नई दिल्ली:
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एनडीटीवी पर सीबीआई के छापों और प्रेस की आजादी की रक्षा के लिए शुक्रवार को एक बैठक का आयोजन किया. इस दौरान प्रेस क्लब में विभिन्न मीडिया संगठनों के पत्रकार जुटे. इस बैठक में कुलदीप नैयर, अरुण शौरी, एचके दुआ, डॉ. प्रणय रॉय समेत कई बड़े पत्रकार जुटे. फली नरीमन समेत कई कानूनविद भी इस चर्चा का हिस्सा बने. पढ़ें इस मौके पर किसने क्या कहा...
एनडीटीवी के सह संस्थापक डॉ. प्रणय रॉय ने कहा, मुझे ये करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा. हम आज इन महानुभावों की मेहबानी से हैं. हम इनकी छाया में बढ़ते हैं. एक बार मैं चीन गया, वहां मुझसे पूछा गया क्या आपको हमारी गगनचुंबी इमारतें (स्काइस्क्रैपर्स) देखकर थोड़ी जलन नहीं होती? मैंने कहा, हमारे पास सर्वश्रेष्ठ स्काइस्क्रैपर्स हैं- आजाद माहौल. यह खोखला मामला केवल एनडीटीवी के खिलाफ नहीं है. बल्कि यह हम सब के लिए एक संकेत है. 'हम आपको दबा सकते हैं, भले ही आपने कुछ न किया हो.' प्रेस की आजादी भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ बात है. उनका संदेश है, 'घुटनों के बल चलो या फिर हम तुम्हें झुका देंगे. मैं कहता हूं - उनके सामने खड़े हो जाओ, और वो कभी ऐसा नहीं कर पाएंगे.' हम किसी एजेंसी के खिलाफ नहीं लड़ रहे. वो भारत की संस्थाएं हैं, लेकिन हम उन नेताओं के खिलाफ हैं जो इनका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. अधिकारियों ने हमें बताया कि उन्हें क्यों ऐसा करना पड़ा. हमारी लड़ाई संजय दत्त के खिलाफ भी नहीं है. वह भी एक ऐसा शख्स है, जिसे मोहरा बनाया गया है और जिसका इस्तेमाल किया गया. उन्होंने कहा, 'संजय दत्त की मां बेहतरीन इंसान हैं. उन्होंने संजय दत्त समेत हम पांच लोगों को बुलाया. उन्होंने कहा, 'बेटा, ये अच्छे लोग हैं. तुमने गलती की है, उसे सुधारो. जब मैं प्रार्थना करती हूं, तो तुम्हारे नहीं, बल्कि इनके लिए ज्यादा करती हूं.' नेता बिना आग के भी धुआं पैदा कर सकते हैं. जीई मनी लाउंड्रिंग मामले पर बोलते हुए उन्होंने कहा, 'मैं शर्मिंदा हूं कि हमारे नेता ऐसा आरोप लगा सकते हैं.' हम सभी आरोपों का जवाब देंगे. हम बस इतना चाहते हैं कि समयसीमा तय हो. तीन साल में सरकार ने 21 बार स्थगन की मांग की. उन्होंने कहा, 'मैंने या राधिका ने एक रुपया भी काला पैसा नहीं रखा है. हमने कभी किसी को रिश्वत नहीं दी है.'
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा, 'मुझे लगता है कि वर्तमान माहौल में चुप रहना कोई विकल्प नहीं है. यह वो क्षण है जब हमें इतिहास में सही किनारे पर खड़ा होना होगा.
राज्यसभा के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार एचके दुआ ने कहा, 'पिछली दफा प्रेस के ज्यादातर लोग खड़े नहीं हुए थे और जैसा कि आडवाणी ने कहा था, वो रेंग रहे थे. उसके बाद अवमानना विधेयक आया. हम इकट्ठा हुए हैं, यह एक राष्ट्रीय आंदोलन बन जाएगा. राजीव गांधी बात करना चाहते थे, लेकिन हमने इनकार कर दिया. प्रेस की एकता ने लड़ाई जीत ली थी. विधेयक वापस लेना पड़ा, क्योंकि लोग उसके खिलाफ थे. वैसे ही संकेत अब भी दिख रहे हैं. अगर हम एकजुट हों तो हम फिर से उसे दोहरा सकते हैं.
