नई दिल्ली:
लोकसभा में गुरुवार को श्रीलंका में तमिलों के मुद्दे पर बहस के दौरान हंगामा हुआ। डीएमके और बीजेपी ने इस मुद्दे पर लोकसभा से वॉकआउट किया।
सदन के सदस्य यह जानना चाहते थे कि सरकार श्रीलंकाई तमिलों को उनके जायज अधिकार दिलाने के लिए खुद के और विश्वस्तर पर क्या कदम उठा रही है। इस दौरान सदन में हंगामा हुआ और डीएमके और बीजेपी ने सदन से वॉकआउट किया।
इससे पहले, श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा के संबंध में लोकसभा में आज सदस्यों ने गंभीर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार से जानना चाहा कि वह श्रीलंकाई तमिलों को उनके जायज अधिकार दिलाने के लिए खुद के और विश्व के स्तर पर क्या कदम उठा रही है।
लोकसभा में आज श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा पर विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए द्रमुक के टीआर बालू ने कहा कि ऐसा भ्रम फैला हुआ है कि भारत सरकार श्रीलंकाई तमिलों के लिए खास कुछ नहीं कर रही है और सरकार अपने कार्यों से इस गलतफहमी को दूर करे।
उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि श्रीलंकाई तमिलों के अधिकारों और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए वह ‘न्यूनतम’ क्या करना चाहती है। उन्होंने कहा कि पिछले चार सालों से श्रीलंका में रह रहे तमिल तबाह हो गए हैं और श्रीलंकाई सेना के आक्रमण में 40 हजार से अधिक तमिलों का नरसंहार हुआ है।
बालू ने कहा कि तमिल भाषा, संस्कृति और नस्ल सबको विलुप्त करने का श्रीलंका में अभियान चल रहा है। इसे रोके जाने की सख्त जरूरत है।
उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई सेना द्वारा वहां के तमिलों के खिलाफ चलाए गए युद्ध में 90 हजार तमिल महिलाएं विधवा हुई हैं और दो लाख से अधिक लोग लापता हैं। यह पता लगाया जाना चाहिए कि इन दो लाख लोगों का क्या हुआ।
द्रमुक नेता ने कहा कि इसके अलावा श्रीलंकाई सेना और सरकार के दमन के चलते एक लाख 30 हजार से अधिक श्रीलंकाई तमिल अपने देश से पलायन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के तथाकथित महिला सुरक्षा शिविरों में महिलाओं का बुरा हाल है और उनका हर तरह का शोषण किया जा रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीलंकाई तमिल महिलाओं और पुरुषों का यौन शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि बोस्नियाई महिलाओं के साथ सर्ब सेना ने जो वीभत्स कृत्य किया था, कुछ वैसा ही श्रीलंकाई सेना अपने यहां की तमिल महिलाओं के साथ कर रही है।
यशवंत सिन्हा ने कहा कि भाजपा श्रीलंकाई तमिलों के लिए अलग राष्ट्र के पक्ष में नहीं है बल्कि वह तमिलों के नरसंहार के खिलाफ है और तमिलों को देश के भीतर समान अधिकार दिलाए जाने की पक्षधर है। सरकार को श्रीलंकाई तमिलों की समस्या के समाधान के लिए सात सूत्री सुझाव पत्र पेश करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम भारत सरकार को श्रीलंकाई सरकार से नार्दर्न प्रोविंस से सेना को तत्काल हटाए जाने की मांग करनी चाहिए।
सिन्हा ने कहा कि इसके साथ ही भारत लेसन लर्न्ट एंड रिकंसिलिएशन कमीशन की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करवाने, 13वें संशोधन को लागू कराने, लिट्टे के खिलाफ निर्णायक युद्ध के दौरान हुए नरसंहारों की निष्पक्ष जांच करने और दोषियों को सजा दिए जाने के लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाए।
भाजपा नेता ने इसके साथ ही कहा कि केंद्र सरकार न केवल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश किए जाने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करे बल्कि उस प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने में भी अग्रणी भूमिका निभाए।
केंद्र सरकार की विदेश नीति और खासकर पड़ोसी देशों के संबंध में अपनायी जा रही नीति पर भी उन्होंने सवाल खड़ा किया। उन्होंने श्रीलंका में चीन की भूमिका मजबूत होने की आशंका के चलते पड़ोसी देश पर प्रतिबंध नहीं लगाने के रुख पर कहा, केंद्र सरकार को पड़ोसियों और विश्व को यह संदेश देना चाहिए कि श्रीलंका और भारत के संबंधों में हस्तक्षेप किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
