नई दिल्ली:
सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के मामले में एक नया मोड़ आया है। पहली बार हिन्दू धर्म के दो धार्मिक संस्थानों के प्रमुख ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की वकालत की है। सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई इंटरवेंशन याचिका में स्वामी भूमा नंद तीर्थ व्यास तपोवा नारायण आश्रम तपोवनम, त्रिसूर और स्वामी स्वामी भूमा नंद तीर्थ वेन्जिन्सरी ने कहा है कि 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी, प्रथा के आधार पर तो हो सकती है लेकिन यह शास्त्र और संविधान सम्मत नहीं है।
प्रथा विनाशकारी भी हो सकती है
याचिका में कहा गया है कि प्रथा का स्थान धर्म शास्त्र के काफ़ी नीचे है। वह अपनी बात वैदिक साहित्य के आधार पर कह रहे हैं जोकि महिलाओं के समान अधिकार की बात करते हैं और बिना किसी भेदभाव के उन्हें मंदिरो में प्रवेश के योग्य बनाते है। इन दोनों संस्थानों ने अपनी अर्जी में कहा है कि मंदिर में प्रथा और विश्वास के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती। कोई भी प्रथा, अच्छी, महान हो सकती है लेकिन विनाशकारी भी हो सकती है जैसा इस मामले में महिलाओं के धार्मिक अधिकारों के साथ हो रहा है।
इसके अलावा याचिका में कहा गया कि कोई भी प्रथा या रिवाज धर्म और आस्था पर आधारित हो सकता है लेकिन वह इसे विश्वासपूर्ण नहीं बनाते। संविधान सर्वोच्च है और सारे मंदिर इसके बनाए कानून के तहत आते हैं इसलिए महिलाओं को पूजा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि सबरीमाला मंदिर बनाने वालों का स्पष्ट मत था कि मंदिर के सामने बनी 18 सीढ़ियां भगवन अयप्पा के सामने आती है। इन सीढ़ियों पर वही लोग चढ़ सकते है जिन्होंने पारंपरिक व्रत किया हो बाक़ी लोग बगल की सीढ़ियों से मंदिर में जाते है। इस सीढ़ियों से महिलाएं पहले भी गई है और अब भी जा सकती हैं। मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी।
प्रथा विनाशकारी भी हो सकती है
याचिका में कहा गया है कि प्रथा का स्थान धर्म शास्त्र के काफ़ी नीचे है। वह अपनी बात वैदिक साहित्य के आधार पर कह रहे हैं जोकि महिलाओं के समान अधिकार की बात करते हैं और बिना किसी भेदभाव के उन्हें मंदिरो में प्रवेश के योग्य बनाते है। इन दोनों संस्थानों ने अपनी अर्जी में कहा है कि मंदिर में प्रथा और विश्वास के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती। कोई भी प्रथा, अच्छी, महान हो सकती है लेकिन विनाशकारी भी हो सकती है जैसा इस मामले में महिलाओं के धार्मिक अधिकारों के साथ हो रहा है।
इसके अलावा याचिका में कहा गया कि कोई भी प्रथा या रिवाज धर्म और आस्था पर आधारित हो सकता है लेकिन वह इसे विश्वासपूर्ण नहीं बनाते। संविधान सर्वोच्च है और सारे मंदिर इसके बनाए कानून के तहत आते हैं इसलिए महिलाओं को पूजा के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि सबरीमाला मंदिर बनाने वालों का स्पष्ट मत था कि मंदिर के सामने बनी 18 सीढ़ियां भगवन अयप्पा के सामने आती है। इन सीढ़ियों पर वही लोग चढ़ सकते है जिन्होंने पारंपरिक व्रत किया हो बाक़ी लोग बगल की सीढ़ियों से मंदिर में जाते है। इस सीढ़ियों से महिलाएं पहले भी गई है और अब भी जा सकती हैं। मामले की अगली सुनवाई 22 अप्रैल को होगी।
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