संजीव चतुर्वेदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
एम्स के पूर्व सीवीओ और रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता संजीव चतुर्वेदी के दिल्ली सरकार में डेप्युटेशन की अर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नियुक्ति कमेटी ने ठुकरा दी है। दिल्ली में सरकार बनाने के तुरंत बाद पिछले साल अरविंद केजरीवाल ने संजीव चतुर्वेदी को अपने OSD के तौर पर मांगा था लेकिन केंद्र सरकार ने उसके लिये अपनी सहमति नहीं दी थी। ये मामला पिछले 16 महीने से लटका था और अदालत ने इस पर चार बार आदेश जारी कर केंद्र सरकार से फैसला लेने का कहा था।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मांग के 16 महीने बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एसीसी ने ये फैसला लिया है। जिसमें एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में भेजने से मना कर दिया गया है। एसीसी ने अपने फैसले में इस बात को आधार बनाया है कि चतुर्वेदी ने अपने नये काडर उत्तराखंड में अभी तक नौकरी ज्वाइन नहीं की है इसलिये पहले उन्हें उत्तराखंड जाना चाहिये। अपने आदेश में एसीसी ने कहा है कि संजीव चतुर्वेदी का मूल काडर हाल में ही हरियाणा से उत्तराखंड किया गया है, उन्हें अपने नये पेरेंट काडर में नौकरी करनी ज़रूरी है।
एसीसी ने पर्यावरण मंत्रालय की एक चिट्ठी का हवाला भी दिया है जिसमें कहा गया था कि उत्तराखंड सरकार ने चतुर्वेदी की नई प्रतिनियुक्ति के लिये सहमति नहीं दी है और नियमों के मुताबिरक नये डेप्युटेशन से पहले उन्हें मूल काडर यानी उत्तराखंड में अनिवार्य कूलिंग ऑफ करना होगा। हालांकि चतुर्वेदी लगातार एसीसी के फैसलों को अदालत में चुनौती देते रहे हैं।
सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल यानी कैट में लगाई गुहार में चतुर्वेदी ने आरोप लगाया था कि उत्तराखंड सरकार केंद्र के दबाव में है और केंद्र ने ही दबाव डालकर उत्तराखंड की ओर से दी गई एनओसी निरस्त करवाई। रावत सरकार का रुख चतुर्वेदी को एनओसी के मामले में पलटता रहा है। हरीश रावत सरकार ने पिछले साल 6 नवंबर को चतुर्वेदी के मामले में सहमति दी फिर जनवरी में रावत अपनी एनओसी से पलट गये। हालांकि फरवरी में फिर से उत्तराखंड सरकार ने कहा कि उसे चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में भेजे जाने पर आपत्ति नहीं है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली ACC ने अपने आदेश में इसे मानने से इंकार कर दिया है। इसी साल 29 अप्रैल को दिये अपने इस आदेश में अदालत ने खुद मोदी सरकार के ही फैसले का हवाला दिया है। कैट ने कहा कि 2014 में मोदी सरकार खुद फैसला ले चुकी है कि अगर संबंधित अधिकारी की पीएस और ओएसडी के तौर पर नियुक्ति होती है तो उस अफसर की सहमति से कूलिंग ऑफ से छूट दी जा सकती है।
चतुर्वेदी को 2014 में एम्स के सीवीओ पद से हटाने पर बड़ा विवाद हुआ था क्योंकि उन्होंने एम्स में भ्रष्टाचार के कई फैसलों को उजागर किया। इससे पहले वह हरियाणा में हुड्डा सरकार के निशाने पर भी रहे जहां उन्होंने कई वन घोटालों को उजागर किया। पिछले साल चतुर्वेदी को रमन मेग्सेसे पुरस्कार भी मिला था।