केंद्र सरकार को विदेश नीति के मामले में असहाय बताते हुए सिन्हा ने कहा कि विदेश नीति डर से नहीं आत्मविश्वास की ताकत से चलती है, इकबाल से चलती है और आज सरकार का इकबाल खत्म हो गया है। हमारे पड़ोसी मुल्क तक हमारी बात सुनने को तैयार नहीं हैं।
अन्नाद्रमुक के एम थम्बीदुरई ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा, उनके साथ दुर्व्यवहार एवं हत्या और उन्हें संविधान के तहत कोई अधिकार नहीं दिया जाना अत्यंत गंभीर मामला है। उन्होंने जानना चाहा कि तमिलों के हितों से संबंधित राजीव-जयवर्धने समझौते पर अमल करने के लिए क्या किया जा रहा है और अब तक इसे क्यों लागू नहीं किया जा सका।
संप्रग सरकार की घटक द्रमुक पर निशाना साधते हुए थम्बीदुरई ने कहा कि राजग से लेकर संप्रग तक 15 वर्षों से द्रमुक केंद्र में सत्ता में है लेकिन इस विषय को सुलझाया नहीं जा सका। उन्होंने कहा कि कावेरी मुद्दे पर अन्नाद्रमुक राजग सरकार से अलग हो गई थी क्या इनमें (द्रमुक) में ऐसा साहस है?
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा के मुलायम सिंह यादव ने कहा कि श्रीलंका में छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं और हमारी विदेश नीति मुश्किल में है। ‘‘प्रारंभ से ही हमारी विदेश नीति यह थी कि दुनिया में जहां कहीं भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हो, वहां भारत चुप नहीं रहेगा। लेकिन आज हम चुप हैं और हमारी विदेश नीति आगे नहीं बढ़ रही है।’’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया और इस बात पर भी विचार नहीं किया जा रहा है कि अच्छे और पुराने संबंध होने के बावजूद आज श्रीलंका से हमारे संबंध खराब क्यों हो रहे हैं और चीन क्यों बढ़ रहा है। सरकार बताए कि क्या आज दुनिया में भारत का एक भी मित्र देश है? मुलायम ने कहा, ‘‘सोनियाजी आज चुप क्यों है? आपका इन पर (सरकार पर) नियंत्रण है। आपकी बात ये नहीं काट सकते हैं। इन्हें बुलाएं और पूछें।’’
कांग्रेस के केएस अलागिरि ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों को जिस प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है और उनके साथ जैसा अत्याचार हो रहा है, वह अत्यंत निंदनीय है। भारत को तमिलों की स्थिति पर संज्ञान लेना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन करना चाहिए।
अलागिरि ने कहा कि श्रीलंका के तमिलों की समस्या का निपटारा करने का एकमात्र स्रोत भारत है और भारत ने इस दिशा में पूर्व में पहल भी की है। तमिलों की समस्याओं के समाधान के लिए राजीव-जयवर्धने समझौता एकमात्र रास्ता है। बसपा के दारा सिंह चौहान ने कहा कि श्रीलंका में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और तमिलों के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। श्रीलंका में एक वर्ग विशेष को सुनियोजित ढंग से समाप्त करने की कोशिश हो रही है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इन घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए इन्हें रोकने की पहल करनी चाहिए।
जदयु के जगदीश शर्मा ने कहा कि तमिल हमारे भाई हैं और श्रीलंका के स्थायी निवासी हैं लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार गंभीर विषय है जो हमारी विदेश नीति की कमी को दर्शाता है।
उन्होंने मांग की कि श्रीलंकाई तमिलों के नरसंहार की स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच होनी चाहिए और इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि हम श्रीलंका के तमिलों की पीड़ा को समझ सकते हैं क्योंकि हमारी भावनाएं ढाका में बंगालियों से जुड़े युद्ध अपराध मामले में शाहबाग आंदोलन से जुड़ी हैं। श्रीलंका में तमिलों को लोकतांत्रित अधिकार नहीं है और उनके खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। इस स्थिति को रोकने के उपाय होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम भी सरकार में थे लेकिन खुदरा क्षेत्र में एफडीआई और डीजल की कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर हम बाहर हो गए। साथ ही सवाल किया कि द्रमुक की क्या मजबूरी है?
