दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में सार्वजनिक जगहों, सरकारी व निजी कार्यालयों समेत ज्यादातर स्थानों पर कोविड वैक्सीन अनिवार्य होने के खिलाफ कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. याचिका में कहा गया है कि
केंद्र का कहना है कि वैक्सीनेशन स्वैच्छिक है लेकिन राज्यों ने इसे कुछ उद्देश्यों के लिए अनिवार्य कर दिया है.वैक्सीन जनादेश को असंवैधानिक घोषित करने के निर्देश जारी करें. राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करने, सब्सिडी वाले अच्छे अनाज का लाभ उठाने के लिए वैक्सीनेशन अनिवार्य करने का विरोध करते हुए अर्जी दी गई है. राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह टीकाकरण ( NTAGI) के पूर्व सदस्य डॉ जैकब पुलियेल ने अर्जी दायर की है.
केंद्र सरकार की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता जैकब पुलियल ने कहा है कि केंद्र सरकार भले ये कह रही है कि टीकाकरण ऐच्छिक है अनिवार्य नहीं लेकिन दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो उसे अनिवार्य ही बना दिया गया है. याचिकाकर्ता जैकब पुलियल नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्यूनाइजेशन के पूर्व सदस्य हैं
जैकब की याचिका में मांग की गई है कि सरकार कोविड 19 के टीकों के क्लिनिकल ट्रायल की रिपोर्ट और उनकी क्षमता के आंकड़े सार्वजनिक करे. ताकि आम जनता को सब कुछ पता चल सके. जैकब की इस याचिका में पैरवी करते हुए उनके वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जब केंद्र सरकार कई मौकों पर, बयानों और आरटीआई के जवाब में कह चुकी है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं ऐच्छिक है तो कई राज्यों में दुकान खोलने, दुकान या प्रतिष्ठान में दाखिल होने, वहां काम करने वाले कर्मचारियों और लोगों के प्रवेश, सड़कों पर चलने, किसी शैक्षिक संस्थान में दाखिल होने जैसे अवसरों पर टीकाकरण प्रमाणपत्र मांगे जाते हैं?
पुलियल ने अपनी याचिका में दिल्ली एनसीआर सरकार के पिछले साल 8 अक्तूबर , मध्य प्रदेश में 8 नवंबर, महाराष्ट्र में 27 नवंबर और तमिलनाडु में 18 नवंबर को जारी हुए सर्कुलर और उसमें साफ साफ लिखे दिशा निर्देश का भी हवाला दिया है जिसमें वैक्सीनेशन की अनिवार्यता वाली पाबंदियां लगाई गई हैं.
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