प्रख्यात न्यायविद फली नरीमन ने कहा, फ्रीडम आफ्टर स्पीच ही सही मायने में फ्रीडम ऑफ स्पीच है. आपराधिक मामलों में कोई भी मुकदमे से बच नहीं सकता, लेकिन जिस तरह से यह किया गया, उससे मुझे लगता है यह प्रेस और मीडिया की आजादी पर हमला हैं. 2 जून को सीबीआई ने 7 साल पहले हुई बात के लिए एफआईआर दर्ज की. बिना किसी जांच के और केवल संजय दत्त नाम के एक शख्स द्वारा दी गई सूचना के आधार पर. शिकायत में यह नहीं लिखा गया इस मामले को पहले सामने क्यों नहीं लाया गया. सीबीआई ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की. पहली चीज जो सीबीआई को करनी चाहिए थी, जब ऐसा कोई मामला दायर किया गया, तो एनडीटीवी की प्रतिक्रिया लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. जब कोई सरकारी एजेंसी किसी मीडिया कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज करती है, तो यह जरूरी है कि छापे मारने से पहले यह जाना जाए कि कंपनी के मालिकों का इस बारे में क्या कहना है. यह कोई समर्थन और कृपा का मामला नहीं है बल्कि संवैधानिक कर्तव्य का मामला है. उन्होंने कहा, 'छापे की कार्रवाई से पहले की घटनाओं पर ध्यान देना भी जरूरी है. 1 जून को जब संजय हजारिका एनडीटीवी के शो में बोल रहे थे, तब संबित पात्रा ने बीच में टोकते और कहा : मैं केवल एनडीटीवी पर लोगों को टोकता हूं और ऐसा मैं इसलिए करता हूं क्योंकि एनडीटीवी का एक एजेंडा है. पात्रा के आरोप लगाए जाने के बाद ही एनडीटीवी के दफ्तर और एनडीटीवी के सह संस्थापक डॉ. प्रणय रॉय आवास पर छापे पड़े. इंदिरा गांधी के समय भी मीडिया पर ऐसे ही हमले हुए थे... तब इंडियन एक्सप्रेस के खिलाफ रिटर्न नहीं फाइल करने के 120 मामले दर्ज कराए गए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अंतत: हमारी जीत हुई.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा, 'मैं नरेंद्र मोदी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं. उन्होंने इतने सारे मित्रों को साथ ला दिया. मेरे पास उनके लिए एक दोहा है : वो जो आपसे पहले इस सिंहासन पर बैठा था, उसे भी यही यकीन था कि वह खुदा है. पहले उन्होंने विज्ञापनों जैसे प्रोत्साहन दिए, फिर डर का ये माहौल. और अब वो दबाव डालने के लिए तीसरे साधन का उपयोग कर रहे हैं. उन्होंने NDTV को एक उदाहरण बना दिया है. हुकूमत की प्रकृति की वजह से यह आने वाले महीनों में और भी ज्यादा उग्र होगा. मौजूदा सरकार सर्वसत्तावादी है. जिस किसी ने भी भारत में प्रेस पर हाथ डालने की कोशिश की, वो अपने हाथ जला बैठा. एनडीटीवी द्वारा दिए गए तथ्यों का सीबीआई जवाब तक नहीं दे पा रही है. यहां तक कि द वायर में एक आलेख भी है. तथ्य अकाट्य हैं. आपको अपने मित्र की मदद करनी ही चाहिए, क्योंकि वो आपको बांटने की कोशिश करेंगे. केवल यंत्र न बनें. साथियों का समर्थन नहीं करने से ज्यादा हतोत्साहित करने वाली बात कोई और नहीं होती. ये मैंने सिविल सेवा में देखा है. मेरी अपने प्रेस के सहयोगियों से शिकायत है कि हम उतने सतर्क नहीं रहें, जितना हमें रहना चाहिए था. यह बहुत दुखद है कि आरटीआई का गला घोंटे जाने के समय हमें जैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी, हमने नहीं की. राज (कमल झा) ने मुझसे कहा था कि इन दिनों इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर किए लगभग सभी आरटीआई आवेदन को खारिज कर दिया गया. केवल अपील के स्तर पर उन्हें पहुंच मिलती है.
इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा, मेरा दृढ़तापूर्वक कहना है कि लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता को छीना नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि ऐसा कदम बोलने की आजादी के सिद्धांत को भी कमजोर करता है.
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा, आपातकाल के दौरान किसी को किसी से ये नहीं कहना पड़ता था कि क्या करना है. सभी जानते थे कि क्या करना है. तब इंडियन एक्सप्रेस एक प्रतीक बन गया था. आज, जब हम कमोबेश वैसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं, हालांकि उस स्तर का नहीं, हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि हम किसी को भी बोलने की आजादी छीनने ना दें.
वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने कहा, 'यह वो समय है जब हमें अपने संगठनात्मक और संस्थागत संबद्धता को भूलना होगा. आजाद प्रेस का यह वो मुद्दा है जो हमारे सभी संस्थानों से जुड़ा है. यह प्रेस की आजादी पर हमला है. कृपया खुद को कोड़े मारना बंद कीजिए. सोशल मीडिया ने हम सबको गुमराह कर दिया है. अन्य पेशों की तुलना में पत्रकारिता में कहीं बेहतर लोग हें. कोई भी प्रेस्टिट्यूट नहीं है. दुर्व्यवहार के तूफान से न डरें.' उन्होंने कहा, 'जब इंडियन एक्सप्रेस के खिलाफ बड़ी संख्या में केस दर्ज किए गए थे तब रामनाथ गोयनका की उन मामलों को लेकर प्रतिक्रिया थी, 'इससे क्या फर्क पड़ता है? हमने कत्ल के अलावा सारे कानून तोड़े हैं.' उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि एनडीटीवी वही करता रहेगा जो वो कर रहा है. हमारा काम है सत्ता से सच बोलना है. हममें से कई लोग सत्ता के मेगाफोन बन गए हैं.'
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा, मीडिया को एक होने की जरूरत है.
एनडीटीवी के सह संस्थापक डॉ. प्रणय रॉय ने कहा, मुझे ये करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा. हम आज इन महानुभावों की मेहबानी से हैं. हम इनकी छाया में बढ़ते हैं. एक बार मैं चीन गया, वहां मुझसे पूछा गया क्या आपको हमारी गगनचुंबी इमारतें (स्काइस्क्रैपर्स) देखकर थोड़ी जलन नहीं होती? मैंने कहा, हमारे पास सर्वश्रेष्ठ स्काइस्क्रैपर्स हैं- आजाद माहौल. यह खोखला मामला केवल एनडीटीवी के खिलाफ नहीं है. बल्कि यह हम सब के लिए एक संकेत है. 'हम आपको दबा सकते हैं, भले ही आपने कुछ न किया हो.' प्रेस की आजादी भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ बात है. उनका संदेश है, 'घुटनों के बल चलो या फिर हम तुम्हें झुका देंगे. मैं कहता हूं - उनके सामने खड़े हो जाओ, और वो कभी ऐसा नहीं कर पाएंगे.' हम किसी एजेंसी के खिलाफ नहीं लड़ रहे. वो भारत की संस्थाएं हैं, लेकिन हम उन नेताओं के खिलाफ हैं जो इनका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. अधिकारियों ने हमें बताया कि उन्हें क्यों ऐसा करना पड़ा. हमारी लड़ाई संजय दत्त के खिलाफ भी नहीं है. वह भी एक ऐसा शख्स है, जिसे मोहरा बनाया गया है और जिसका इस्तेमाल किया गया. उन्होंने कहा, 'संजय दत्त की मां बेहतरीन इंसान हैं. उन्होंने संजय दत्त समेत हम पांच लोगों को बुलाया. उन्होंने कहा, 'बेटा, ये अच्छे लोग हैं. तुमने गलती की है, उसे सुधारो. जब मैं प्रार्थना करती हूं, तो तुम्हारे नहीं, बल्कि इनके लिए ज्यादा करती हूं.' नेता बिना आग के भी धुआं पैदा कर सकते हैं. जीई मनी लाउंड्रिंग मामले पर बोलते हुए उन्होंने कहा, 'मैं शर्मिंदा हूं कि हमारे नेता ऐसा आरोप लगा सकते हैं.' हम सभी आरोपों का जवाब देंगे. हम बस इतना चाहते हैं कि समयसीमा तय हो. तीन साल में सरकार ने 21 बार स्थगन की मांग की. उन्होंने कहा, 'मैंने या राधिका ने एक रुपया भी काला पैसा नहीं रखा है. हमने कभी किसी को रिश्वत नहीं दी है.'
