
तमिलनाडु में कार्टूनिस्ट बाला की गिरफ्तारी पर यह है देश के मशहूर कार्टूनिस्टों की राय
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कार्टूनिस्ट की गिरफ्तारी पर देश के मशहूर कार्टूनिस्टों ने दी अपनी राय
सरकारों की बढ़ रही असहिष्णुता को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
अभिषेक तिवारी ने कहा कि उनका बनाया कार्टून आम आदमी के पक्ष में था

व्यवस्था के अंधेरे कमरे में कैद व्यक्ति के लिए कार्टून एक रोशनदान है, उसे भी बंद कर देना चाहते हैं ये लोग. पर कार्टूनिस्ट कृतिश भट्ट अभिव्यक्ति की आजादी को इस तरह से इस्तेमाल किये जाने को लक्ष्मण रेखा लांघना मानते हैं. कृतिश का मानना है कि हर समाज की अपनी परंपरा होती है और हमें उसके दायरे को नहीं लांघना चाहिए. उन्हें लगता है कि कार्टून में किसी के कपड़े उतार कर रख देना भी ठीक नहीं है. हालांकि रितेश ये जोड़ना भी नहीं भूलते कि सरकार ने जरूरत से ज्यादा कठोर तरीका अपनाया है.

वरिष्ठ कार्टूनिस्ट इरफान खान भी विवादित कार्टून को अच्छी श्रेणी में नहीं रखते. हालांकि, उनका भी यही कहना है कि सरकार पहले चेतावनी तो दे सकती थी. इरफान खान ये भी बताते हैं कि उन्होंने बाला से बात भी की और ये समझने की कोशिश भी कि इस तरफ कि कार्टून बनाने से उन्हें बचना चाहिए पर बाला ने इरफ़ान को बताया कि एक इंसान के साथ हुए हादसे से वो इतने गुस्से में थे कि उन्होंने ये कार्टून बनाया.

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पहले भी सरकारें इस तरह की कार्रवाई करती रही है और कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी भी उनमे से एक हैं. असीम का कहना है कि कार्टून में एक प्रतीकात्मक बोध होता है. बाला ने कार्टून में जो कुछ दिखाया वो बेशर्मी को दिखने का एक प्रतीकात्मक तरीका है. मेरे ख्याल से ये बहुत शानदार तरीका था. बाला की आवाज़ में मेरी भी आवाज शामिल है और हजारों पत्रकारों कार्टूनिस्टों की आवाज शामिल है.

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हिंदुस्तान अखबार की कार्टूनिस्ट पवन टून कहते हैं कि पहले की तुलना में अब नेता हास्य बर्दास्त काम ही करते हैं. यही कारण है कि माध्यम कार्टून का हो या लिखने का, आलोचना होने पर गिरफ़्तारी जैसे कठोर कदम आम होते जा रहे हैं. पवन एक दिलचस्प प्रसंग का जिक्र करते हुए बताते हैं कि किस तरफ पंडित नेहरू ने शंकर पिल्लई के कार्टून्स को देखते-विमोचन करते हुए कहा था-शंकर मुझे कभी बख्शना मत. आज के दौर के नेताओं में आलोचना को यूं गंभीरता से लेने की सहनशक्ति काफी काम होती चली जा रही है.

वहीं, इंडिया टुमॉरो के कार्टूनिस्ट युसूफ मुन्ना का मन्ना है की एक कार्टून को लेकर जिस तरह पुलिस, प्रशासन और सरकार सक्रियता दिखायी है वैसी सक्रियता कर्ज से पीड़ित परिवार को बचाने के लिये दिखाना चाहिए था.

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राज्य सरकार अब अपनी खीझ कार्टूनिस्ट बाला पर उतार कर मीडिया की आवाज को दबाना चाहती है जो निन्दनीय है.
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