प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की उस पुस्तक का गुरुवार को उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने विमोचन किया, जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या, बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाया जाना, ऑपरेशन ब्लू स्टार और राजीव गांधी कैबिनेट से उनके निकाले जाने सहित उनके राजनीतिक जीवन की अहम घटनाओं का जिक्र किया गया है।
प्रणब ने 'द टरबुलेंट ईयर: 1980-1996' में 1980 और 1990 के दशक के उन कुछ यादगार घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिन्हें आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सर्वाधिक कलह पैदा करने वाला माना जाता है। पुस्तक में प्रणब ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को वक्त से आगे के शख्स और तकनीक पसंद बताया है।
कांग्रेस से निकाले जाने को अपनी नाकामी माना
मुखर्जी ने राजीव गांधी की कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से खुद को निकाले जाने को एक 'नाकामी' जैसा माना है जिसे उन्होंने खुद पैदा किया था। उन्होंने कहा, 'मैंने पुस्तक में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि मुझे ऐसी परिस्थिति नहीं लानी चाहिए थी क्योंकि मैं कभी भी जन नेता नहीं था और मेरा कभी उस तरह का समर्थन आधार नहीं था जैसा कि 1960 के दशक में अजय मुखर्जी या हाल में ममता जैसे बागी नेता और एक तरह से खुद इंदिरा जी का था।'
पुस्तक में हर बड़े सियासी घटनाक्रम का है जिक्र
मुखर्जी ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से लेकर राष्ट्र के नेता के तौर पर पीवी नरसिम्हा राव के उभरने तक हर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर नये सिरे से प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा, 'यह पाठकों को पढ़ना है और अपने खुद के निष्कर्ष पर पहुंचना है। मैंने जानबूझकर उन विषयों पर बात नहीं की जो अत्यधिक गोपनीय हैं। मेरा थोड़ा सा रूढिवादी रुख है। जब कभी सरकार तथ्यों को जारी कर देगी, लोग जान जाएंगे। ऐसे किसी व्यक्ति के हवाले से नहीं जो सरकार में मौजूद था।' राजनीतिक जीवन में प्रवेश के बाद संस्मरण का यह दूसरा हिस्सा है। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व कैग विनोद राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री करन सिंह सहित अन्य लोग मौजूद थे।
राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के नाम से बनाई थी पार्टी
दोनों नेताओं ने उस वक्त के राजनीतिक हालात और राजीव को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के बारे में कांग्रेसजनों की राय पर चर्चा की थी । राजीव प्रधानमंत्री बनने पर सहमत हो गए थे । प्रणब आगे लिखते हैं, 'मैं बाथरूम से बाहर आया और राजीव के फैसले से हर किसी को वाकिफ करा दिया।' पहले राजीव कैबिनेट और फिर कांग्रेस से रूखसत के लिए जिम्मेदार हालात के बारे में लिखते हुए प्रणब ने स्वीकार किया है कि वह 'राजीव की बढ़ती नाखुशी और उनके इर्द-गिर्द रहने वालों के बैर-भाव को भांप गए थे और समय रहते कदम उठाया।' राष्ट्रपति ने लिखा है, 'इस सवाल पर कि उन्होंने मुझे कैबिनेट से क्यों हटाया और पार्टी से क्यों निकाला, मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियां की और मैंने भी की। वह दूसरों की बातों में आ जाते थे और मेरे खिलाफ उनकी चुगलियां सुनते थे। मैंने अपने धैर्य पर अपनी हताशा हावी हो जाने दी।' गौरतलब है कि प्रणब को अप्रैल 1986 में कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) नाम की पार्टी बनाई थी ।
