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This Article is From Jul 24, 2017

विकास के लिए समानता जरूरी है : राष्ट्र के नाम विदाई संदेश में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

'असमान बेड़ियों और हमें लंबे समय तक बांधने वाली अन्य श्रृंखलाओं से मुक्त कर दिया. इससे एक सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की प्रेरणा मिली जिसने भारतीय समाज को आधुनिक के पथ पर अग्रसर किया.'

विकास के लिए समानता जरूरी है : राष्ट्र के नाम विदाई संदेश में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: वर्तमान राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल का आज अंतिम दिन है. इस मौके पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने विदाई संबोधन में कहा, 'मैं पद मुक्त होने की पूर्व संध्या पर मेरे प्रति व्यक्त किए गए विश्वास और भरोसे के लिए भारत की जनता, उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों के हार्दिक आभार से अभिभूत हूं. मैं उनकी विनम्रता और प्रेम से सम्मानित हुआ हूं. मैंने देश को जितना दिया, उससे अधिक पाया है. इसके लिए मैं भारत के लोगों का सदैव ऋणी रहूंगा. मैं भावी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देता हूं.'

हमारे संस्थापकों ने संविधान को अपनाने के साथ ही ऐसी प्रबल शक्तियों को सक्रिय किया जिन्होंने हमें लिंग, जाति, समुदाय की असमान बेड़ियों और हमें लंबे समय तक बांधने वाली अन्य श्रृंखलाओं से मुक्त कर दिया. इससे एक सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की प्रेरणा मिली जिससे भारतीय समाज को आधुनिक के पथ पर अग्रसर किया.

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एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वों- प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्षता अथव समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता पर होता है. विकास को वास्तविक बनाने के लिए, देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र का एक भाग है.

उन्‍होंने कहा, 'पांच वर्ष पहले, जब मैंने गणतंत्र के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो मैंने अपने संविधान का न केवल शब्दश: बल्कि मूल भावना के साथ संरक्षण, सुरक्षा, और परिरक्षण करने का वचन दिया. इन पांच वर्षों के प्रत्येक दिन मुझे अपने दायित्व का बोध था. मैंने देश के सुदूर हिस्से की यात्राओं से सीख हासिल की. मैंने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के युवा और प्रतिभावान लोगों, वैज्ञानिकों, विद्वानों, कानूनविदों, लेखकों, कलाकारों और विभिन्न क्षेत्रों के अग्रणियों के साथ बातचीत से सीखा. ये बातचीत मुझे एकाग्रता और प्रेरणा देती रही. मैंने कड़े प्रयास किए. मैं अपने दायित्वों को निभाने में कितना सफल रहा, इसकी परख इतिहास के कठोर मानदंड द्वारा ही हो पाएगी.'

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प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं हैं. पिछले 50 वर्षों के सार्वजनिक जीवन के दौरान- भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है, भारत की संसद मेरा मंदिर रही है और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रही है.'

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14वें राष्‍ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को शपथ लेंगे. सोमवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्‍ट्रपति भवन में अपने संबोधन में कहा, 'मुझ जैसे नए व्यक्ति को चीजें समझने में और  निर्णय लेने में उनकी प्रमुख भूमिका रही. उन्‍होंने कहा कि राष्ट्रपति की बातें मेरे लिए पथ प्रदर्शक का काम करेंगी. राष्ट्रपति ने सरकार के हर निर्णय का वर्तमान के सन्दर्भ में ही मूल्यांकन किया.' पीएम ने इस मौके पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर लिखी गई पुस्तक 'सेलेक्टेड स्पीचेज' का विमोचन भी किया.

VIDEO: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी का विदाई समारोह

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