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This Article is From Jan 17, 2017

अदम्य साहसी 25 बच्चों को पीएम नरेंद्र मोदी 23 जनवरी को देंगे वीरता पुरस्कार

अदम्य साहसी 25 बच्चों को पीएम नरेंद्र मोदी 23 जनवरी को देंगे वीरता पुरस्कार
पीएम नरेंद्र मोदी 23 जनवरी को 25 बच्चों को राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार से सम्मानित करेंगे.
नई दिल्ली: अपनी बहादुरी से दूसरों के लिए उदाहरण बने पच्चीस बच्चों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जनवरी को राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार देंगे. इनमें 12 लड़कियां हैं और 13 लड़के शामिल हैं. यह बच्चे गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होंगे. चार बच्चों को बहादुरी अवार्ड मरणोपरांत दिया जा रहा है.

यह पुरस्कार हर साल छह से अठारह साल के बच्चों को दिया जाता है. इन बच्चों के साहसिक कारनामे किसी को भी दांतों तले उंगलियां दबाने पर मजबूर कर सकते हैं. इन बच्चों ने अपने साहस, संयम, सूझ-बूझ और हिम्मत के बल पर दूसरों की जिंदगियां बचाई हैं.

अपनी जान देकर दो सहेलियों को बचा लिया
अरुणाचल प्रदेश की आठ साल की तार पीजू बीती साल मई को अपनी सहेलियों के साथ नदी पार करके फॉर्म हाउस जा रही थी. तभी नदी की तेज धारा में उसकी दो सहेलियां बह गईं. तार पीजू ने पानी में छलांग लगाकर अपनी दोनों सहेलियों की जान बचा ली, लेकिन खुद तार पीजू नदी की बालू में फंस गई. उसको बचाया नहीं जा सका. अपने प्राणों की आहूति देकर अपार साहस का परिचय देने वाली तार पीजू को भारत अवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है. पीजू के पिता तारह कामा कहते हैं उन्हें अफसोस तो है उनकी बच्ची अब नहीं रही लेकिन गर्व भी है कि उसने दो जान बचाईं.

अंतरराष्ट्रीय सेक्स रैकेट का भांडाफोड़ किया
इस बार गीता चोपड़ा अवार्ड दिया जा रहा है पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग की रहने वाली 17 साल की तेजस्विता प्रधान और साढ़े 16 साल की शिवानी गोंद को. उन्होंने फेसबुक के जरिए एक अंतरराष्ट्रीय सेक्स रैकेट का भांडाफोड़ किया. दरअसल, दार्जिलिंग से बड़ी तादाद में लड़कियों की तस्करी की जाती है. यह दोनों लड़कियां स्टूडेंट्स अंगेस्ट ट्रैफिकिंग क्लब की सदस्य हैं. नेपाल के एक एनजीओ ने जब इनके क्लब को एक लड़की के गायब होने की सूचना दी तो दोनों लड़कियों ने गायब हुई लड़की से पहले तो फेसबुक पर दोस्ती की और फिर नौकरी की तलाश का बहाना बनाकर उसके जरिए देह-व्यापार का पर्दाफाश किया. इस नेटवर्क को चलाने वाले मुख्य आरोपी को दिल्ली से पकड़ लिया गया.

उम्र 14 साल, तेंदुए को मार भगाया
उत्तराखंड के चौदह साल के सुमित अपने बड़े भाई के साथ खेत में जा रहे थे. तभी झाड़ियों में छिपे तेंदुए ने उन पर हमला कर दिया. सुमित ने आव देखा न ताव, तेंदुए की पूंछ पकड़ ली और उस पर ताबड़तोड़ दरांती से वार किए. तेंदुआ भाग खड़ा हुआ. बड़े भाई रीतेश के सिर से खून बह रहा था जिसको सुमित ने अस्पताल पहुंचाया. सुमित ममगई ने कहा कि उसे तेंदुआ देखकर डर नहीं लगा बल्कि यह लगा कि अगर वह भाग जाता तो उसके माता-पिता क्या कहते.

भाई-बहन ने चोर को धरदबोचा
दिल्ली में रहने वाले अक्षित और अक्षिता भी हिम्मत और बहादुरी की शानदार मिसाल हैं. दोनों स्कूल से घर लौटे तो दरवाजा अंदर से बंद मिला. खटखटाने पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला. रोशनदान से झांका तो दो चोर घूमते दिखाई दिए. एक चोर बालकनी से भाग गया लेकिन दूसरे को अक्षित ने जकड़ लिया. अक्षिता भी आ गई. दोनों ने चोर-चोर से चिल्लाया तो पड़ोसी वहां आ पहुंचे और चोर को पुलिस के हवाले कर दिया.

सात साल के सोनू ने कोबरा को उठाकर फेंका
छत्तीसगढ़ की नीलम ध्रुव शाम के वक्त अपनी दोस्त टिकेश्वरी के साथ तालाब में नहा रही थी. तभी टिकेश्वरी का पैर फिसला और वह डूबने लगी. सात साल की नीलम ने अपनी जान की परवाह न करते हुए टिकेश्वरी के बाल पकड़ लिए. राजस्थान का सोनू माली चौथी में पढ़ता था. लगभग सत्तर बच्चे फर्श पर बैठे थे कि एक कोबरा सांप वहां आ गया. महज सात साल के सोनू ने उसे अपने हाथों से उठा कर फेंक दिया. उसकी मां संतोषी देवी वीरता पुरस्कार मिलने पर काफी खुश हैं.

हर साल भारतीय बाल कल्याण परिषद की ओर से छह से अठारह साल की उम्र के बच्चों को अपने अदम्य साहस के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार दिए जाते हैं. इन बच्चों ने अपने साहस, संयम, सूझ-बूझ और हिम्मत के बल पर दूसरों की जिंदगियां बचाई हैं.

बहादुर बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित करने की शुरुआत 1957 में हुई. गांधी जयंती पर दिल्ली के रामलीला मैदान पर एक कार्यक्रम के दौरान पंडाल में आग लग गई और तकरीबन 100 लोग उसमें फंस गए. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी शामिल हुए थे. तभी 14 साल के हरिशचंद्र मेहरा ने शामियाने का एक हिस्सा अपने चाकू से काट दिया. इससे आग का फैलाव  रुक गया और लोगों के निकलने का रास्ता भी बन गया. हरिशचंद्र की बहादुरी से प्रेरित होकर जवाहरलाल नेहरू ने बहादुर बच्चों के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार की घोषणा की थी. पहला राष्ट्रीय पुरस्कार चार फरवरी 1958 को हरिशचंद्र और एक अन्य बच्चे को दिया गया था. अब तक 945 बहादुर बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें 669 लड़के और 276 लड़कियां शामिल हैं. इन बच्चों पर देश को नाज है.

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