माकपा के पीआर नटराजन ने कहा कि श्रीलंका में लिट्टे के साथ युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। भाकपा के पी लिंगम ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों ने समानता के अधिकार लिए संघर्ष किया जो बाद में आतंकवाद के रूप में बदल गया। श्रीलंका सरकार के रवैये के कारण हालात खराब हुए।
बीजद के भृतुहरि महताब ने प्रभाकरण के बेटे के मारे जाने पर सवाल करते हुए कहा कि क्या श्रीलंकाई सेना को आशंका थी कि 15-20 साल बाद बेटा अपने पिता की राह पर चल पड़ेगा? क्या प्रभाकरण के बेटे की मौत गोलीबारी में हुई? अगर वह जिन्दा है तो श्रीलंकाई सेना उसे सामने क्यों नहीं लाती? जदयु के शरद यादव और राजद के लालू प्रसाद ने श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा पर अन्य सदस्यों द्वारा व्यक्त विचारों का समर्थन किया।
चर्चा में एमडीएमके के ए गणेशमूर्ति, वीसीके के तिरुमा वलवन, जेवीएम-पी के अजय कुमार और निर्दलीय तरुण मंडल ने भी हिस्सा लिया।
सदन के सदस्य यह जानना चाहते थे कि सरकार श्रीलंकाई तमिलों को उनके जायज अधिकार दिलाने के लिए खुद के और विश्वस्तर पर क्या कदम उठा रही है। इस दौरान सदन में हंगामा हुआ और डीएमके और बीजेपी ने सदन से वॉकआउट किया।
इससे पहले, श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा के संबंध में लोकसभा में आज सदस्यों ने गंभीर चिंता जाहिर करते हुए केंद्र सरकार से जानना चाहा कि वह श्रीलंकाई तमिलों को उनके जायज अधिकार दिलाने के लिए खुद के और विश्व के स्तर पर क्या कदम उठा रही है।
लोकसभा में आज श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा पर विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए द्रमुक के टीआर बालू ने कहा कि ऐसा भ्रम फैला हुआ है कि भारत सरकार श्रीलंकाई तमिलों के लिए खास कुछ नहीं कर रही है और सरकार अपने कार्यों से इस गलतफहमी को दूर करे।
उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि श्रीलंकाई तमिलों के अधिकारों और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए वह ‘न्यूनतम’ क्या करना चाहती है। उन्होंने कहा कि पिछले चार सालों से श्रीलंका में रह रहे तमिल तबाह हो गए हैं और श्रीलंकाई सेना के आक्रमण में 40 हजार से अधिक तमिलों का नरसंहार हुआ है।
बालू ने कहा कि तमिल भाषा, संस्कृति और नस्ल सबको विलुप्त करने का श्रीलंका में अभियान चल रहा है। इसे रोके जाने की सख्त जरूरत है।
उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई सेना द्वारा वहां के तमिलों के खिलाफ चलाए गए युद्ध में 90 हजार तमिल महिलाएं विधवा हुई हैं और दो लाख से अधिक लोग लापता हैं। यह पता लगाया जाना चाहिए कि इन दो लाख लोगों का क्या हुआ।