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा, 'मुझे लगता है कि वर्तमान माहौल में चुप रहना कोई विकल्प नहीं है. यह वो क्षण है जब हमें इतिहास में सही किनारे पर खड़ा होना होगा.
राज्यसभा के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार एचके दुआ ने कहा, 'पिछली दफा प्रेस के ज्यादातर लोग खड़े नहीं हुए थे और जैसा कि आडवाणी ने कहा था, वो रेंग रहे थे. उसके बाद अवमानना विधेयक आया. हम इकट्ठा हुए हैं, यह एक राष्ट्रीय आंदोलन बन जाएगा. राजीव गांधी बात करना चाहते थे, लेकिन हमने इनकार कर दिया. प्रेस की एकता ने लड़ाई जीत ली थी. विधेयक वापस लेना पड़ा, क्योंकि लोग उसके खिलाफ थे. वैसे ही संकेत अब भी दिख रहे हैं. अगर हम एकजुट हों तो हम फिर से उसे दोहरा सकते हैं.
प्रख्यात न्यायविद फली नरीमन ने कहा, फ्रीडम आफ्टर स्पीच ही सही मायने में फ्रीडम ऑफ स्पीच है. आपराधिक मामलों में कोई भी मुकदमे से बच नहीं सकता, लेकिन जिस तरह से यह किया गया, उससे मुझे लगता है यह प्रेस और मीडिया की आजादी पर हमला हैं. 2 जून को सीबीआई ने 7 साल पहले हुई बात के लिए एफआईआर दर्ज की. बिना किसी जांच के और केवल संजय दत्त नाम के एक शख्स द्वारा दी गई सूचना के आधार पर. शिकायत में यह नहीं लिखा गया इस मामले को पहले सामने क्यों नहीं लाया गया. सीबीआई ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की. पहली चीज जो सीबीआई को करनी चाहिए थी, जब ऐसा कोई मामला दायर किया गया, तो एनडीटीवी की प्रतिक्रिया लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. जब कोई सरकारी एजेंसी किसी मीडिया कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज करती है, तो यह जरूरी है कि छापे मारने से पहले यह जाना जाए कि कंपनी के मालिकों का इस बारे में क्या कहना है. यह कोई समर्थन और कृपा का मामला नहीं है बल्कि संवैधानिक कर्तव्य का मामला है. उन्होंने कहा, 'छापे की कार्रवाई से पहले की घटनाओं पर ध्यान देना भी जरूरी है. 1 जून को जब संजय हजारिका एनडीटीवी के शो में बोल रहे थे, तब संबित पात्रा ने बीच में टोकते और कहा : मैं केवल एनडीटीवी पर लोगों को टोकता हूं और ऐसा मैं इसलिए करता हूं क्योंकि एनडीटीवी का एक एजेंडा है. पात्रा के आरोप लगाए जाने के बाद ही एनडीटीवी के दफ्तर और एनडीटीवी के सह संस्थापक डॉ. प्रणय रॉय आवास पर छापे पड़े. इंदिरा गांधी के समय भी मीडिया पर ऐसे ही हमले हुए थे... तब इंडियन एक्सप्रेस के खिलाफ रिटर्न नहीं फाइल करने के 120 मामले दर्ज कराए गए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अंतत: हमारी जीत हुई.