महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से भूचाल आया है. विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू होने वाला है लेकिन विधानसभा अध्यक्ष पद खाली है. विधानसभा अध्यक्ष का पद कांग्रेस के कोटे में है. लेकिन नाना पटोले के इस्तीफे के बाद कांग्रेस नया नाम तय नहीं कर पायी है. नतीजा बीजेपी को सरकार पर दबाव बनाने का मौका मिल गया है. इस बीच राज्यपाल के पत्र ने आग में घी का काम किया है. राज्यपाल ने विरोधी दल नेता के हवाले से मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में विधानसभा अध्यक्ष का पद जल्द भरने की कार्यवाही शुरू करने के साथ विधानमंडल का अधिवेशन ज्यादा दिन चलाने और राज्य में लटके पड़े ओबीसी आरक्षण के मुद्दे के कारण स्थानीय निकायों के चुनाव ना कराने की बात लिखी है.
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इसपर महाविकास आघाडी में शामिल एनसीपी ने राजभवन को राजनीतिक अड्डा कह दिया. बीजेपी को लगता है कि तीनों पार्टियों में सामंजस्य की कमी और विधायकों की नाराजगी का फायदा उसे मिलेगा इसलिए वो विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव कराने की मांग पर अड़ी है. इधर शिवसेना बीजेपी पर केंद्रीय एजेंसियों का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगा रही है तो कांग्रेस का कहना है जल्द ही नाम तय कर दिया जाएगा.
288 विधायकों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में आघाड़ी सरकार के पास शिवसेना 56, एनसीपी 53, कांग्रेस 43, निर्दलीय और दूसरे छोटे - छोटे समर्थक दलों को मिलाकर कुल 171 सीट हैं. जबकि बीजेपी के पास खुद के 106 और समर्थक दलों को मिलाकर आकड़ा 113 तक ही पहुंचता है.
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महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों दलों के एकसाथ आने के बाद संख्याबल में बीजेपी कहीं टिकती नजर नहीं आती लेकिन राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठे ये कहा नहीं जा सकता है.
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