बीजेडी विधायक रमेश पटुआ ने मानवता की मिसाल पेश की है.
नई दिल्ली:
ओडिशा के झारसुगुडा में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसके दो पक्ष हैं. एक पक्ष जहां मानवता और इंसानियत की मिसाल पेश करती है, वहीं दूसरा पक्ष समाज की असंवेदनशीलता का काला स्याह उजागर करती है. दरअसल, ओडिशा के झारसुगुडा में बीजेडी विधायक रमेश पटुआ ने मानवता की मिसाल पेश की है. बीजेडी विधायक रमेश ने वह काम किया, जिसे करने से समाज के लोगों ने जाति से बहिष्कृत होने की डर से मना कर दिया. विधायक रमेश पटुआ ने उस बेसहारा महिला के शव को कांधा दिया और उसका अंतिम संस्कार किया, जिसे कांधा देने से पूरे समाज के लोग इनकार कर चुके थे. वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें समाज से निकाले जाने का डर था कि अगर वह उस महिला के शव को कांधा देंगे और उसके जनाजे में शामिल होंगे तो उन्हें अपनी जाति और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा.
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झारसुगुडा के अमनापली गांव में जाति से बहिष्कार किये जाने की डर से लोगों ने महिला के शव को छूने से इनकार कर दिया. तब जाकर उसके एक दिन बाद बीजेपी विधायक रमेश पटुआ आगे आए और महिला के शव को कांधा दिया और कुछ लोगों को साथ लेकर उसका अंतिम संस्कार किया. बताया जा रहा है कि महिला भीख मांगती थी और वह अपने देवर के साथ एक झोपड़ी में रहती थी. मगर उसका देवर भी इतना ज्यादा बीमार था कि वह भी उसका अंतिम संस्कार कर पाने की भी स्थिति में नहीं था.
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बता दें कि 46 साल के रमेश पटुआ रेंगाली (संबलपुर) विधानसभा से विधायक हैं. इन्होंने समाज के बीच यह काम कर एक उदाहरण पेश किया है. गौरतलब है कि बीते दिनों ओडिशा में ही एक घटना देखने को मिली, जिसमें बौद्ध जिले में एक व्यक्ति को अपनी साली का शव अंत्येष्टि के लिए साइकिल पर ले जाना पड़ा. क्योंकि कोई उसे समाज की डर से कंधा देने को तैया3र नहीं था.
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झारसुगुडा के अमनापली गांव में जाति से बहिष्कार किये जाने की डर से लोगों ने महिला के शव को छूने से इनकार कर दिया. तब जाकर उसके एक दिन बाद बीजेपी विधायक रमेश पटुआ आगे आए और महिला के शव को कांधा दिया और कुछ लोगों को साथ लेकर उसका अंतिम संस्कार किया. बताया जा रहा है कि महिला भीख मांगती थी और वह अपने देवर के साथ एक झोपड़ी में रहती थी. मगर उसका देवर भी इतना ज्यादा बीमार था कि वह भी उसका अंतिम संस्कार कर पाने की भी स्थिति में नहीं था.
बीजेडी विधायक रमेश पटुआ ने कहा कि गांवों में ऐसी धारणा है कि अगर कोई दूसरी जाति के व्यक्ति का शव छूता है तो उसे अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है. मैंने लोगों से अंतिम संस्कार करने को कहा. मगर लोगों ने यह कहकर मना कर दिया कि अगर वे इस बूढ़ी महिला का शव छुएंगे तो उन्हें अपनी जाति से निकाल दिया जाएगा. इसलिए मैंने मैंने अपने बेटे और भतीजे को बुलाया और फिर साथ में मिलकर उसके शव को दफनाया और महिला का अंतिम संस्कार किया.Odisha: Ramesh Patua,BJD MLA from Rengali, came forward to perform last rites of a woman in Jharsuguda's Amnapali Village y'day after locals skipped it fearing ostracisation. The woman,a beggar,lived with her ailing brother-in-law who couldn't attend the ceremony as he was unwell pic.twitter.com/ljoWPTXFSi
— ANI (@ANI) August 5, 2018
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बता दें कि 46 साल के रमेश पटुआ रेंगाली (संबलपुर) विधानसभा से विधायक हैं. इन्होंने समाज के बीच यह काम कर एक उदाहरण पेश किया है. गौरतलब है कि बीते दिनों ओडिशा में ही एक घटना देखने को मिली, जिसमें बौद्ध जिले में एक व्यक्ति को अपनी साली का शव अंत्येष्टि के लिए साइकिल पर ले जाना पड़ा. क्योंकि कोई उसे समाज की डर से कंधा देने को तैया3र नहीं था.
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