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा, 'मैं नरेंद्र मोदी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं. उन्होंने इतने सारे मित्रों को साथ ला दिया. मेरे पास उनके लिए एक दोहा है : वो जो आपसे पहले इस सिंहासन पर बैठा था, उसे भी यही यकीन था कि वह खुदा है. पहले उन्होंने विज्ञापनों जैसे प्रोत्साहन दिए, फिर डर का ये माहौल. और अब वो दबाव डालने के लिए तीसरे साधन का उपयोग कर रहे हैं. उन्होंने NDTV को एक उदाहरण बना दिया है. हुकूमत की प्रकृति की वजह से यह आने वाले महीनों में और भी ज्यादा उग्र होगा. मौजूदा सरकार सर्वसत्तावादी है. जिस किसी ने भी भारत में प्रेस पर हाथ डालने की कोशिश की, वो अपने हाथ जला बैठा. एनडीटीवी द्वारा दिए गए तथ्यों का सीबीआई जवाब तक नहीं दे पा रही है. यहां तक कि द वायर में एक आलेख भी है. तथ्य अकाट्य हैं. आपको अपने मित्र की मदद करनी ही चाहिए, क्योंकि वो आपको बांटने की कोशिश करेंगे. केवल यंत्र न बनें. साथियों का समर्थन नहीं करने से ज्यादा हतोत्साहित करने वाली बात कोई और नहीं होती. ये मैंने सिविल सेवा में देखा है. मेरी अपने प्रेस के सहयोगियों से शिकायत है कि हम उतने सतर्क नहीं रहें, जितना हमें रहना चाहिए था. यह बहुत दुखद है कि आरटीआई का गला घोंटे जाने के समय हमें जैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी, हमने नहीं की. राज (कमल झा) ने मुझसे कहा था कि इन दिनों इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर किए लगभग सभी आरटीआई आवेदन को खारिज कर दिया गया. केवल अपील के स्तर पर उन्हें पहुंच मिलती है.
इंडिया टुडे ग्रुप के एडिटर इन चीफ अरुण पुरी ने कहा, मेरा दृढ़तापूर्वक कहना है कि लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता को छीना नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि ऐसा कदम बोलने की आजादी के सिद्धांत को भी कमजोर करता है.
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा, आपातकाल के दौरान किसी को किसी से ये नहीं कहना पड़ता था कि क्या करना है. सभी जानते थे कि क्या करना है. तब इंडियन एक्सप्रेस एक प्रतीक बन गया था. आज, जब हम कमोबेश वैसी ही स्थिति का सामना कर रहे हैं, हालांकि उस स्तर का नहीं, हम सभी को यह सुनिश्चित करना होगा कि हम किसी को भी बोलने की आजादी छीनने ना दें.
वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने कहा, 'यह वो समय है जब हमें अपने संगठनात्मक और संस्थागत संबद्धता को भूलना होगा. आजाद प्रेस का यह वो मुद्दा है जो हमारे सभी संस्थानों से जुड़ा है. यह प्रेस की आजादी पर हमला है. कृपया खुद को कोड़े मारना बंद कीजिए. सोशल मीडिया ने हम सबको गुमराह कर दिया है. अन्य पेशों की तुलना में पत्रकारिता में कहीं बेहतर लोग हें. कोई भी प्रेस्टिट्यूट नहीं है. दुर्व्यवहार के तूफान से न डरें.' उन्होंने कहा, 'जब इंडियन एक्सप्रेस के खिलाफ बड़ी संख्या में केस दर्ज किए गए थे तब रामनाथ गोयनका की उन मामलों को लेकर प्रतिक्रिया थी, 'इससे क्या फर्क पड़ता है? हमने कत्ल के अलावा सारे कानून तोड़े हैं.' उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि एनडीटीवी वही करता रहेगा जो वो कर रहा है. हमारा काम है सत्ता से सच बोलना है. हममें से कई लोग सत्ता के मेगाफोन बन गए हैं.'
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा, मीडिया को एक होने की जरूरत है.
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