द्रमुक नेता ने कहा कि इसके अलावा श्रीलंकाई सेना और सरकार के दमन के चलते एक लाख 30 हजार से अधिक श्रीलंकाई तमिल अपने देश से पलायन कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के तथाकथित महिला सुरक्षा शिविरों में महिलाओं का बुरा हाल है और उनका हर तरह का शोषण किया जा रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीलंकाई तमिल महिलाओं और पुरुषों का यौन शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि बोस्नियाई महिलाओं के साथ सर्ब सेना ने जो वीभत्स कृत्य किया था, कुछ वैसा ही श्रीलंकाई सेना अपने यहां की तमिल महिलाओं के साथ कर रही है।
यशवंत सिन्हा ने कहा कि भाजपा श्रीलंकाई तमिलों के लिए अलग राष्ट्र के पक्ष में नहीं है बल्कि वह तमिलों के नरसंहार के खिलाफ है और तमिलों को देश के भीतर समान अधिकार दिलाए जाने की पक्षधर है। सरकार को श्रीलंकाई तमिलों की समस्या के समाधान के लिए सात सूत्री सुझाव पत्र पेश करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम भारत सरकार को श्रीलंकाई सरकार से नार्दर्न प्रोविंस से सेना को तत्काल हटाए जाने की मांग करनी चाहिए।
सिन्हा ने कहा कि इसके साथ ही भारत लेसन लर्न्ट एंड रिकंसिलिएशन कमीशन की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करवाने, 13वें संशोधन को लागू कराने, लिट्टे के खिलाफ निर्णायक युद्ध के दौरान हुए नरसंहारों की निष्पक्ष जांच करने और दोषियों को सजा दिए जाने के लिए श्रीलंका सरकार पर दबाव बनाए।
भाजपा नेता ने इसके साथ ही कहा कि केंद्र सरकार न केवल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पेश किए जाने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करे बल्कि उस प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने में भी अग्रणी भूमिका निभाए।
केंद्र सरकार की विदेश नीति और खासकर पड़ोसी देशों के संबंध में अपनायी जा रही नीति पर भी उन्होंने सवाल खड़ा किया। उन्होंने श्रीलंका में चीन की भूमिका मजबूत होने की आशंका के चलते पड़ोसी देश पर प्रतिबंध नहीं लगाने के रुख पर कहा, केंद्र सरकार को पड़ोसियों और विश्व को यह संदेश देना चाहिए कि श्रीलंका और भारत के संबंधों में हस्तक्षेप किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
केंद्र सरकार को विदेश नीति के मामले में असहाय बताते हुए सिन्हा ने कहा कि विदेश नीति डर से नहीं आत्मविश्वास की ताकत से चलती है, इकबाल से चलती है और आज सरकार का इकबाल खत्म हो गया है। हमारे पड़ोसी मुल्क तक हमारी बात सुनने को तैयार नहीं हैं।
अन्नाद्रमुक के एम थम्बीदुरई ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों की दुर्दशा, उनके साथ दुर्व्यवहार एवं हत्या और उन्हें संविधान के तहत कोई अधिकार नहीं दिया जाना अत्यंत गंभीर मामला है। उन्होंने जानना चाहा कि तमिलों के हितों से संबंधित राजीव-जयवर्धने समझौते पर अमल करने के लिए क्या किया जा रहा है और अब तक इसे क्यों लागू नहीं किया जा सका।
संप्रग सरकार की घटक द्रमुक पर निशाना साधते हुए थम्बीदुरई ने कहा कि राजग से लेकर संप्रग तक 15 वर्षों से द्रमुक केंद्र में सत्ता में है लेकिन इस विषय को सुलझाया नहीं जा सका। उन्होंने कहा कि कावेरी मुद्दे पर अन्नाद्रमुक राजग सरकार से अलग हो गई थी क्या इनमें (द्रमुक) में ऐसा साहस है?
