अहमदाबाद:
गुजरात के गीर अभयारण्य से अच्छी खबर आई कि सिर्फ इसी इलाके में पाए जाने वाले बब्बर शेरों या एशियाटिक शेरों की संख्या में पिछले पांच सालों में भारी इजाफा हुआ है। जो संख्या वर्ष 2010 में 411 थी, वह अब बढ़कर 523 हो गई है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि एक समय जो शेर सिर्फ गीर अभयारण्य के 1,400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में पाए जाते थे, वे अब गुजरात के आठ जिलों - जूनागढ़, गीर-सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, बोटाद, राजकोट, जामनगर और पोरबंदर - को मिलाकर 22,000 वर्ग किलोमीटर इलाके में पाए जाने लगे हैं।
गीर अभयारण्य के उप-संरक्षक संदीप कुमार कहते हैं, "यह कहना गलत होगा कि शेर नए इलाकों में फैल रहे हैं... दरअसल, हकीकत यह है कि वे अपने पुराने इलाकों को वापस ले रहे हैं... उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी में ये बब्बर शेर गुजरात के अलावा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और मौजूदा पाकिस्तान तक के इलाकों में पाए जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इन इलाकों से वे गायब होते गए और 20वीं सदी आते-आते वे सिर्फ जूनागढ़ के गीर अभयारण्य के इलाके के 1,400 वर्ग किलोमीटर में सिमटकर रह गए..."
वर्ष 1990 तक ये शेर अमूमन इसी गीर अभयारण्य में पाए जाते थे, लेकिन उसके बाद से वे निरंतर नए इलाकों में फैल रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा इजाफा पिछले पांच सालों में ही हुआ है। वर्ष 2010 में करीब 10,000 वर्ग किलोमीटर इलाके में इनकी गणना हुई थी, जो इस बार बढ़कर 22,000 वर्ग किलोमीटर तक जा पहुंची है।
नक्शे में गीर अभयारण्य के नीचे की ओर, या कहें कि दक्षिण में समुद्र का इलाका है, इसलिए वे ज्यादातर उत्तर, पश्चिम और पूर्व के इलाकों में ही फैल रहे हैं, लेकिन तेजी से बढ़ते इस इलाके ने वन विभाग के सामने नई चुनौतियां भी खड़ी की हैं। सो, जहां शेरों की संख्या बढ़ना बेहद खुशी की बात है, वहीं इलाके में बढ़ोतरी की वजह से कई नए इंतजाम करने की ज़रूरत भी महसूस की जा रही है। इनमें रेस्क्यू ऑपरेशन की क्षमता, जानकारी बढ़ाना, जानवरों के साथ कैसे निभाया जाए, इस बारे में लोगों में जागृति लाना और साथ में नए इलाके आने से शेरों के प्रजनन में भी वृद्धि होगी तो उसका भी इंतजा़म करना शामिल हैं।
इसीलिए राज्य की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने वन विभाग के साथ-साथ सिंचाई (पानी की सुविधा मुहैया करवाने के लिए) और साथ-साथ महसूल विभाग को भी वन विभाग के साथ मिलकर काम करने की हिदायत दी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जानकारों के अनुसार, अगर शेरों के नए इलाकों में जाने का सिलसिला यूं ही बेरोकटोक बढ़ता रहा तो आने वाले वक्त में बब्बर शेर अहमदाबाद और उससे भी आगे तक गुजरात के बाहर भी प्राकृतिक वातावरण में रहते देखे जा सकेंगे।
महत्वपूर्ण बात यह है कि एक समय जो शेर सिर्फ गीर अभयारण्य के 1,400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में पाए जाते थे, वे अब गुजरात के आठ जिलों - जूनागढ़, गीर-सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, बोटाद, राजकोट, जामनगर और पोरबंदर - को मिलाकर 22,000 वर्ग किलोमीटर इलाके में पाए जाने लगे हैं।
गीर अभयारण्य के उप-संरक्षक संदीप कुमार कहते हैं, "यह कहना गलत होगा कि शेर नए इलाकों में फैल रहे हैं... दरअसल, हकीकत यह है कि वे अपने पुराने इलाकों को वापस ले रहे हैं... उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 19वीं सदी में ये बब्बर शेर गुजरात के अलावा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और मौजूदा पाकिस्तान तक के इलाकों में पाए जाते थे, लेकिन धीरे-धीरे इन इलाकों से वे गायब होते गए और 20वीं सदी आते-आते वे सिर्फ जूनागढ़ के गीर अभयारण्य के इलाके के 1,400 वर्ग किलोमीटर में सिमटकर रह गए..."
वर्ष 1990 तक ये शेर अमूमन इसी गीर अभयारण्य में पाए जाते थे, लेकिन उसके बाद से वे निरंतर नए इलाकों में फैल रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा इजाफा पिछले पांच सालों में ही हुआ है। वर्ष 2010 में करीब 10,000 वर्ग किलोमीटर इलाके में इनकी गणना हुई थी, जो इस बार बढ़कर 22,000 वर्ग किलोमीटर तक जा पहुंची है।
नक्शे में गीर अभयारण्य के नीचे की ओर, या कहें कि दक्षिण में समुद्र का इलाका है, इसलिए वे ज्यादातर उत्तर, पश्चिम और पूर्व के इलाकों में ही फैल रहे हैं, लेकिन तेजी से बढ़ते इस इलाके ने वन विभाग के सामने नई चुनौतियां भी खड़ी की हैं। सो, जहां शेरों की संख्या बढ़ना बेहद खुशी की बात है, वहीं इलाके में बढ़ोतरी की वजह से कई नए इंतजाम करने की ज़रूरत भी महसूस की जा रही है। इनमें रेस्क्यू ऑपरेशन की क्षमता, जानकारी बढ़ाना, जानवरों के साथ कैसे निभाया जाए, इस बारे में लोगों में जागृति लाना और साथ में नए इलाके आने से शेरों के प्रजनन में भी वृद्धि होगी तो उसका भी इंतजा़म करना शामिल हैं।
इसीलिए राज्य की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने वन विभाग के साथ-साथ सिंचाई (पानी की सुविधा मुहैया करवाने के लिए) और साथ-साथ महसूल विभाग को भी वन विभाग के साथ मिलकर काम करने की हिदायत दी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जानकारों के अनुसार, अगर शेरों के नए इलाकों में जाने का सिलसिला यूं ही बेरोकटोक बढ़ता रहा तो आने वाले वक्त में बब्बर शेर अहमदाबाद और उससे भी आगे तक गुजरात के बाहर भी प्राकृतिक वातावरण में रहते देखे जा सकेंगे।
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