नई दिल्ली:
जैसे आसार थे, संसद के मॉनसून सत्र का पहला दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। राज्यसभा में विपक्ष ने साफ़ कर दिया कि वो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफ़े के बिना सदन नहीं चलने देगा।
दूसरी तरफ़, सरकार पूरे दिन ये कहती रही कि वो इस मुद्दे पर बहस के लिए तैयार है। सुषमा स्वराज ने भी कहा कि वो ललितगेट में जवाब देने को तैयार है, लेकिन सरकार की कोशिशों के बावजूद सदन की कार्यवाही नहीं चल पाई।
दरअसल, मॉनसून सत्र के शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई थी कि सरकार को इस बार विपक्षी दलों का साथ मिलेगा। संसद पहुंचते ही प्रधानमंत्री ने कहा था, "देश को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय सब मिलकर करें, ये प्रयास हमारा निरंतर रहा है, आगे भी रहेगा। गत सत्र में कुछ राजनीतिक दलों ने ये आश्वासन दिया था कि अगले सत्र में कुछ काम प्राथमिकता पर पूरे कर दिए जाएंगे। इसलिए मुझे आशा है कि इस सत्र में काफी अच्छे निर्णय होंगे, अधिक निर्णय होंगे।"
लेकिन प्रधानमंत्री के इस बयान का असर विपक्ष पर नहीं दिखा। कांग्रेस, लेफ़्ट और समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में पूरे दिन हंगामा किया और सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफ़ा मांगते रहे।
हालांकि राज्यसभा में कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने काम रोको प्रस्ताव दिया था, लेकिन बाद में बाकी दलों का साथ मिलता देख उसने इस्तीफे की मांग शुरू कर दी। राज्यसभा बार-बार स्थगित होती रही और आख़िरकार तीन बजे कार्यवाही अगले दिन के लिए टाल दी गई।
राज्यसभा में हंगामे के बीच संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने साफ कर दिया कि किसी भी बीजेपी मंत्री के इस्तीफ़े का कोई सवाल ही नहीं है। ज़ाहिर है ये शुरुआत बता रही है कि पूरे मॉनसून सत्र पर टकराव के ये बादल छाए रहेंगे।
2010 में बीजेपी ने संसद में मांग की थी कि टूजी घोटाले पर सदन में तभी चर्चा हो सकती है जब इस घोटाले के आरोपी मंत्री इस्तीफा दे दें। अब पांच साल बाद कांग्रेस, लेफ्ट और समाजवादी पार्टी के नेता एनडीए सरकार के सामने वहीं मांग कर रहे हैं, लेकिन मुश्किल ये है कि आज एनडीए सरकार का रूख वही है जो पांच साल पहले यूपीए सरकार का था।
दूसरी तरफ़, सरकार पूरे दिन ये कहती रही कि वो इस मुद्दे पर बहस के लिए तैयार है। सुषमा स्वराज ने भी कहा कि वो ललितगेट में जवाब देने को तैयार है, लेकिन सरकार की कोशिशों के बावजूद सदन की कार्यवाही नहीं चल पाई।
दरअसल, मॉनसून सत्र के शुरू होने से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई थी कि सरकार को इस बार विपक्षी दलों का साथ मिलेगा। संसद पहुंचते ही प्रधानमंत्री ने कहा था, "देश को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण निर्णय सब मिलकर करें, ये प्रयास हमारा निरंतर रहा है, आगे भी रहेगा। गत सत्र में कुछ राजनीतिक दलों ने ये आश्वासन दिया था कि अगले सत्र में कुछ काम प्राथमिकता पर पूरे कर दिए जाएंगे। इसलिए मुझे आशा है कि इस सत्र में काफी अच्छे निर्णय होंगे, अधिक निर्णय होंगे।"
लेकिन प्रधानमंत्री के इस बयान का असर विपक्ष पर नहीं दिखा। कांग्रेस, लेफ़्ट और समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में पूरे दिन हंगामा किया और सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफ़ा मांगते रहे।
हालांकि राज्यसभा में कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने काम रोको प्रस्ताव दिया था, लेकिन बाद में बाकी दलों का साथ मिलता देख उसने इस्तीफे की मांग शुरू कर दी। राज्यसभा बार-बार स्थगित होती रही और आख़िरकार तीन बजे कार्यवाही अगले दिन के लिए टाल दी गई।
राज्यसभा में हंगामे के बीच संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने साफ कर दिया कि किसी भी बीजेपी मंत्री के इस्तीफ़े का कोई सवाल ही नहीं है। ज़ाहिर है ये शुरुआत बता रही है कि पूरे मॉनसून सत्र पर टकराव के ये बादल छाए रहेंगे।
2010 में बीजेपी ने संसद में मांग की थी कि टूजी घोटाले पर सदन में तभी चर्चा हो सकती है जब इस घोटाले के आरोपी मंत्री इस्तीफा दे दें। अब पांच साल बाद कांग्रेस, लेफ्ट और समाजवादी पार्टी के नेता एनडीए सरकार के सामने वहीं मांग कर रहे हैं, लेकिन मुश्किल ये है कि आज एनडीए सरकार का रूख वही है जो पांच साल पहले यूपीए सरकार का था।
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