महाराष्ट्र के पालघर में 2 साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीटकर हुई हत्या के मामले में महाराष्ट्र सरकार सवालों के घेरे में है. वहीं सोशल मीडिया में इसे सांप्रदायिक हिंसा का रंग दिए जाने की भी कोशिश की जा रही है. हालांकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इसे सांप्रदायिक हिंसा नहीं माना और कहा है कि इस मामले में 100 से भी ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस का कहना है कि बीते कुछ दिनों से इस इलाके में बच्चा चोरी की अफवाह फैली थी. गुरुवार की रात मुंबई से दो साधु और उनके ड्राइवर सूरत जा रहे थे. पालघर के गणचिंचले गांव के पास भीड़ ने बच्चा चोर होने के शक में इनकी गाड़ी को रुकवा लिया और इनकी पीट-पीट की हत्या कर दी. साधुओं के नाम सुशीलगिरी महाराज और कल्पवृक्षगिरी महाराज थे. पुलिस का कहना है कि इस पूरे घटना के दौरान उसकी गाड़ी को भी नुकसान पहुंचाया गया और 2 पुलिस वाले घायल भी हुए हैं. पुलिस ने कार्रवाई कर 110 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है और इलाके में पुलिस के दो अधिकारियों सस्पेंड भी किया गया है. लेकिन रविवार शाम से सोशल मीडिया पर झूठ चलाया जा रहा है और इस घटना को सांप्रदायिक रंग देने के लिए सोशल मीडिया साइट पर अलग अलग तस्वीरें साझा की जा रही हैं. कई मीम शेयर हो रहे हैं जिसमें बताया जा रहा है कि कैसे एक धर्म से जुड़े लोगों की हत्या हो रही है.
ट्विटर पर भी पालघर से जुड़े 4 ट्रेंड चल रहे हैं जिसमें एक ट्रेंड के अनुसार महाराष्ट्र में साधु खतरे में हैं. हालांकि पहली बार यहां हमला नहीं हुआ. इस मामले के दो दिन पहले भी मंगलवार के दिन इलाके में ज़रूरतमंदों को खाना देकर घर लौट रहे डॉक्टर विश्वास वलवी को भी चोर समझकर लोगों ने रोक लिय था और पुलिस पर भी पथराव किया गया. हालांकि विपक्ष ने इस मुद्दे पर कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जहां महाराष्ट्र सरकार को आड़े हाथों लिया तो वहीं बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर कई सवाल उठाए.
विपक्ष के सवाल और सोशल मीडिया पर चल रहे झूठ को लेकर राज्य सरकार की ओर से भी ट्वीट किया गया. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जहाँ ट्वीट कर बताया कि मामले में 100 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है तो वहीं गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पूरे मामले का साम्प्रदायिकरण देखते हुए यह तक कह दिया कि मरने और मारने वालों के धर्म में कोई अंतर नहीं है और इस मामले का साम्प्रदायिकरण नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन इस मामले में पालघर पुलिस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. इलाके में पहले से फैले अफवाह को कम करने के लिए क्या कड़े कदम उठाए गए? अफवाहों को फैलाने वालों पर क्या कार्रवाई की गई? गुरुवार को हुए हत्या के समय पर्याप्त संख्या में पुलिस मौके पर क्यों नहीं थी?
फिलहाल पालघर मामले की जांच अब राज्य की सीआईडी को सौंप दी गई है. लेकिन जिस तेजी से सोशल मीडिया पर इसे साम्प्रदायिक बताकर ट्रेंड किया जा रहा है वो भी पालघर में हुए अफवाह से कम नहीं है. प्रशासन की ओर से गलत खबर फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात तो की जा रही है लेकिन सवाल यही कि क्या वाकई यह मुमकिन है? वो भी तब जब झूठ को अलग अलग संदेश, तस्वीर और मीम के ज़रिए हज़ारों लोगों के फोन तक पहुंचाया जा रहा है..
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