16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक चलती बस के अंदर हुई गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को सोचने के लिए मजबूर था कि क्या इस देश में महिलाओं को पर आम अत्याचार अब आम बात हो गई है. घटना के अगले ही दिन पूरे देश में प्रदर्शन हो चुके थे. जिस वीभत्स तरीके से इस घटना को अंजाम दिया गया था, पहले ही दिन से इसके दोषियों को फांसी देने की मांग शुरू हो चुकी थी. यह हाल ही के दिनों में शायद पहला ऐसा मौका था रेप की घटना पर पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया था. संसद से लेकर राष्ट्रपति भवन तक आम जनता ने इंसाफ के लिए डेरा डाल दिया था. एक ओर जहां निर्भया जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही थी तो दूसरी ओर सरकार के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया था कि आखिर इस तरह के अपराधों से निपटने का रास्ता क्या है? तत्कालीन यूपीए सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा था तो दूसरी ओर सड़क पर प्रदर्शन कर रही जनता के भी सब्र का बांध टूट रहा था. निर्भया की भी हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी और लोगों की मांग की थी कि उसे विदेश में अच्छे अस्पताल भेजा जाना चाहिए. आखिरकार उसे सिंगापुर ले जाया गया.
देश में उसकी सलामती की दुआ और इंसाफ के लिए एक तरह से रतजगा कर रहा था औऱ मानों ऐसा लग रहा था कि निर्भया के साथ हुई घटना ने महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ पूरे देश को जगा दिया है. लेकिन 29 दिसंबर 2012 की रात निर्भया सबको जागकर हमेशा के लिए सो गई. जब सुबह तो निर्भया के मौत की खबर आई.
2 अप्रैल 2013 को रेप की घटनाओं के लेकर संसद में एक नया बिल पास हो गया था. जिसमें पीछा करने को अपराध माना गया और रेप के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान था. हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में रेप जैसी वारदातों की कमी आ गई है.
हाल ही में हैदराबाद में भी एक ऐसा ही वारदात हुई है जिसमें सभी दोषियों को पुलिस ने एक कथित एन्काउंटर में मार दिया जो सवालों के घेरे में है. लेकिन उम्मीद की जा रही है कि आखिर देर ही सही लेकिन रेप जैसे वारदात को अंजाम देने वालों के दिमाग में एक बार निर्भया के दोषियों का अंजाम जरूर याद आएगा.
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