यह ख़बर 26 जून, 2012 को प्रकाशित हुई थी

क्या सरकार ही जिम्मेदार है बिजली की किल्लत के लिए...?

खास बातें

  • पॉवर प्लान्ट्स बंद हो रहे हैं, क्योंकि उनके पास कोयला ही नहीं है, और कोयला मंत्री के मुताबिक देश में कोल माइन को क्लियरेन्स मिलने में छह-छह साल लग जाते हैं, तो कोयला उत्पादन तो प्रभावित होगा ही...
नई दिल्ली:

बिजली गुल होते ही ज़िन्दगी थम जाती है, क्योंकि गर्मी की मार से राहत दिलाते कूलर-एसी, अंधेरे से बचाती बत्तियां, चमचमाते मॉल से लेकर धड़ाधड़ माल तैयार करती फैक्टरियां - सब बिजली का खेल है... लेकिन बिजली तो तब मिल पाएगी, जब बनेगी...

ऐसा क्यों है... दरअसल, देश की दो-तिहाई बिजली कोयले से बनती है, लेकिन जब पॉवर प्लान्ट्स के पास कोयला ही नहीं होगा तो वे क्या करेंगे... इसीलिए, इनमें से कई बंद हो चुके हैं, और कुछ बंद होने की कगार पर हैं...

देश के 89 चुने हुए अहम पॉवर प्लान्ट्स की मॉनीटरिंग करने वाली सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की वह रिपोर्ट हिला देने वाली है, जिसके मुताबिक इस साल 19 जून तक के आंकड़े बताते हैं कि देश के 23 पॉवर प्लान्ट्स के पास अब चार दिन से भी कम के लिए कोयले का स्टॉक बचा है... इसके अलावा 33 अन्य पॉवर प्लान्ट्स के पास सात दिन से कम कोयले का स्टॉक बचा है... सो, इसका मतलब हुआ कि देश के 56 बड़े पॉवर प्लान्ट्स को एक हफ्ते चलाने के लिए भी जरूरी कोयले का जुगाड़ नहीं है...

इस मुद्दे पर एनडीटीवी से खास बातचीत में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने माना कि कोयले की कमी है, लेकिन वह इसके लिए मुख्य तौर पर पॉवर कंपनियों को ही ज़िम्मेदार मानते हैं... उन्होंने कहा, बहुत सारे प्लान्ट इतने पुराने हैं कि वह ज़रूरत से 25 फीसदी ज़्यादा कोयला खा रहे हैं, और बहुत-से प्लान्ट्स को 20 फीसदी आयातित कोयले का इस्तेमाल करना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, क्योंकि उन्हें यहां सस्ता कोयला मिल रहा है, और वे इसी से काम चलाना चाहते हैं... इन्हीं प्लान्ट्स की वजह से कोयले की कमी है, लेकिन कोई अपनी कमी नहीं बताता है...

खास बात यह है कि पहले पॉवर कंपनियां स्टॉक में जहां कम से कम तीन हफ्ते का इंतजाम रखती थीं, वहीं हालात अब बद से बदतर हो चुके हैं... इन बातों की ख़बर आम लोगों को तब लगती है, जब बड़े-छोटे शहरों में गर्मियों के दौरान पॉवर कट और लोड शेडिंग के रूप में बिजली की भारी किल्लत सामने आती है...

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने भी एनडीटीवी से बातचीत में कबूल किया कि बिजली की डिमांड−सप्लाई का फ्यूज़ उड़ गया है... उन्होंने कहा, डिमांड बहुत बढ़ गई है, और डिमांड−सप्लाई के गैप को ठीक किया जा रहा है... पीएम ने प्रधान सचिव की अध्यक्षता में कमेटी गठित की है, और सरकार कोशिश कर रही है...

हालांकि बीते कुछ महीनों में पीएमओ ने कई बार दखलअंदाजी की है, लेकिन कोयले की कमी का मर्ज़ जादू की छड़ी घुमाकर छूमंतर नहीं हो सकता... और परिणामस्वरूप कोयले की किल्लत से जूझती कंपनियां जरूरत भर बिजली पैदा करने में नाकाम रही हैं... एसोसिएशन ऑफ पॉवर प्रोड्यूसर्स के डीजी अशोक खुराना कहते हैं, कोयले से कुल 1,02,000 मेगावाट बिजली की पैदा करने की क्षमता है, लेकिन 30,000 से 35,000 मेगावाट बुरी तरह प्रभावित है... यानि 30 से ज़्यादा प्लान्ट्स को कोयला मिल ही नहीं पा रहा है...

