कृषि कानून: MSP खत्‍म नहीं होने की बात कहकर PM ने किसानों को फिर दिया वार्ता का प्रस्‍ताव, लेकिन...

पीएम ने कहा, 'भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है न ही स्वार्थी है और न ही आक्रामक है यह सत्यम शिवम सुंदरम के सिद्धांत से प्रेरित है. यह कोटेशन आजाद हिंद फौज के नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है."

कृषि कानून: MSP खत्‍म नहीं होने की बात कहकर PM ने किसानों को फिर दिया वार्ता का प्रस्‍ताव, लेकिन...

कृषि कानून खत्‍म करने की मांग को लेकर किसान अडिग हैं (प्रतीकात्‍मक फोटो)

खास बातें

  • कानूनों को लेकर सरकार का रुख अभी भी संशोधन/सुधार का
  • सरकार और किसानों के बीच गतिरोध अभी भी है कायम
  • कांग्रेस ने पीएम पर गलतबयानी करने का आरोप लगाया
नई दिल्ली:

Farmer's Protest: राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राज्‍यसभा में जवाब देते हुए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने फिर किसानों से अपील की कि वे बातचीत की मेज़ पर लौटें, उनके सुझाव माने जाएंगे. हालांकि कांग्रेस ने भाषण के दौरान उन पर ग़लतबयानी का आरोप लगाया. पीएम ने कहा, 'वार्ता का रास्ता हमेशा खुला है, कोई कमी है तो दूर करेंगे, कोई ढिलाई है तो ठीक करेंगे, राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने फिर किसानों से अपील की कि वे हड़ताल ख़त्म कर दें.' उन्‍होंने कहा, "हम सब मिल बैठकर बात करने को तैयार हैं मैं आज सदन से भी निमंत्रण देता हूं.MSP( न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य) था, MSP है और MSP रहेगा हमें भ्रम नहीं फैलाना चाहिए."

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 पीएम ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन (Kisan Aandolan) को बाहरी लोग हवा दे रहे हैं. उन्होंने चरण सिंह, मनमोहन सिंह और शरद पवार तक का हवाला दिया और दावा किया कि जो काम मनमोहन कर रहे थे, वो भी वही कर रहे हैं. पीएम ने कहा कि '' एक FDI (फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडिया) आया है. इस आइडियोलॉजी के बारे में देश के लोगों को जागरूक करना जरूरी है." उन्‍होंने कहा कि आज भारत के राष्ट्रवाद पर चौतरफा हमला हो रहा है. इससे आम लोगों को सतर्क करना जरूरी है. उन्‍होंने कहा, 'भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है न ही स्वार्थी है और न ही आक्रामक है यह सत्यम शिवम सुंदरम के सिद्धांत से प्रेरित है. यह कोटेशन आजाद हिंद फौज के नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है." 

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पीएम ने कहा कि चौधरी चरण सिंह हमेशा किसानों का सेंसस का जिक्र करते थे जिसमें यह बात सामने आई थी कि देश में 33 फ़ीसदी किसानों के पास 2 बीघा से कम जमीन है और 18 फ़ीसदी के पास 2 से 4 बीघे की जमीन है. चौधरी चरण सिंह मानते थे कि इससे इन किसानों का गुजर नहीं हो सकता. आंकड़े पेश करते हुए उन्‍होंने कहा, "1971 में एक हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानों की संख्या 51 फीसदी थी जो आज बढ़कर 68% हो गई है. यानी उन किसानों की संख्या बढ़ रही है जिनके पास बहुत कम जमीन है. आज देश में 86 फ़ीसदी ऐसे किसान हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है. ऐसे 12 करोड़ किसान हैं. क्या इनके प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है? हमें चौधरी चरण सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए इस दिशा में कुछ करना होगा". पीएम के भाषण पर रिएक्‍शन देते हुए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पर बातों को बिना संदर्भ में पेश करने का आरोप लगाया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा, "प्रधानमंत्री ने मनमोहन सिंह को कोट किया लेकिन मनमोहन सिंह ने किस संदर्भ में यह बात कही थी, यह नहीं बताया. बड़ी कंपनियों को फॉर्मिंग कॉन्ट्रैक्ट देने की बात मनमोहन सिंह ने कब कही? प्रधानमंत्री ने संदर्भ से हटकर मनमोहन सिंह को कोट किया है. खडगे ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री का कहना है कि शरद पवार ने यू-टर्न किया. उन्हें भी आउट ऑफ कांटेक्‍सट कोट किया. यह सही नहीं है.आज हमें, किसानों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री तीनों काले कानून वापस लेंगे और सभी स्टेकहोल्डर से सलाह मशविरा कर के नए बिल आएंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया". 

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बीजू जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद पिनाकी मिश्रा ने NDTV से कहा,  "हमारी मांग है कि सरकार तीनों कानून वापस ले और दोबारा नए कृषि सुधार के बिल लाकर उन्हें स्टैंडिंग कमेटी या सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए जिससे कि उन पर नए सिरे से चर्चा संभव हो सके. यह हमेशा से हमारी मांग रही है. अगर पहले ही तीनों नए कानूनों को सेलेक्ट कमेटी या स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया होता, विस्तार से चर्चा हुई होती तो आज यह आंदोलन खड़ा नहीं होता. सरकार की तरफ से एकतरफा बुलडोज करने की वजह से ही यह संकट खड़ा हुआ है". उधर प्रधानमंत्री की अपील पर राकेश टिकैत ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि छोटे किसान-बड़े किसान को बांटना ठीक नहीं. प्रधानमंत्री ने दरअसल फिर सरकार का रुख़ साफ़ किया है कि क़ानून वापस नहीं होंगे, किसानों के कहने पर संशोधन के लिए सरकार तैयार है. मौजूदा हालात को देखते हुए लगता नहीं कि किसान आंदोलन के मुद्दे पर गतिरोध जल्‍द दूर होने वाला है. विपक्ष और किसान अपने रुख पर अडिग हैं जबकि सरकार अपने रुख पर.

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