अस्पताल में भर्ती कर्नल पुष्पिंदर सिंह अपनी बेटियों और पोती के साथ।
नई दिल्ली:
78 साल के बिशंभर कहते हैं कि वह अपने उपनाम का उपयोग अधिकांशतः नहीं करते, हर कोई उन्हें ग्रेनेडियर बिशंभर कहकर बुलाता है। उनकी पुरानी रेजीमेंट ही उनकी एकमात्र पहचान है।
लगभग 70 दिनों से यह वृद्ध ग्रेनेडियर सोने का प्रयास करने से पहले हर रात सफलता की प्रार्थना करता आ रहा है। नींद तो सुखद स्थिति में ही आती है। उनके दिमाग में तो कई विचार उमड़ रहे हैं। जैसे वह घर कब वापस लौटेंगे? वन रैंक, वन पेंशन के लिए चल रहा प्रदर्शन कब खत्म होगा। क्या उन्हें पेंशन के रूप में हर माह कुछ हजार रुपए अतिरिक्त मिलेंगे? क्या सरकार अंततः उनके पूर्व-सहकर्मचारियों को वह सम्मान देगी, जो उनके हिसाब से अभी तक देने से मना कर दिया गया है।
बिशंभर के साथ ही कुछ पूर्व-सैनिक जो भले ही आमरण अनशन नहीं कर रहे हैं, लेकिन वे 17 अगस्त से अन्न का एक भी निवाला नहीं लेने वाले और बुधवार को अस्पताल जाने से मना करने वाले हवलदार मेजर सिंह जैसे लोगों का साथ नहीं छोड़ेंगे। हालांकि अब वह बहुत कमजोर हो गए हैं और उन्हें किसी भी समय वहां से अस्पताल ले जाया जा सकता है। हवलदार ने कहा, 'जब तक हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, मैं यहीं रहूंगा। यदि मुझे यहां मरना भी पड़ा, तो कोई बात नहीं, मैं यहीं मर जाऊंगा।'
ग्रेनेडियर के एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी कर्नल पुष्पिंदर सिंह ने भी अपना उपवास हवलदार मेजर सिंह के साथ शुरू किया था। उन्हें सोमवार को हालत बिगड़ने पर धरनास्थल से हटाकर आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया था। लेकिन अस्पताल में भी उन्होंने खाने से मना कर दिया और उन्हें लगातार ड्रिप लगाई जा रही हैं।
बुधवार को भारतीय नौसेना के पूर्व कमांडर एके शर्मा भी प्रदर्शन में शामिल हो गए। उन्होंने हंसते हुए मुझसे सवाल किया कि क्या मैं उनके साथ आमरण अनशन में शामिल होना चाहूंगा। मैंने उनसे कहा मुझमें इतना साहस नहीं है। उन्होंने कहा, 'कोशिश करें, आपमें साहस आ जाएगा।' मैंने कमांडर से पूछा वह रात कैसे बिताएंगे। इस पर उन्होंने कहा, 'हम बातें करेंगे। जितना हो सकेगा आराम करने की कोशिश करेंगे। फिर देखते हैं क्या होता है। मेरा परिवार मेरे साथ है और इसी वजह से मैं यहां हूं।'
जंतर मंतर पर अब सन्नाटा पसरा हुआ है। अन्य प्रदर्शनकारी चले गए हैं। आसपास से गुजर रहे लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले लाउडस्पीकरों की लगातार आने वाली आवाज भी बंद हो गई है। अब केवल यहां से कभी कभार गुजरने वाले ऑटोरिक्शा की ही आवाज आ रही है और यहां कुछ मुट्ठीभर OROP प्रदर्शनकारी जमे हुए हैं, जिन्होंने यहां से जाने से इंकार कर दिया है।
यह सच्चे सैनिक हैं, जिनका लक्ष्य विजय मिलने तक मोर्चा संभाले रखना होता है। और वे यहां यही कर रहे हैं। सेना की पुरानी आदतें मुश्किल से छूटती हैं। आदेश तो आदेश होता है, और वह इससे तब तक पीछे नहीं हटने वाले हैं जब तक कि उनका लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता।