वैसे इसका दूसरा पहलू भी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल उभरता है कि बंद पॉवर प्लान्ट के बंद होने की नौबत क्यों आई, और उन्हें कोयला क्योंनहीं मिल रहा है... सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के मुताबिक आज हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कोयले की कमी की वजह से 37,092 मेगावाट बिजली कम बन रही है, क्योंकि न सिर्फ कई प्लान्ट बंद हो चुके हैं, बल्कि नए प्लान्ट बनाकर बिजली की बढ़ती कमी को पूरा करने की सरकार की योजना भी खटाई में पड़ चुकी है...

दरअसल, सच्चाई सामने आई कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से एनडीटीवी की खास बातचीत में, जब उन्होंने कहा, किसी भी कोल माइन को चार से छह साल लग जाते हैं, क्लियरेन्स मिलने में ही, और फिर कहीं जाकर कोल ब्लाक ऑपरेटिव हो पाता है...

एसोसिएशन ऑफ पॉवर प्रोड्यूसर्स के डीजी अशोक खुराना के मुताबिक कोयले की कमी की वजह से वर्ष 2009 के बाद शुरू किए गए प्लान्ट्स - जैसे दिल्ली का अरावली प्लान्ट, राजधानी के नज़दीक ही बने झज्जर और यमुनानगर प्लान्ट्स - को बंद करना पड़ा है...

...तो क्या इसके लिए सरकार की फैसले न लेने की नीति जिम्मेदार है, जिसे पॉलिसी पैरेलिसिस कहा जा रहा है... यह सवाल इसलिए भी अहम है कि प्लान्टों तक कोयला इसलिए नहीं पहुंचा, क्योंकि नई कोयला खदानों में कानूनी अड़चनों की वजह से काम शुरू नहीं हो सका...

कोयला मंत्रालय के मुताबिक, इस साल अप्रैल के अंत तक कोल इंडिया लिमिटेड के 15 प्रस्ताव पर्यावरण मंत्रालय और राज्य सरकारों की मंज़ूरी में देरी की वजह से अटके हुए थे, पर्यावरण क्लियरेन्स न मिलने की वजह से कुल 48 कोयला खदानों के प्रस्ताव लटके पड़े थे, और फोरेस्ट्री क्लियरेन्स न मिलने की वजह से 180 कोयला खदानों के प्रस्ताव पर आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा था...

अब सीएजी की जांच ने रही−सही कसर भी पूरी कर दी... कोल ब्लॉक्स के आवंटन में घोटाले के आरोप के बाद सरकारी अधिकारी फैसले लेने से घबरा रहे हैं... कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, एक तरफ कहा जाता है कि आप जल्दबाज़ी में फैसले ले रहे हैं, वहीं यह भी आरोप लगाया जाता है कि आप निर्णय नहीं ले पा रहे हैं...

अब ज़रूरी कोयला मुहैया कराने में सरकार की नाकामी के बाद विदेश से कोयला आयात करने की मांग उठने लगी है... पॉवर कंपनियां दलील दे रही हैं कि मौजूदा परिस्थिति में देश में मौजूदा संसाधनों के जरिये कमी को दूर करना संभव नहीं है, इसलिए सरकार को बल्क इम्पोर्ट करने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए, क्योंकि निजी पॉवर कंपनियों के लिए खुद कोयला आयात करना बेहद महंगा सौदा साबित होगा... अशोक खुराना के मुताबिक पीएमओ कोशिश कर रहा है, लेकिन उसे बहुत जल्द कारगर कदम उठाने होंगे, क्योंकि कोयला बनने में, तैयार होने में तीन साल तक लग जाते हैं, इसलिए उस समय तक की ज़रूरत के लिए कोयले का आयात तो करना ही पड़ेगा...

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लेकिन कोयला आयात करने के विकल्प पर अगर सरकार आगे बढ़ती है तो इससे मौजूदा दर पर बिजली सप्लाई करना मुश्किल होगा, क्योंकि विदेश से आने वाला कोयला महंगा होगा... तो क्या ऐसे में आम आदमी का बिजली बिल और महंगा करना एक विकल्प है...