त हो गई है।

कई चैनलों पर यह खबर किसी गुमनाम एक अंग्रेजी अखबार के हवाले से चल रही होगी। आज जिस अखबार में यह खबर छपी उसका नाम है द इंडियन एक्सप्रेस और रिपोर्टर हैं दीपांकर घोष। इस पूरे विवाद में संयम का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए और एक मौका इस बात को भी देना चाहिए कि हो सकता है कि गुस्से में सांसद महोदय को ध्यान ही न रहा हो कि सामने वाला अरशद है और उसका रोज़ा है। अगर आप यह मान लें तो भी आपसे यह मानने की ज़िद नहीं कर सकता कि सांसद महोदय को किसी कर्मचारी के साथ ऐसा करने का अधिकार है।

अगर सांसद महोदय सिर्फ गुस्से का मामला समझ कर भी माफी मांग लेते तो क्या इस गुस्से को लेकर सांसद महोदय को अफसोस नहीं करना चाहिए। ये तो धर्म का भी मामला नहीं है। वैसे अरशद ने कहा, 'मैंने अपनी वर्दी पहनी हुई थी। उस पर मेरा नाम भी लिखा था। सारे लोग मेरा नाम भी जानते थे। इसकी वजह से मेरा रोज़ा टूटा है।'

संजय राउत ने कहा कि किसी के माथे पर नहीं लिखा होता कि वह किस धर्म का है। यह आंदोलन का तरीका था। अब आपके पास दो विकल्प हैं। या तो आंदोलन के इस तरीके को स्वीकार कर लें या फिर आप उनकी ये बात मान लें कि किसी के माथे पर धर्म नहीं लिखा होता। वैसे वर्दी पर नाम लिखा था तो ऐसे सदनों में आने जाने वाले नेता वहां के कर्मचारियों को नाम से नहीं तो शकल से पहचानते ही हैं।

अरशद तो रेसिडेंट मैनेजर है और मैनेजर का नाम पता होता है। अरशद जिस आईआरसीटीसी का कर्मचारी है उन लोगों ने ज़रूर इस मामले की शिकायत की। ये अलग बात है कि घटना के सात दिनों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार घटना के चंद घंटों के भीतर आईआरसीटीसी ने अपने सारे काम रोक दिए। महाराष्ट्र के रेसिडेंट कमिश्नर से लिखित शिकायत की कि उनका एक कर्मचारी अरशद ज़ुबैर गंभीर रूप से आहत और दुखी है क्योंकि इससे धार्मिक भावना जुड़ी है। रेसिडेंट कमिश्नर ने आईआरसीटीसी और अरशद से माफी भी मांग ली। 17 जुलाई को अपने ईमेल में आईआरसीटीसी के डिप्टी मैनेजर ने लिखा कि आज 12−15 सांसदों की न्यू महाराष्ट्र सदन में बैठक हुई। वे बिजली, सिविल और साफ सफाई और खाने पीने को लेकर शिकायत कर रहे थे। पूरा डेलिगेशन जिसमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी शामिल था, महाराष्ट्र सदन के पब्लिक डाइनिंग हॉल में घुस आया और बुफे एरिया में बर्तनों के ढक्कनों को उठाकर फेंकने लगा। कर्मचारियों को मारने पीटने की धमकी दी और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। अरशद को पूरी चपाती खाने के लिए मजबूर किया गया जबकि वो रोज़े पर था।

एक चैनल पर हमने देखा कि सांसद बुफे एरिया में ढक्कनों को फेंक नहीं रहे थे बल्कि उठा उठाकर देख रहे थे। अब सवाल है कि क्या इस घटना के वक्त या बाद में शिवसेना के सांसदों ने अरशद से कोई खेद जताया। जबकि बीजेपी के नेता शिवसेना से ज्यादा माफी मांग रहे थे। शिवसेना ने खुलकर माफी नहीं मांगी न खेद जताया। उल्टा आरोप लगाने लगी कि उसे बदनाम किया जा रहा है। इस बीच बुधवार को लोकसभा में एक और वाकया हो गया जब बीजेपी के एक सांसद विधूड़ी और ओवैसी के बीच बहस हो गई और विधूड़ी जी ने कुछ अभद्र बातें कह दीं। संसदीय कार्यमंत्री वेकैंया नायडू ने भी सख्ती से कह दिया कि पार्टी ऐसे बर्ताव को मान्यता नहीं देती। स्पीकर और वेकैंया के कहने पर विधूड़ी को माफी भी मांगनी पड़ी।

हम तो बस इतना सा सवाल करेंगे कि आखिर यह कैसी राजनीतिक संस्कृति है जहां अशोक सिंघल से लेकर प्रणीव तोगड़िया और ओवैसी बंधु तक कुछ भी बोल जाते हैं। इनकी बातों के पीछे लोग जमा हो जाते हैं और एक दूसरे के खिलाफ कुछ भी बोलने लगते हैं। हम सब नार्मल यानी सामान्य होने की तमाम हदों को पार करते हुए यहां तक आ गए हैं, अब उल्टा सेकुलर होने को लेकर ही गरियाते हुए फ़ख्र महसूस करते हैं। प्राइम टाइम।

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