प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
भारत में दिवाली पर प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए ग्रीन पटाखा तैयार कर लिया गया है. इस पटाखे से करीब 30 प्रतिशत कम प्रदूषण होगा और इसकी कीमत भी प्रचलित पटाखों से 15 से 30 फीसदी कम होगी. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने एनडीटीवी के साइंस एडिटर पल्लव बागला से खास बातचीत में इस ग्रीन पटाखे के बारे में खुलासा किया.
दीवाली आने वाली है. पिछली दिवाली पर प्रदूषण से लोगों को बहुत तकलीफ हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिवाली और अन्य त्योहारों पर पटाखों को लेकर अहम दिशानिर्देश जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों की भी बात की है.
ग्रीन पटाखे के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'आपको याद होगा पिछले साल प्रदूषण का विषय काफी गंभीरता के साथ चर्चा में था. वैसे तो पर्यावरण मंत्रालय की ओर से हमने बहुत सारी पहल की हैं. हर तरह से हम इसमें अपना ह्रदय और आत्मा लगाकर काम कर रहे हैं, लेकिन हमने साथ में अपने वैज्ञानिकों को भी इस काम में शामिल किया.'
उन्होंने कहा कि 'वैज्ञानिकों ने पराली जलाने के लिए बहुत सारे नए डिवाइस बनाए. हमारी जो नीरी की प्रयोगशाला है उसमें वायु जैसा उपकरण पैदा किया गया जो कि दिल्ली में अब तक हम 30 से ज्यादा लग चुके हैं. लेकिन हमने अपने वैज्ञानिकों को पिछले वर्ष एक चुनौती दी थी कि आप ऐसा ग्रीन पटाखा बनाइए जो बच्चों को खुशी भी दे, उसी तरह का आनंद भी दे और जिसका इस्तेमाल करने पर हम हवा की गुणवत्ता को उतना खराब न होने दें. और साथ में देश में 6000 करोड़ की एक क्रेकर इंडस्ट्री है, उसकी एक बड़ी इकॉनामी है, पांच लाख लोग उसमें काम करते हैं. तो हम उनको भी बहुत ज्यादा डिस्टर्ब न करें.'
यह भी पढ़ें : पटाखा जलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त दिशा-निर्देश, इलाके का दरोगा करेगा निगरानी, 10 बड़ी बातें
डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ग्रीन क्रेकर, जो उनका शार्ट टर्म प्लान था, उसमें उपलब्ध करा दिया. अभी लांग टर्म प्लान में और इम्प्रूवमेंट्स की तरफ वे काम कर रहे हैं. इसमें करीब 30 प्रतिशत पार्टिकुलेट मैटर के कम पॉल्यूशन होने की संभावना है. 50-60 प्रतिशत जो सल्फर डाइऑक्साइड और नॉक्स है इसके पॉल्यूशन की संभावना कम है. और इसके साथ-साथ इसकी कीमत भी 15 से 30 प्रतिशत कम है.'
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि 'उन्हीं मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज में, जिनमें अब तक कन्वेंशनल पटाखे बन रहे थे, ये बनाया जा सकता है. हमें पूरा विश्वास है. इसके परीक्षण के लिए देश में पहली बार हमारे सीएसआईआर नीरी की लैब में इस तरह की टेस्टिंग की सुविधा तैयार की गई. उसमें उन्होंने डिमास्ट्रेट किया कि पॉल्यूशन इत्यादि तो कम है लेकिन आनंद उतना ही है. उसमें रोशनी उतनी ही है, उतनी ही हाइट है. आवाज इत्यादि भी. पटाखे के आनंद के सारे फैक्टर उसी तरह के हैं जैसे पारंपरिक पटाखे में होते हैं.'
उन्होंने कहा कि 'इस ग्रीन पटाखे को लेकर आने वाले वर्षों में और ज्यादा बेहतरी की तरफ हमारे वैज्ञानिक बढ़ रहे हैं. मुझे बड़ी खुशी है कि भारत के पर्यावरण की रक्षा करने के लिए हमारे वैज्ञानिक अपनी साइंटिफिक सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी पूरी गंभीरता और ईमानदारी से निभा रहे हैं.'
VIDEO : चुनौती पूरी करने में सफल हुए वैज्ञानिक
इस दीवाली पर ग्रीन पटाखे के उपलब्ध होने के बारे में पूछे गए सवाल पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'देखिए अभी तो दीवाली थोड़े दिन के ही अंदर आ रही है. टेक्नालॉजी बन गई है और वह जो रिलेवेंट आर्गनाइजेशन है उसको ट्रांसफर हो गई है. इसमें कई मैन्युफैक्चरर का काफी सकारात्मक रोल है. वे लोग रिसर्च के दौरान भी एक साल तक जुड़े रहे हैं. वे फैक्ट्रियों में भी हमारे वैज्ञानिकों को लेकर गए हैं. उन लोगों को सिर्फ लाइंसेस लेकर इसको बनाना शुरू करना है. मुझे उम्मीद है कि जितनी जल्दी से जल्दी ये काम वे कर सकते हैं वह होगा. इसी दीवाली पर उपलब्ध होगा या नहीं होगा, यह मैं नहीं कह सकता. लेकिन पिछले छह-आठ महीने में वैज्ञानिकों ने चुनौती पर सफलतापूर्वक काम किया.'
