आतंक रोधी ऑपरेशन की चुनौती से निपटने के लिए एनएसजी ने इसे शामिल किया.
नई दिल्ली:
पिछले साल जनवरी में पठानकोट एयरबेस में जब हमला हुआ तब एक कमांडो राजेश नेगी की आंख में स्प्लिंटर(छर्रे) लग गए थे जिसके कारण उन्हें अपनी आंख गवानी पड़ी थी. इस बात को ध्यान में रखते हुए इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए NSG ने अब बैलिस्टिक हेलमेट या फिर कहें बुलेट प्रूफ़ हेलमेट अपने बॉडी गेयर में शामिल कर लिए हैं.
वैसे दिखने में ये हेलमेट बड़ा आम सा दिखता है लेकिन कमाल का है. इसका फ़्रंट कवर और बेस दोनो 9एमएम की गोली तक झेल सकते हैं. इस नए हेलमेट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि चाहे जितने क्लोज रेंज से ही क्यों ना गोली चलाई जाए ये उसे झेलने में कारगर है.
ये हेलमेट वैश्विक स्टैंडर्ड को पूरा करते हैं. साथ ही ये हेलमेट पहनने में सुविधाजनक हैं और इनमें संचार उपकरणों को भी लगाया जा सकता है. इस संबंध में एनएसजी के एक वरिष्ठ अफसर ने एनडीटीवी इंडिया को बताया,"गोली चाहे कितनी भी नज़दीकी से चलाई जाए लेकिन अगर किसी जवान ने ये हेलमेट पहन रखा होगा तो उसके सिर पर कोई चोट नहीं लगेगी. इस हेलमेट में कोई नट नहीं है. इसका वज़न ढाई किलो का है."
उनके मुताबिक़ किसी भी आतंक रोधी ऑपरेशन में कमांडो का बॉडी गेयर क़रीब 28 किलो का होता है. अब उसमें दो किलो का और इज़ाफ़ा हो जाएगा. इस मामले में इस तरह के आतंक रोधी ऑपरेशन से जुड़े एक कमांडो का कहना है,"यह बहुत ज़रूरी है की आपका सिर सुरक्षित रहे. जब गोली चल रही होती है तो वो कहीं भी हिट कर सकती है. पहले हम अपना सिर बचाते रहते थे लेकिन अब इस हेलमेट से हमारी सुरक्षा भी बढ़ गई है."
सबसे अच्छी बात ये है कि इसे भारत में ही बनाया जा रहा है और एक हेलमेट की लागत क़रीब 6500 रुपये है. इसके साथ ही एक वरिष्ठ अफसर का कहना है,"अभी हमने अपनी कुछ टुकड़ियों को इसे देना शुरू किया है."
इससे पहले जो हेलमेट एनएसजी के कमांडो पहनते थे उसका शीशा बुलेटप्रूफ नहीं था जिसके कारण स्प्लिंटर लगने से वो चूर हो जाता था और जवानो की आंख में चोट लग जाती थी. फिर जवानों ने बुलेटप्रूफ़ पटका पहनना शुरू किया जिससे उसके सिर्फ माथे की हिफ़ाज़त होती थी सिर की नहीं.
राजेश नेगी के साथ भी ऐसा ही हुआ था. जब उसे पठानकोट एयरबेस में आतंकियों के घुसने की ख़बर मिली थी तो वो अपने साथियों के साथ सर्च अभियान में जुट गए थे. करीब ढाई हजार की आबादी वाले लिविंग एरिया के पास उनका आमना-सामना आतंकियों से हुआ तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों की जान बचाना था.
उनके साथियों ने आतंकियों को ललकारा तो हमलावरों ने उनके ऊपर ग्रेनेड फेंक दिया. ग्रेनेड फटते ही उसके छर्रे राजेश के शरीर में घुस गए. उसी में से कुछ छर्रे उनकी आंखों में चले गए और वह घायल हो गए. हालांकि इस हालत में भी उन्होंने अन्य जवानों के साथ मिलकर दो आतंकियों को ढेर कर दिया.
वैसे दिखने में ये हेलमेट बड़ा आम सा दिखता है लेकिन कमाल का है. इसका फ़्रंट कवर और बेस दोनो 9एमएम की गोली तक झेल सकते हैं. इस नए हेलमेट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि चाहे जितने क्लोज रेंज से ही क्यों ना गोली चलाई जाए ये उसे झेलने में कारगर है.
ये हेलमेट वैश्विक स्टैंडर्ड को पूरा करते हैं. साथ ही ये हेलमेट पहनने में सुविधाजनक हैं और इनमें संचार उपकरणों को भी लगाया जा सकता है. इस संबंध में एनएसजी के एक वरिष्ठ अफसर ने एनडीटीवी इंडिया को बताया,"गोली चाहे कितनी भी नज़दीकी से चलाई जाए लेकिन अगर किसी जवान ने ये हेलमेट पहन रखा होगा तो उसके सिर पर कोई चोट नहीं लगेगी. इस हेलमेट में कोई नट नहीं है. इसका वज़न ढाई किलो का है."
उनके मुताबिक़ किसी भी आतंक रोधी ऑपरेशन में कमांडो का बॉडी गेयर क़रीब 28 किलो का होता है. अब उसमें दो किलो का और इज़ाफ़ा हो जाएगा. इस मामले में इस तरह के आतंक रोधी ऑपरेशन से जुड़े एक कमांडो का कहना है,"यह बहुत ज़रूरी है की आपका सिर सुरक्षित रहे. जब गोली चल रही होती है तो वो कहीं भी हिट कर सकती है. पहले हम अपना सिर बचाते रहते थे लेकिन अब इस हेलमेट से हमारी सुरक्षा भी बढ़ गई है."
सबसे अच्छी बात ये है कि इसे भारत में ही बनाया जा रहा है और एक हेलमेट की लागत क़रीब 6500 रुपये है. इसके साथ ही एक वरिष्ठ अफसर का कहना है,"अभी हमने अपनी कुछ टुकड़ियों को इसे देना शुरू किया है."
इससे पहले जो हेलमेट एनएसजी के कमांडो पहनते थे उसका शीशा बुलेटप्रूफ नहीं था जिसके कारण स्प्लिंटर लगने से वो चूर हो जाता था और जवानो की आंख में चोट लग जाती थी. फिर जवानों ने बुलेटप्रूफ़ पटका पहनना शुरू किया जिससे उसके सिर्फ माथे की हिफ़ाज़त होती थी सिर की नहीं.
राजेश नेगी के साथ भी ऐसा ही हुआ था. जब उसे पठानकोट एयरबेस में आतंकियों के घुसने की ख़बर मिली थी तो वो अपने साथियों के साथ सर्च अभियान में जुट गए थे. करीब ढाई हजार की आबादी वाले लिविंग एरिया के पास उनका आमना-सामना आतंकियों से हुआ तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों की जान बचाना था.
उनके साथियों ने आतंकियों को ललकारा तो हमलावरों ने उनके ऊपर ग्रेनेड फेंक दिया. ग्रेनेड फटते ही उसके छर्रे राजेश के शरीर में घुस गए. उसी में से कुछ छर्रे उनकी आंखों में चले गए और वह घायल हो गए. हालांकि इस हालत में भी उन्होंने अन्य जवानों के साथ मिलकर दो आतंकियों को ढेर कर दिया.
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