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This Article is From Sep 08, 2017

पूर्व सीईसी कृष्णमूर्ति ने कहा : राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार में लाया जाए

उनके अनुसार सरकार गठन के संबंध में राजनीतिक दलों के नीतिगत मामलों को आरटीआई के दायरे में लाए जाने की आवश्यकता नहीं है.

पूर्व सीईसी कृष्णमूर्ति ने कहा : राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार में लाया जाए
चुनाव आयोग.
हैदराबाद: टीएस कृष्णमूर्ति ने राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे मे लाने की बात कही है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति का कहना है कि राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए. उन्होंने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों को भी इंगित किया. यह पूछे जाने पर कि क्या राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए, कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘नि:संदेह, क्यों नहीं? चुनावों से संबंधित उनके रणनीतिक निर्णयों को छोड़कर, उनके सभी प्रशासनिक फैसले, उनकी फंडिंग और सबकुछ सार्वजनिक नजरों में होना चाहिए. ’

उनके अनुसार सरकार गठन के संबंध में राजनीतिक दलों के नीतिगत मामलों को आरटीआई के दायरे में लाए जाने की आवश्यकता नहीं है.

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कृष्णमूर्ति ने शुक्रवार को  कहा, ‘आरटीआई में जो लाए जाने की आवश्यकता है, वह हैं वित्तीय पहलू और प्रशासनिक पहलू. उदाहरण के लिए वे (राजनीतिक दल) आंतरिक चुनाव करा रहे हैं या नहीं, यह जनता को उपलब्ध होना चाहिए, उनके खाते सार्वजनिक होने चाहिए.’ लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की हिमायत करने संबंधी नीति आयोग की राय पर उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर यह बहुत आकर्षक है, लेकिन व्यावहारिक रूप से इसमें समस्याएं हैं, इसके क्रियान्वयन में समस्याएं हैं.

कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘सबसे पहले तो संविधान में संशोधन की आवश्यकता है. केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों की उपलब्धता बढ़ानी होगी. यदि इन चीजों को पूरा कर लिया जाता है तो समानांतर चुनाव कराने में कठिनाई नहीं होगी.’ पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा, ‘इस समय जो संविधान है, यह इसलिए कठिन हो सकता है क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर विधायिका भंग हो सकती है, जिसका मतलब यह हुआ कि चुनाव कराना सदन के भंग होने के आधार पर होगा.’ उन्होंने रेखांकित किया कि जब तक विधायिका को समय पूर्व भंग किए जाने से संबंधित प्रावधान नहीं हटाया जाता तब तक समानांतर चुनाव कराना कठिन होगा.

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कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘नि:संदेह, एक सिद्धांत यह है कि आप छह महीने में एक बार चुनाव एकसाथ करा सकते हैं. सैद्धांतिक तौर पर यह फिर संभव है और इसे कराने में कोई कठिनाई नहीं है. प्रशासनिक इंतजाम करने होंगे, खासकर अतिरिक्त अर्द्धसैनिक बल उपलब्ध कराना.’(इनपुट भाषा से)

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