घाटी में जब बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनी थी, तब कश्मीरी पंडितों को एक उम्मीद जगी थी कि अब उनकी घर वापसी को लेकर संजीदा तरीके से कदम उठाए जाएंगे।
केन्द्र सरकार भले ही संजीदा हो, लेकिन राज्य सरकार की ओर से जो बयान आ रहे हैं, वह मामले को पेचीदा बना रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा, मैंने केन्द्रीय गृहमंत्री से कह दिया है कि कश्मीरी पंडित वापस आना चाहते हैं तो आएं, उनके लिए अलग कॉलोनी नहीं बनाई जाएगी।
इस पर केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां कुछ भी कहें, लेकिन घाटी में सरकार बीजेपी और पीडीपी की है और एक को दूसरे की सुननी पड़ेगी। वे इशारा मुफ़्ती साहब की ओर कर रहे थे।
उन्होंने यह भी कहा कि गृह मंत्रालय ने एक प्लान बनाया है कि किस तरह से कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाया जाना है। दरअसल, गृहमंत्रालय का कहना है कि घाटी में पंडितों की विशेष टाउनशिप के लिए सरकार जमीन दिलाए।
एनबीसीसी इस टाउनशिप का आर्किटेक्चर और डिज़ाइन तैयार कर चुकी है। श्रीनगर में बनने वाले 1000 अपार्टमेंट में कश्मीरी पंडितों को फ्लैट दिए जाएंगे, हालांकि स्थानीय लोगों को भी इनमें फ्लैट लेने की छूट होगी।
उधर, राम माधव ने भी ट्वीट कर कहा है कि कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए दोनों सरकारें वादा कर चुकी हैं। ये कॉलोनी सिर्फ पंडितों के लिए होगी या फ़िर सबके लिए, यह भी मुद्दा है, लेकिन इस मुद्दे पर कश्मीरी पंडितों की राय भी ली जानी चाहिए। कश्मीर में धार्मिक ओर सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखना है तो उन्हें इज्जत के साथ घर वापस लाना होगा।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी का जो साझा न्यूनतम कार्यक्रम है, उसमें 62,000 कश्मीरी पंडित परिवारों को फिर से बसाने की बात भी है। ये 62,000 कब तक लौटेंगे, कहां लौटेंगे और किस तरह लौटेंगे- ये एक बड़ा सवाल है।
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