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा के मुलायम सिंह यादव ने कहा कि श्रीलंका में छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं और हमारी विदेश नीति मुश्किल में है। ‘‘प्रारंभ से ही हमारी विदेश नीति यह थी कि दुनिया में जहां कहीं भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हो, वहां भारत चुप नहीं रहेगा। लेकिन आज हम चुप हैं और हमारी विदेश नीति आगे नहीं बढ़ रही है।’’ उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया और इस बात पर भी विचार नहीं किया जा रहा है कि अच्छे और पुराने संबंध होने के बावजूद आज श्रीलंका से हमारे संबंध खराब क्यों हो रहे हैं और चीन क्यों बढ़ रहा है। सरकार बताए कि क्या आज दुनिया में भारत का एक भी मित्र देश है? मुलायम ने कहा, ‘‘सोनियाजी आज चुप क्यों है? आपका इन पर (सरकार पर) नियंत्रण है। आपकी बात ये नहीं काट सकते हैं। इन्हें बुलाएं और पूछें।’’
कांग्रेस के केएस अलागिरि ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों को जिस प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है और उनके साथ जैसा अत्याचार हो रहा है, वह अत्यंत निंदनीय है। भारत को तमिलों की स्थिति पर संज्ञान लेना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव का समर्थन करना चाहिए।
अलागिरि ने कहा कि श्रीलंका के तमिलों की समस्या का निपटारा करने का एकमात्र स्रोत भारत है और भारत ने इस दिशा में पूर्व में पहल भी की है। तमिलों की समस्याओं के समाधान के लिए राजीव-जयवर्धने समझौता एकमात्र रास्ता है। बसपा के दारा सिंह चौहान ने कहा कि श्रीलंका में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं और तमिलों के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। श्रीलंका में एक वर्ग विशेष को सुनियोजित ढंग से समाप्त करने की कोशिश हो रही है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इन घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए इन्हें रोकने की पहल करनी चाहिए।
जदयु के जगदीश शर्मा ने कहा कि तमिल हमारे भाई हैं और श्रीलंका के स्थायी निवासी हैं लेकिन उनके साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार गंभीर विषय है जो हमारी विदेश नीति की कमी को दर्शाता है।
उन्होंने मांग की कि श्रीलंकाई तमिलों के नरसंहार की स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच होनी चाहिए और इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की व्यवस्था होनी चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि हम श्रीलंका के तमिलों की पीड़ा को समझ सकते हैं क्योंकि हमारी भावनाएं ढाका में बंगालियों से जुड़े युद्ध अपराध मामले में शाहबाग आंदोलन से जुड़ी हैं। श्रीलंका में तमिलों को लोकतांत्रित अधिकार नहीं है और उनके खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं। इस स्थिति को रोकने के उपाय होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम भी सरकार में थे लेकिन खुदरा क्षेत्र में एफडीआई और डीजल की कीमतों में वृद्धि के मुद्दे पर हम बाहर हो गए। साथ ही सवाल किया कि द्रमुक की क्या मजबूरी है?
माकपा के पीआर नटराजन ने कहा कि श्रीलंका में लिट्टे के साथ युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है। भाकपा के पी लिंगम ने कहा कि श्रीलंका में तमिलों ने समानता के अधिकार लिए संघर्ष किया जो बाद में आतंकवाद के रूप में बदल गया। श्रीलंका सरकार के रवैये के कारण हालात खराब हुए।
बीजद के भृतुहरि महताब ने प्रभाकरण के बेटे के मारे जाने पर सवाल करते हुए कहा कि क्या श्रीलंकाई सेना को आशंका थी कि 15-20 साल बाद बेटा अपने पिता की राह पर चल पड़ेगा? क्या प्रभाकरण के बेटे की मौत गोलीबारी में हुई? अगर वह जिन्दा है तो श्रीलंकाई सेना उसे सामने क्यों नहीं लाती? जदयु के शरद यादव और राजद के लालू प्रसाद ने श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा पर अन्य सदस्यों द्वारा व्यक्त विचारों का समर्थन किया।
चर्चा में एमडीएमके के ए गणेशमूर्ति, वीसीके के तिरुमा वलवन, जेवीएम-पी के अजय कुमार और निर्दलीय तरुण मंडल ने भी हिस्सा लिया।
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