आरएससी बनाने को अपनी भूल माना
बहरहाल, प्रणब का मानना है कि वह आरएससी बनाने की भूल को वह टाल सकते थे । उन्होंने लिखा है, मुझमें यह समझदारी होनी चाहिए थी कि मैं जनाधार वाला नेता नहीं था (और न हूं) । कांग्रेस को छोड़ने वाले शायद ही कामयाब हुए । 1986 और 1987 के निर्णायक सालों के दौरान जब राजीव के लिए सब कुछ गलत होता दिख रहा था, उस वक्त मैं कांग्रेस पार्टी और सरकार को कुछ मदद कर सकता था ।’’ प्रणब इसके दो साल बाद कांग्रेस में लौट आए थे ।
खुद को पारंपरिक सोच वाला राजनेता मानते थे
प्रणब ने लिखा है कि राजीव एक 'अनिच्छुक राजनेता' थे जिन्हें हालात ने 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने के लिए मजबूर किया था। राष्ट्रपति ने लिखा है, 'वह अपने वक्त से आगे के शख्स थे। उन्होंने तेज बदलाव चाहा और कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी के नेताओं को अपनी सोच के रास्ते में बाधा के तौर पर देखा। वह आगे देखने वाले और तकनीक पसंद थे। उन्होंने बाजार अर्थव्यवस्था को बड़ा करने के साथ-साथ भारत में विदेशी निवेश का भी स्वागत किया।' प्रणब ने लिखा है, 'इसके ठीक उलट, मैं पारंपरिक सोच वाला राजनेता था जिसने सार्वजनिक क्षेत्र, विनियमित अर्थव्यवस्था को तवज्जो दी और सिर्फ प्रवासी भारतीयों से ही विदेशी निवेश चाहा।'
उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बदले के नाम पर भड़के 'अत्यंत अनुचित' सिख-विरोधी दंगों के समय राजीव गांधी सरकार तैयार नहीं दिखी थी ।राष्ट्रपति ने लिखा है, 'सरकार श्रीमती गांधी की हत्या और उसके बाद भड़के दंगों के बाद बिल्कुल तैयार नहीं दिखी थी । हर परिपक्व सरकार के पास ऐसे संकट से निपटने की तैयारी होती है । दुर्भाग्यवश, पूरा राष्ट्र शोक में डूब गया और उपद्रवियों ने हालात का फायदा उठाया । इससे बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि हुई।'
प्रणब ने 'द टरबुलेंट ईयर: 1980-1996' में 1980 और 1990 के दशक के उन कुछ यादगार घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जिन्हें आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सर्वाधिक कलह पैदा करने वाला माना जाता है। पुस्तक में प्रणब ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को वक्त से आगे के शख्स और तकनीक पसंद बताया है।
कांग्रेस से निकाले जाने को अपनी नाकामी माना
मुखर्जी ने राजीव गांधी की कैबिनेट और कांग्रेस पार्टी से खुद को निकाले जाने को एक 'नाकामी' जैसा माना है जिसे उन्होंने खुद पैदा किया था। उन्होंने कहा, 'मैंने पुस्तक में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि मुझे ऐसी परिस्थिति नहीं लानी चाहिए थी क्योंकि मैं कभी भी जन नेता नहीं था और मेरा कभी उस तरह का समर्थन आधार नहीं था जैसा कि 1960 के दशक में अजय मुखर्जी या हाल में ममता जैसे बागी नेता और एक तरह से खुद इंदिरा जी का था।'
पुस्तक में हर बड़े सियासी घटनाक्रम का है जिक्र
मुखर्जी ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से लेकर राष्ट्र के नेता के तौर पर पीवी नरसिम्हा राव के उभरने तक हर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर नये सिरे से प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा, 'यह पाठकों को पढ़ना है और अपने खुद के निष्कर्ष पर पहुंचना है। मैंने जानबूझकर उन विषयों पर बात नहीं की जो अत्यधिक गोपनीय हैं। मेरा थोड़ा सा रूढिवादी रुख है। जब कभी सरकार तथ्यों को जारी कर देगी, लोग जान जाएंगे। ऐसे किसी व्यक्ति के हवाले से नहीं जो सरकार में मौजूद था।' राजनीतिक जीवन में प्रवेश के बाद संस्मरण का यह दूसरा हिस्सा है। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व कैग विनोद राय, पूर्व केंद्रीय मंत्री करन सिंह सहित अन्य लोग मौजूद थे।
राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के नाम से बनाई थी पार्टी
दोनों नेताओं ने उस वक्त के राजनीतिक हालात और राजीव को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के बारे में कांग्रेसजनों की राय पर चर्चा की थी । राजीव प्रधानमंत्री बनने पर सहमत हो गए थे । प्रणब आगे लिखते हैं, 'मैं बाथरूम से बाहर आया और राजीव के फैसले से हर किसी को वाकिफ करा दिया।' पहले राजीव कैबिनेट और फिर कांग्रेस से रूखसत के लिए जिम्मेदार हालात के बारे में लिखते हुए प्रणब ने स्वीकार किया है कि वह 'राजीव की बढ़ती नाखुशी और उनके इर्द-गिर्द रहने वालों के बैर-भाव को भांप गए थे और समय रहते कदम उठाया।' राष्ट्रपति ने लिखा है, 'इस सवाल पर कि उन्होंने मुझे कैबिनेट से क्यों हटाया और पार्टी से क्यों निकाला, मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उन्होंने गलतियां की और मैंने भी की। वह दूसरों की बातों में आ जाते थे और मेरे खिलाफ उनकी चुगलियां सुनते थे। मैंने अपने धैर्य पर अपनी हताशा हावी हो जाने दी।' गौरतलब है कि प्रणब को अप्रैल 1986 में कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएससी) नाम की पार्टी बनाई थी ।
आरएससी बनाने को अपनी भूल माना
बहरहाल, प्रणब का मानना है कि वह आरएससी बनाने की भूल को वह टाल सकते थे । उन्होंने लिखा है, मुझमें यह समझदारी होनी चाहिए थी कि मैं जनाधार वाला नेता नहीं था (और न हूं) । कांग्रेस को छोड़ने वाले शायद ही कामयाब हुए । 1986 और 1987 के निर्णायक सालों के दौरान जब राजीव के लिए सब कुछ गलत होता दिख रहा था, उस वक्त मैं कांग्रेस पार्टी और सरकार को कुछ मदद कर सकता था ।’’ प्रणब इसके दो साल बाद कांग्रेस में लौट आए थे ।
खुद को पारंपरिक सोच वाला राजनेता मानते थे
प्रणब ने लिखा है कि राजीव एक 'अनिच्छुक राजनेता' थे जिन्हें हालात ने 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने के लिए मजबूर किया था। राष्ट्रपति ने लिखा है, 'वह अपने वक्त से आगे के शख्स थे। उन्होंने तेज बदलाव चाहा और कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी के नेताओं को अपनी सोच के रास्ते में बाधा के तौर पर देखा। वह आगे देखने वाले और तकनीक पसंद थे। उन्होंने बाजार अर्थव्यवस्था को बड़ा करने के साथ-साथ भारत में विदेशी निवेश का भी स्वागत किया।' प्रणब ने लिखा है, 'इसके ठीक उलट, मैं पारंपरिक सोच वाला राजनेता था जिसने सार्वजनिक क्षेत्र, विनियमित अर्थव्यवस्था को तवज्जो दी और सिर्फ प्रवासी भारतीयों से ही विदेशी निवेश चाहा।'
उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बदले के नाम पर भड़के 'अत्यंत अनुचित' सिख-विरोधी दंगों के समय राजीव गांधी सरकार तैयार नहीं दिखी थी ।राष्ट्रपति ने लिखा है, 'सरकार श्रीमती गांधी की हत्या और उसके बाद भड़के दंगों के बाद बिल्कुल तैयार नहीं दिखी थी । हर परिपक्व सरकार के पास ऐसे संकट से निपटने की तैयारी होती है । दुर्भाग्यवश, पूरा राष्ट्र शोक में डूब गया और उपद्रवियों ने हालात का फायदा उठाया । इससे बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि हुई।'
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
प्रणब मुखर्जी, राजीव गांधी, द टरबुलेंट ईयर: 1980-1996, Pranab Mukherjee, Rajiv Gandhi, The Turbulent Years: 1980-1996