ये भी महत्वपूर्ण है कि खुद वन और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने पिछले साल फाइल पर लिखा था कि चतुर्वेदी दिल्ली सरकार में डेप्युटेशन के लिये सारी शर्तों को पूरा करते हैं। लेकिन बाद में उनकी फाइल वन मंत्रालय और स्वास्थय मंत्रालय में अटकी रही। इस बीच चतुर्वेदी की गुहार पर प्रशासनिक अधिकारियों की अदालत ने बार-बार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी से इस मामले को निबटाने को कहा जिसके बाद अब मोदी सरकार ने चतुर्वदी से उत्तराखंड जाने को कहा है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मांग के 16 महीने बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एसीसी ने ये फैसला लिया है। जिसमें एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में भेजने से मना कर दिया गया है। एसीसी ने अपने फैसले में इस बात को आधार बनाया है कि चतुर्वेदी ने अपने नये काडर उत्तराखंड में अभी तक नौकरी ज्वाइन नहीं की है इसलिये पहले उन्हें उत्तराखंड जाना चाहिये। अपने आदेश में एसीसी ने कहा है कि संजीव चतुर्वेदी का मूल काडर हाल में ही हरियाणा से उत्तराखंड किया गया है, उन्हें अपने नये पेरेंट काडर में नौकरी करनी ज़रूरी है।
एसीसी ने पर्यावरण मंत्रालय की एक चिट्ठी का हवाला भी दिया है जिसमें कहा गया था कि उत्तराखंड सरकार ने चतुर्वेदी की नई प्रतिनियुक्ति के लिये सहमति नहीं दी है और नियमों के मुताबिरक नये डेप्युटेशन से पहले उन्हें मूल काडर यानी उत्तराखंड में अनिवार्य कूलिंग ऑफ करना होगा। हालांकि चतुर्वेदी लगातार एसीसी के फैसलों को अदालत में चुनौती देते रहे हैं।
सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल यानी कैट में लगाई गुहार में चतुर्वेदी ने आरोप लगाया था कि उत्तराखंड सरकार केंद्र के दबाव में है और केंद्र ने ही दबाव डालकर उत्तराखंड की ओर से दी गई एनओसी निरस्त करवाई। रावत सरकार का रुख चतुर्वेदी को एनओसी के मामले में पलटता रहा है। हरीश रावत सरकार ने पिछले साल 6 नवंबर को चतुर्वेदी के मामले में सहमति दी फिर जनवरी में रावत अपनी एनओसी से पलट गये। हालांकि फरवरी में फिर से उत्तराखंड सरकार ने कहा कि उसे चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में भेजे जाने पर आपत्ति नहीं है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली ACC ने अपने आदेश में इसे मानने से इंकार कर दिया है। इसी साल 29 अप्रैल को दिये अपने इस आदेश में अदालत ने खुद मोदी सरकार के ही फैसले का हवाला दिया है। कैट ने कहा कि 2014 में मोदी सरकार खुद फैसला ले चुकी है कि अगर संबंधित अधिकारी की पीएस और ओएसडी के तौर पर नियुक्ति होती है तो उस अफसर की सहमति से कूलिंग ऑफ से छूट दी जा सकती है।
चतुर्वेदी को 2014 में एम्स के सीवीओ पद से हटाने पर बड़ा विवाद हुआ था क्योंकि उन्होंने एम्स में भ्रष्टाचार के कई फैसलों को उजागर किया। इससे पहले वह हरियाणा में हुड्डा सरकार के निशाने पर भी रहे जहां उन्होंने कई वन घोटालों को उजागर किया। पिछले साल चतुर्वेदी को रमन मेग्सेसे पुरस्कार भी मिला था।
ये भी महत्वपूर्ण है कि खुद वन और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने पिछले साल फाइल पर लिखा था कि चतुर्वेदी दिल्ली सरकार में डेप्युटेशन के लिये सारी शर्तों को पूरा करते हैं। लेकिन बाद में उनकी फाइल वन मंत्रालय और स्वास्थय मंत्रालय में अटकी रही। इस बीच चतुर्वेदी की गुहार पर प्रशासनिक अधिकारियों की अदालत ने बार-बार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी से इस मामले को निबटाने को कहा जिसके बाद अब मोदी सरकार ने चतुर्वदी से उत्तराखंड जाने को कहा है।
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