लगभग 70 दिनों से यह वृद्ध ग्रेनेडियर सोने का प्रयास करने से पहले हर रात सफलता की प्रार्थना करता आ रहा है। नींद तो सुखद स्थिति में ही आती है। उनके दिमाग में तो कई विचार उमड़ रहे हैं। जैसे वह घर कब वापस लौटेंगे? वन रैंक, वन पेंशन के लिए चल रहा प्रदर्शन कब खत्म होगा। क्या उन्हें पेंशन के रूप में हर माह कुछ हजार रुपए अतिरिक्त मिलेंगे? क्या सरकार अंततः उनके पूर्व-सहकर्मचारियों को वह सम्मान देगी, जो उनके हिसाब से अभी तक देने से मना कर दिया गया है।
78 साल के ग्रेनेडियर बिशंभर, जो वन रैंक वन पेंशन की मांग कर रहे साथियों के साथ धरनास्थल पर डंटे हैं।
बिशंभर के साथ ही कुछ पूर्व-सैनिक जो भले ही आमरण अनशन नहीं कर रहे हैं, लेकिन वे 17 अगस्त से अन्न का एक भी निवाला नहीं लेने वाले और बुधवार को अस्पताल जाने से मना करने वाले हवलदार मेजर सिंह जैसे लोगों का साथ नहीं छोड़ेंगे। हालांकि अब वह बहुत कमजोर हो गए हैं और उन्हें किसी भी समय वहां से अस्पताल ले जाया जा सकता है। हवलदार ने कहा, 'जब तक हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, मैं यहीं रहूंगा। यदि मुझे यहां मरना भी पड़ा, तो कोई बात नहीं, मैं यहीं मर जाऊंगा।'
ग्रेनेडियर के एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी कर्नल पुष्पिंदर सिंह ने भी अपना उपवास हवलदार मेजर सिंह के साथ शुरू किया था। उन्हें सोमवार को हालत बिगड़ने पर धरनास्थल से हटाकर आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया था। लेकिन अस्पताल में भी उन्होंने खाने से मना कर दिया और उन्हें लगातार ड्रिप लगाई जा रही हैं।
बुधवार को भारतीय नौसेना के पूर्व कमांडर एके शर्मा भी प्रदर्शन में शामिल हो गए। उन्होंने हंसते हुए मुझसे सवाल किया कि क्या मैं उनके साथ आमरण अनशन में शामिल होना चाहूंगा। मैंने उनसे कहा मुझमें इतना साहस नहीं है। उन्होंने कहा, 'कोशिश करें, आपमें साहस आ जाएगा।' मैंने कमांडर से पूछा वह रात कैसे बिताएंगे। इस पर उन्होंने कहा, 'हम बातें करेंगे। जितना हो सकेगा आराम करने की कोशिश करेंगे। फिर देखते हैं क्या होता है। मेरा परिवार मेरे साथ है और इसी वजह से मैं यहां हूं।'
जंतर मंतर पर अब सन्नाटा पसरा हुआ है। अन्य प्रदर्शनकारी चले गए हैं। आसपास से गुजर रहे लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले लाउडस्पीकरों की लगातार आने वाली आवाज भी बंद हो गई है। अब केवल यहां से कभी कभार गुजरने वाले ऑटोरिक्शा की ही आवाज आ रही है और यहां कुछ मुट्ठीभर OROP प्रदर्शनकारी जमे हुए हैं, जिन्होंने यहां से जाने से इंकार कर दिया है।
यह सच्चे सैनिक हैं, जिनका लक्ष्य विजय मिलने तक मोर्चा संभाले रखना होता है। और वे यहां यही कर रहे हैं। सेना की पुरानी आदतें मुश्किल से छूटती हैं। आदेश तो आदेश होता है, और वह इससे तब तक पीछे नहीं हटने वाले हैं जब तक कि उनका लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता।
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