दीवाली आने वाली है. पिछली दिवाली पर प्रदूषण से लोगों को बहुत तकलीफ हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिवाली और अन्य त्योहारों पर पटाखों को लेकर अहम दिशानिर्देश जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों की भी बात की है.
ग्रीन पटाखे के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'आपको याद होगा पिछले साल प्रदूषण का विषय काफी गंभीरता के साथ चर्चा में था. वैसे तो पर्यावरण मंत्रालय की ओर से हमने बहुत सारी पहल की हैं. हर तरह से हम इसमें अपना ह्रदय और आत्मा लगाकर काम कर रहे हैं, लेकिन हमने साथ में अपने वैज्ञानिकों को भी इस काम में शामिल किया.'
उन्होंने कहा कि 'वैज्ञानिकों ने पराली जलाने के लिए बहुत सारे नए डिवाइस बनाए. हमारी जो नीरी की प्रयोगशाला है उसमें वायु जैसा उपकरण पैदा किया गया जो कि दिल्ली में अब तक हम 30 से ज्यादा लग चुके हैं. लेकिन हमने अपने वैज्ञानिकों को पिछले वर्ष एक चुनौती दी थी कि आप ऐसा ग्रीन पटाखा बनाइए जो बच्चों को खुशी भी दे, उसी तरह का आनंद भी दे और जिसका इस्तेमाल करने पर हम हवा की गुणवत्ता को उतना खराब न होने दें. और साथ में देश में 6000 करोड़ की एक क्रेकर इंडस्ट्री है, उसकी एक बड़ी इकॉनामी है, पांच लाख लोग उसमें काम करते हैं. तो हम उनको भी बहुत ज्यादा डिस्टर्ब न करें.'
यह भी पढ़ें : पटाखा जलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सख्त दिशा-निर्देश, इलाके का दरोगा करेगा निगरानी, 10 बड़ी बातें
डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ग्रीन क्रेकर, जो उनका शार्ट टर्म प्लान था, उसमें उपलब्ध करा दिया. अभी लांग टर्म प्लान में और इम्प्रूवमेंट्स की तरफ वे काम कर रहे हैं. इसमें करीब 30 प्रतिशत पार्टिकुलेट मैटर के कम पॉल्यूशन होने की संभावना है. 50-60 प्रतिशत जो सल्फर डाइऑक्साइड और नॉक्स है इसके पॉल्यूशन की संभावना कम है. और इसके साथ-साथ इसकी कीमत भी 15 से 30 प्रतिशत कम है.'
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि 'उन्हीं मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज में, जिनमें अब तक कन्वेंशनल पटाखे बन रहे थे, ये बनाया जा सकता है. हमें पूरा विश्वास है. इसके परीक्षण के लिए देश में पहली बार हमारे सीएसआईआर नीरी की लैब में इस तरह की टेस्टिंग की सुविधा तैयार की गई. उसमें उन्होंने डिमास्ट्रेट किया कि पॉल्यूशन इत्यादि तो कम है लेकिन आनंद उतना ही है. उसमें रोशनी उतनी ही है, उतनी ही हाइट है. आवाज इत्यादि भी. पटाखे के आनंद के सारे फैक्टर उसी तरह के हैं जैसे पारंपरिक पटाखे में होते हैं.'
उन्होंने कहा कि 'इस ग्रीन पटाखे को लेकर आने वाले वर्षों में और ज्यादा बेहतरी की तरफ हमारे वैज्ञानिक बढ़ रहे हैं. मुझे बड़ी खुशी है कि भारत के पर्यावरण की रक्षा करने के लिए हमारे वैज्ञानिक अपनी साइंटिफिक सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी पूरी गंभीरता और ईमानदारी से निभा रहे हैं.'
VIDEO : चुनौती पूरी करने में सफल हुए वैज्ञानिक
इस दीवाली पर ग्रीन पटाखे के उपलब्ध होने के बारे में पूछे गए सवाल पर डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 'देखिए अभी तो दीवाली थोड़े दिन के ही अंदर आ रही है. टेक्नालॉजी बन गई है और वह जो रिलेवेंट आर्गनाइजेशन है उसको ट्रांसफर हो गई है. इसमें कई मैन्युफैक्चरर का काफी सकारात्मक रोल है. वे लोग रिसर्च के दौरान भी एक साल तक जुड़े रहे हैं. वे फैक्ट्रियों में भी हमारे वैज्ञानिकों को लेकर गए हैं. उन लोगों को सिर्फ लाइंसेस लेकर इसको बनाना शुरू करना है. मुझे उम्मीद है कि जितनी जल्दी से जल्दी ये काम वे कर सकते हैं वह होगा. इसी दीवाली पर उपलब्ध होगा या नहीं होगा, यह मैं नहीं कह सकता. लेकिन पिछले छह-आठ महीने में वैज्ञानिकों ने चुनौती पर सफलतापूर्वक काम किया.'
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं