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This Article is From Feb 02, 2020

निर्भया केस : चारों दोषियों की फांसी टलने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित

केंद्र सरकार की ओर से निर्भया मामले के सभी दोषियों की फांसी टालने के पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी

निर्भया केस : चारों दोषियों की फांसी टलने के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित
निर्भया केस के चार दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है.
नई दिल्ली:

Nirbhaya Case : दिल्ली हाईकोर्ट ने रविवार को केंद्र की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें उसने निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले के चार दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक को चुनौती दी है. जस्टिस सुरेश कैत ने कहा कि अदालत सभी पक्षों द्वारा अपनी दलीलें पूरी किए जाने के बाद आदेश पारित करेगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल में विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट में निर्भया केस के दोषियों की फांसी टलने के खिलाफ दाखिल याचिका पर रविवार को सुनवाई हुई. केंद्र सरकार (अभियोजन पक्ष) ने निर्भया मामले के सभी दोषियों की फांसी टालने के आदेश को चुनौती दी थी. सरकार ने निजली अदालत के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने चारो दोषियों को नोटिस जारी किया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्भया के चारों दोषियों, तिहाड़ जेल के डीजी और तिहाड़ जेल सुप्रिटेंडेंट को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था. पटियाला हाउस कोर्ट ने शुक्रवार को चारों दोषियों की फांसी को टाल दिया था.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट को एक चार्ट बनाकर दिया. उसमें बताया गया कि किसने कब-कब याचिका दाखिल की और कानून का किस तरह दुरुपयोग किया गया. उन्होंने कहा कि साल-साल भर बाद याचिकाएं दाखिल की गई थीं. राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. हर मौके पर देर की गई. उन्होंने बताया कि पवन की तरफ से ना क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की गई और ना ही दया याचिका. इन्हें यह लग रहा है कि अगर ये याचिका दाखिल नहीं करेंगे तो फांसी से बचे रहेंगे.

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तुषार मेहता ने कहा कि पवन ने 2018 में खुद को नाबालिग बताया, कोर्ट ने भी याचिका को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई, वह भी खारिज़ हो गई, तो उसके खिलाफ भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई. उसे भी कोर्ट ने खारिज़ कर दिया.उन्होंने कहा कि मुकेश  की तरफ से 550 दिन बाद क्यूरेटिव पिटीशन लगाई गई. दोषी की ओर से जानबूझकर देरी की गई. अक्षय ने 950 दिनों के बाद रिव्यू पिटीशन लगाई जिसे खारिज कर दिया गया था. क्यूरेटिव दाखिल किया गया. उनकी दया याचिका के फैसले का इंतजार है. विनय ने 2017 में 225 दिनों के बाद रिव्यू पिटीशन लगाई जो 2018 में खारिज हुई.  2020 में 549 दिनों के बाद क्यूरेटिव दाखिल किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल भी देरी नहीं की. इसकी तरफ से दया याचिका जनवरी 2020 को दायर हुई, जिसे एक फरवरी को खारिज कर दिया गया.  पवन ने 225 दिन बाद 2017 में रिव्यू पिटीशन लगाई, जो 2018 में खारिज़ कर दी गई. पवन की तरफ से अब तक क्यूरेटिव और मर्सी कोई भी याचिका नहीं लगी है.

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तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि दोषियों द्वारा याचिका देरी से दखिल करके ज्युडिशियरी का मजाक उड़ाया जा रहा है. दोषी मुकेश की दया याचिका खरिज होने के बाद मुकेश ने राष्ट्रपति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी. वहां से उसे राहत नहीं मिली. अक्षय की दया याचिका अभी राष्ट्रपति के यहां लंबित है.

तुषार मेहता ने कहा कि यह जानबूझकर किया जा रहा है. ये न्याय के लिए फ्रस्ट्रेशन की स्थिति है. इन्होंने एक लड़की का सामूहिक रेप किया. उसके बॉडी के पार्ट्स को, मैं कहना नही चाहता... उन्होंने कहा कि समाज और पीड़िता को न्याय के लिए इन सभी दोषियों को तुरंत फांसी पर लटकाने की जरूरत है.  समाज के हित में और कानून के हित में निर्भया के गुनहगारों की फांसी में और विलंब नहीं होना चाहिए.
 

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 जज ने तुषार मेहता से पूछा कि हमे बताईए कि सभी दोषी अलग-अलग दया याचिका लगा रहे हैं. दो की खारिज हो गई है और दो की राष्ट्रपति के पास पेंडिंग हैं, तो क्या किया जाएगा? इस पर तुषार मेहता ने कहा कि दो को फांसी दी जा सकती है. ऐसा नहीं है कि चारों को एक साथ दी जाएगी. पवन की तरफ से ना क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की गई और ना ही दया याचिका, इन्हें यह लग रहा है कि अगर ये याचिका दाखिल नहीं करेंगे तो फांसी से बचे रहेंगे. पवन ने 2018 में ख़ुद को नाबालिग बताया, कोर्ट ने भी याचिका को खारिज़ कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाई गई, वो भी खारिज़ हो गई, तो उसके खिलाफ भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई, उसे भी कोर्ट ने खारिज़ कर दिया.

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तुषार मेहता ने कहा कि दया याचिका से पहले अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती लेकिन दया याचिका खारिज होने के बाद दी जा सकती है. उन्होंने जेल मैनुअल के नियम 836 का हवाला दिया, कि अगर दिए गए तय वक्त में कानूनी उपचारों का इस्तेमाल किया जाता है तो उसके निस्तारण तक फांसी नहीं होती. उन्होंने कहा कि एक जैसा अपराध में एक से ज्यादा दोषियों को फांसी की सजा मिलती है तो सभी के कानूनी उपचारों के खत्म होने का इंतजार किया जाता है. उन्होंने हरवंश बनाम उत्तर प्रदेश के 1982 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. दया याचिका राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करती है.

तुषार मेहता ने कहा कि मुकेश दया याचिका खारिज होने के बाद फिर से दया याचिका दाखिल करने की बात करता है. राष्ट्रपति अगर चारों दोषियों में से किसी एक दोषी की परिस्थितियों के बदलाव होने पर दया दिखाते भी हैं तो वो केवल उसी के संबंध में होगी, सभी के संबंध में नहीं. मानो कोई दोषी पागल हो जाता तो परिस्थिति बदलने पर वो ही दोबारा याचिका दाखिल कर सकता है.

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तुषार मेहता ने 31 जनवरी के पटियाला हाउस कोर्ट के आदेश को पढ़ा. उन्होंने कहा कि सात साल से दोषी कानूनी प्रक्रिया से खेल रहे हैं. उन्होंने कहा कि एसएलपी के स्तर तक ही एक अपराध के एक से ज्यादा दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं दी जा सकती. दया याचिका का आधार अलग है.

अक्षय, विनय और पवन की तरफ से एडवोकेट एपी सिंह पैरवी कर रहे हैं. सिंह ने कोर्ट से एफीडेविट फाइल करने की इजाजत मांगी. एपी सिंह ने कोर्ट को बताया कि उनके तीनों मुवक्किलों ने कब कौन सी याचिका लगाई. एपी सिंह ने जेल मैनुअल का 838 रूल पढ़कर सुनाया. उन्होंने कहा कि अगर दोषियों की याचिका लंबित है तो फांसी नहीं दे सकते. अगर एक मामले में एक से ज्यादा दोषी हैं और किसी की भी याचिका लंबित है तो फांसी कैसे दी जा सकती है? दोषी को सभी याचिकाओं के खारिज़ होने पर भी फांसी से पहले समय दिया जाता है, ताकि वह परिजनों से मिल सके और जहनी तौर पर तैयार हो सके.

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सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के शत्रुघ्न चौहान मामले में भी कहा गया है कि न्यूनतम 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए. दया याचिका खारिज होने के बाद फांसी से पहले न्यूनतम 14 दिन का नोटिस दिया जाना आवश्यक है.

जज सुरेश कैथ ने पूछा कि दया याचिका दाखिल करने की मियाद क्या है? एपी सिंह ने जवाब दिया कि इसको लेकर कुछ स्पष्टता नहीं है. राम सिंह की जेल में हत्या हो गई (जेल प्रशासन के अनुसार आत्महत्या थी). रामसिंह और मुकेश सगे भाई हैं. राजस्थान के गरीब दलित परिवार से हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 1982 के हरवंश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश के फैसले का हवाला दिया.

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एडवोकेट एपी सिंह ने कहा कि इस मामले में न‌ए तथ्य क्या हैं, मैं कोर्ट को बताता हूं. जेल में सेवा दे चुके सुनील गुप्ता ने स्वीकार किया था कि दिसंबर के महीने में शाम के समय दोषियों की शिनाख्त निर्भया के दोस्त से पुलिस की मौजूदगी में करवाई गई. यह कानून का उल्लंघन था. 11 मार्च 2013 को राम सिंह की मौत की ख़बर मिली. वह मौत संदिग्ध थी. उस सेल में तीन कैदी भी थे.  छत 12 फुट ऊंची थी. उसके शरीर पर चोट के निशान भी थे. जज ने कहा कि ये सब अब कैसे संबंधित है, राम सिंह तो मर चुका है? सिंह ने कहा कि ये बातें 2019 में पता चलीं. राम सिंह का भाई मुकेश भी दोषी है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इन बातों को सुन चुका है. कोर्ट ने इन दलीलों को अमान्य किया.

एपी सिंह ने कहा कि सिर्फ इस मामले में न्यायालय इतना जल्दी में क्यों है? जज ने कहा कि कल को तो आप ये भी कहोगे कि हाईकोर्ट शनिवार और रविवार को क्यों खुला? एपी सिंह ने कहा कि एक निजी समाचार चैनल के पूर्व संपादक (अजीत अंजुम ) ने खुलासा किया कि इस मामले में एक मात्र इकलौते चश्मदीद गवाह अविन्द्र प्रताप पांडे की गवाही भी संदिग्ध है.

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दोषी मुकेश की तरफ से पैरवी कर रहीं रैबेका जॉन ने कोर्ट से कहा कि मुझे दो प्रारंभिक आपत्तियां दर्ज करने की अनुमति दी जाए. ट्रायल कोर्ट ने सात जनवरी 2020 को 22 जनवरी के लिए सबसे पहले डेथ वारंट जारी किया. नौ जनवरी को मेरे मुवक्किल मुकेश की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल हुई. 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज़ कर दी. उसी दिन दया याचिका दाखिल कर दी गई थी. दया याचिका दाखिल करने के बाद सात जनवरी का डेथ वारंट अमान्य हो जाता है.

रैबेका जॉन ने कहा कि केन्द्र सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं थी. दिसंबर 2018 में मृतक पीड़िता की मां की तरफ से याचिका लगाई गई थी कि याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी किया जाए. रैबेका जॉन ने कहा कि केन्द्र सरकार की शत्रुघ्न चौहान के मामले में याचिका सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है. उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है, केवल नोटिस जारी किया गया है. केन्द्र सभी दोषियों की फांसी को अलग-अलग करना चाहता है. दया याचिका खारिज होने के बाद न्यायिक समीक्षा का अधिकार हमारे पास था, हमने किया, खारिज हो गया ये अलग बात है. जॉन ने केन्द्र सरकार की याचिका पर ऐतराज़ जताया.

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रेबेका जॉन ने कहा कि दोषी मुकेश की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने देरी के आधार पर नहीं बल्कि मेरिट के आधार पर खरिज की है. केन्द्र की दलील पर मुकेश की वकील ने आपत्ति जताई. उन्होंने दोषी मुकेश की ओर से कहा कि मुझे भारत का संविधान यह अधिकार देता है कि मैं अपनी आखिरी सांस तक अपने अधिकार के लिए लड़ूं.

रेबेका जॉन ने कहा कि नियम सबके लिए एक होना चाहिए, चाहे दोषी हो या फिर सरकार. अगर सभी दोषियों को सजा एक साथ दी गई है तो फांसी भी एक साथ दी जाए. कानून इसका अधिकार देता है. रेबेका जॉन ने कहा कि जब सभी दोषियों को डेथ वारंट एक साथ जारी किया गया तो फांसी अलग-अलग कैसे दी जा सकती है. केंद्र सरकार को इतनी जल्दी क्या है.

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रेबेका जॉन के अपनी बहस पूरी करने के बाद तुषार मेहता ने अपना जवाब दिया. एसजी तुषार मेहता ने कहा कि आगे चलकर राष्ट्रपति क्या फैसला लेंगे, इसका कयास लगाकर फांसी एक साथ ही होने की दलील देना, सही नहीं है. मेहता ने कहा कि केन्द्र सरकार क्या कर रही थी, ये दलील बेतुकी है. क्या हम ये कह सकते हैं कि कोर्ट क्या कर रहा था. हो सकता है कि दिल्ली सरकार ने देरी की हो, पर हमारा सवाल उठाना सही नहीं है.

केंद्र सरकर की तरफ से कोर्ट में बड़ी दलील दी गई जिसमें कहा गया कि लोग अपनी लड़कियों को सड़क पर  घूमने को लेकर आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि उन्हें डर है कि सड़कों पर दरिंदे घूम रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसले सुरक्षित रखा.

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