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This Article is From Jan 11, 2021

एनीमल प्रिवेंशन एक्‍ट पर SC की दोटूक, 'नियमों में विसंगति, ये सजा के पहले ही जानवरों को दूर ले जाने की देते हैं इजाजत'

याचिका में 23 मई, 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम नियम, 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजारों का विनियमन) नियम, 2017 को असंवैधानिक और अवैध करार देने की मांग की गई है

एनीमल प्रिवेंशन एक्‍ट पर SC की दोटूक, 'नियमों में विसंगति, ये सजा के पहले ही जानवरों को दूर ले जाने की देते हैं इजाजत'
एनीमल प्रिवेंशन एक्‍ट 2017 मामले में सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई अगले हफ्ते होगी (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्‍ली:

पशुओं के जबरन परिवहन में इस्तेमाल पर उस वाहन को कब्जे में करने तथा पशुओं को गोशाला या गाय आश्रयों को भेजने के 2017 के नियम (Animal prevention act 2017) को चुनौती देने के मामले में मुख्‍य न्‍यायाधीश (CJI) ने कहा है कि आपका कानून पक्का विश्वास होने से पहले ही जानवर को ले जाने की इजाज़त देता है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि बिक्री और जब्ती में अंतर है.जब बिक्री होती है तब आय अर्जित होती है. जानवरों की जब्ती के बारे में चिंतित हैं और असली मालिक से जानवर को कब्जे में ले लिया जा रहा है. बफेलो ट्रेडर्स एसोसिएशन ने 2017 में बने नियम को चुनौती दी है.

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CJI ने केंद्र सरकार से पूछा है कि आप नियमों के बारे में क्या करने जा रहे हैं, हमने आपको पिछली बार बताया था कि नियम अनुभागों के साथ असंगति में हैं.पशु लोगों की आजीविका का स्रोत हैं. यह खंड स्पष्ट है कि दोषी ठहराए जाने के बाद ही जानवरों को ले जाया जा सकता है. SC ने कहा कि आपके नियम सजा से पहले ही जानवरों को दूर ले जाने की अनुमति देते हैं. मामले में सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता उलझन में है.
 क्रूरता के अधीन एक पशु को व्यक्ति के पास रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.किसी भी जब्ती के मामले में, पक्षकार कस्टडी के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. इस मामले में विस्तृत जवाब दाखिल किया गया है.इस पर CJI ने कहा कि हम जवाब पर विचार करेंगे, सुनवाई अगले हफ्ते होगी.

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गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में SC ने इस मामले में केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर उठाया सवाल उठाया था. CJI एसए बोबडे ने कहा था कि कुत्‍तों-बिल्लियों को छोड़कर बहुत से जानवर बहुत से लोगों की आजीविका के स्रोत हैं, आप इसे इस तरह नहीं छीन ले जा  सकते.यह धारा 29 के विरूद्ध है, आपके नियम विरोधाभासी हैं.सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया कि वो इन नियमों पर रोक लगा सकता है. केंद्र सरकार की ओर से ASG जयंत सूद (ASG Jayant Sood) ने अतिरिक्त  हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा था .सुप्रीम कोर्ट, बुफेलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें 2017 के नोटिफिकेशन की वैधता को चुनौती दी गई है जिसमें अधिकारियों को मवेशियों के परिवहन में प्रयुक्त वाहनों को जब्त करने और पशुओं को 'गौशाला' (गौ आश्रय गृह) भेजने की अनुमति दी गई है. जुलाई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. सीजेआई एसए बोबड़े और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिका पर केंद्र को एक नोटिस जारी किया था जिसमें दावा किया गया कि इस तरह का नोटिफिकेशन मूल कानून, क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों से बाहर चला गया है. याचिकाकर्ता दिल्ली के पशु व्यापारियों के संगठन का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और अधिवक्ता सनोबर अली कुरैशी ने किया है, इसमें 23 मई, 2017 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (केस संपत्ति प्राणियों की देखभाल और रखरखाव) नियम, 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (पशुधन बाजारों का विनियमन) नियम, 2017 को असंवैधानिक और अवैध करार देने की मांग की गई है.

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SC ने कहा ये नियम कानून के विपरीत है, अगर सरकार प्रावधानों को नहीं हटाती है तो अदालत इसे रोक सकती है. हालांकि, अदालत ने इस मामले को सरकार के वकील के अनुरोध पर 11 जनवरी के लिए स्थगित कर दिया था. चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम एक बात समझते हैं. पालतू जानवर नहीं, पशु लोगों की आजीविका का स्रोत होते हैं. आप (सरकार) उन्हें गिरफ़्तार करने से पहले उन्हें पकड़ नहीं कर सकते. इसलिए प्रावधान विपरीत हैं. आप इसे हटा दें या हम इसे हटा देंगे. केंद्र के वकील ने बताया कि सरकार ने नियमों को अधिसूचित किया है और यह जानवरों पर क्रूरता को रोकने और रिकॉर्ड पर साक्ष्य है. चीफ जस्टिस ने कहा कि कानून में संशोधन करें, धाराएं बहुत स्पष्ट हैं.दोषी पाए जाने पर एक व्यक्ति अपने जानवर को खो सकता है. नियम कानून के विपरीत नहीं हो सकता है. 

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